Saturday, November 2, 2024
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‘मुस्लिम छात्रों के व्हाट्सएप्प ग्रुप का हिस्सा था उमर खालिद, महिला प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया’: अदालत की टिप्पणी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब दिल्ली आए थे, तब उमर ने लोगों को सड़कों पर आने के लिए कहा था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया गया। दंगों के बाद हुईं कॉल्स में उसका भी उल्लेख किया गया था।

फरवरी 2020 में हुए दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों की साजिश के मामले में आरोपित उमर खालिद को दिल्ली की कोर्ट से बड़ा झटका लगा। गुरुवार (24 फरवरी, 2022) को हुई सुनवाई के दौरान पूर्वी दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपित उमर खालिद को जमानत देने से इनकार कर दिया। उमर खालिद पर दिल्ली दंगों की साजिश रचने समेत कई गंभीर आरोप है और वह गिरफ्तारी के बाद से लगातार जेल में ही बंद है।

गुरुवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत इस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। सुनवाई के दौरान आरोपित ने अदालत से कहा था कि अभियोजन पक्ष के पास उसके खिलाफ अपना मामला साबित करने के लिए सबूत नहीं हैं। वहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से कहा गया था कि सीएए प्रदर्शन के नाम पर लोगों को चारे के रूप में इस्तेमाल किया था। कोर्ट ने उमर खालिद के रिसर्चर होने और उसके थीसिस लिखने की बात पर कहा कि इसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि साजिश की शुरुआत से लेकर दंगों तक उमर खालिद का नाम बार-बार आया है। वह JNU के मुस्लिम छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुप का सदस्य था। उसने विभिन्न बैठकों में भाग लिया। उमर ने हिंसा के लोगों को भड़काया था। इतना ही नहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब दिल्ली आए थे, तब उमर ने लोगों को सड़कों पर आने के लिए कहा था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया गया। दंगों के बाद हुईं कॉल्स में उसका भी उल्लेख किया गया था।

इसमें कहा गया है कि चार्जशीट के अनुसार, चक्काजम की ‘पूर्व नियोजित साजिश’ थी और दिल्ली में 23 अलग-अलग नियोजित स्थलों पर एक पूर्व नियोजित विरोध था, जो टकराव, चक्काजाम और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए था। इसी के परिणामस्वरूप दंगे हुए थे।

कोर्ट ने कहा कि इसका टारगेट मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में सड़कों को ब्लॉक करना और वहाँ रहने वाले नागरिकों के आने और जाने को पूरी तरह से रोकना था। इसके बाद महिला प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया। इसका मकसद लोगों के अंदर दहशत पैदा करना था। अदालत के मुताबिक, यह UAPA के धारा-15 के तहत ‘आतंकवादी अधिनियम’ (Terrorist Act) है।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से हथियारों का इस्तेमाल हुआ और हमले हुए, उससे साफ था कि यह एक पूर्व नियोजित साजिश थी। आदेश में कहा गया है, “ऐसे कार्य जो भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव में टकराव पैदा करते हैं, किसी भी वर्ग में आतंक पैदा करते हैं, उन्हें हिंसा में घिरा हुआ महसूस कराते हैं, वह भी एक आतंकवादी एक्ट है।”

बता दें कि उमर खालिद और कई अन्य पर फरवरी 2020 को हुए दंगों के मास्टरमाइंड होने के लिए IPC के साथ-साथ UAPA के तहत भी मामला चल रहा है। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से अधिक घायल हो गए थे। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान ये दंगे भड़के थे। खालिद के अलावा कार्यकर्ता खालिद सैफी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की छात्रा नताशा नरवाल और देवंगना कलीता, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगार, आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य पर मामले में सख्त कानून के तहत मामले दर्ज किए गए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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