त्रिपुरा की बिप्लब देब की सरकार (Tripura Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जवाब दाखिल राज्य में हुई हिंसा के लिए SIT गठित कर जाँच की माँग करने के लिए दी गई जनहित याचिका को खारिज करने और भारी जुर्माना लगाने की माँग की है। सरकार द्वारा दाखिल जवाब में कहा गया है कि याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद की हिंसा पर चुप्प हैं, लेकिन तथाकथित जनहितैषी लोग जनहित याचिका का गलत इस्तेमाल करते हुए खतरनाक मिसाल पेश कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, याचिकाकर्ता का नाम एहतेसाम हाशमी है। त्रिपुरा सरकार के मुताबिक, “याचिका को नेेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, सीएफडी और पीपुल्स यूनियन फॉर लिबर्टीज द्वारा प्रायोजित है और इसे हाशमी ने 3 वकीलों के साथ मिलकर कथित फाइंडिंग रिपोर्ट्स के आधार पर ‘ह्यूमैनिटी अंडर अटैक इन त्रिपुरा- #मुस्लिम लाइव्स मैटर’ के नाम से तैयार किया है। यह जनहित याचिका स्वंयभू है।”
त्रिपुरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने हलफ़नामे में आगे कहा, “यह जनहित याचिका प्रक्रिया का दुरूपयोग है। जब अदालतों ने अख़बारों की दलीलों के आधार पर दाखिल PIL सुनने से मना कर दिया, तब यह नया तरीका अपनाया गया है। यह तथाकथित जन हितैषी लोगों की नई रणनीति है। इसमें अपने ही लोगों द्वारा अपनी ही रिपोर्ट बना ली जाती है। ऐसी रिपोर्ट पूर्व नियोजित होती हैं। साथ ही इनके द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं में अपने फायदे छिपे होते हैं।”
त्रिपुरा सरकार ने हलफनामे में आगे कहा, “इस याचिका में घटनाओं को एकतरफा और तोड़-मरोड़ कर दिखाया गया है। कानूनी तौर पर याचिका में किए गए दावों में सच्चाई नहीं है। यह हैरानी की बात है कि बंगाल में चुनावों के बाद जो हिंसा हुई थी उसके लिए कोई भी याचिकाकर्ता सामने नहीं आया। त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य के लिए ही अचानक कुछ तथाकथित लोग जाग गए।” त्रिपुरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों में तोड़फोड़ और हिंसा की खबरों के बाद त्रिपुरा में कुछ हिंसक घटनाएँ हुई थीं। उन मामलों में कार्रवाई की जा रही है।
हलफनामे में आगे है, “त्रिपुरा हाईकोर्ट ने इस हिंसा का स्वतः संज्ञान पहले ही ले लिया है। वहाँ पर कार्रवाई चल रही है। बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता वहाँ की कार्रवाई में अपनी भागीदारी दर्ज कराएँ। ऐसा ही कोलकाता नगरपालिका चुनावों के दौरान भी हुआ था। तब बड़े पैमाने पर हुई हिंसा की स्वतंत्र जाँच की माँग के साथ लगी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार से इंकार कर दिया था। साथ ही मामले को उच्च न्यायालय में वापस कर दिया था। इसलिए यहाँ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट को उलझाने का प्रयास न करें।”
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने त्रिपुरा हिंसा मामले में दाखिल PIL के बाद नवम्बर 2021 में त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिका में त्रिपुरा पुलिस पर हिंसा करने वालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई न करने का आरोप लगाया गया था। साथ ही त्रिपुरा के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिमों पर सुनियोजित हमले किए जाने का दावा किया गया था। यह हिंसा अक्टूबर 2021 में हुई थी।