ओडिशा हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा था कि न चाहते हुए भी जज राजनीतिक विकल्प चुनते हैं, जबकि उन्हें लगता है कि वे तटस्थ हैं। अब उन्होंने कहा है कि हर प्रवासी श्रमिक को ‘बांग्लादेशी’ कहना खतरनाक है। इसके राष्ट्रीय सुरक्षा की समस्या बढ़ेगी।
भीमा कोरेगाँव केस के 2018 के फैसले में पक्षपाती होने का आरोप झेल चुके मुरलीधर ने कहा कि इस तरह के सामान्यीकरण से राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ बढ़ेंगी और अप्रवासियों, शरणार्थियों और शरण चाहने वालों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार को जन्म देंगे।
न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा, “हर प्रवासी के लिए बांग्लादेशी शब्द राज्य के दृष्टिकोण से एक खतरनाक शब्द है। हमेशा, राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता के तर्क सामने रखे जाते हैं और अप्रवासियों, शरणार्थियों और शरण चाहने वालों के मामलों में तो इसे और भी अधिक जोर-शोर से पेश किया जाता है।”
उन्होंने याद दिलाया कि भारत हमेशा से प्रवासियों और आप्रवासियों का देश रहा है। उन्होंने आगे कहा, “केवल राजनीतिक और कानूनी सीमाएँ ही हैं जो उन्हें बांग्लादेशी, रोहिंग्या या अवैध प्रवासी करार देती हैं।”
रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने गुरुवार (14 सितंबर, 2023) को कहा था कि न चाहते हुए भी जज राजनीतिक विकल्प चुनते हैं, जबकि उन्हें लगता है कि वे तटस्थ हैं। दरअसल, ये दिल्ली हाई कोर्ट के वही पूर्व जज हैं जिन पर भीमा कोरेगाँव केस के 2018 के फैसले पर उन पर पक्षपाती होने का आरोप लगा था।
तब इस फैसले में उन्होंने अर्बन नक्सल गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड और हाउस अरेस्ट को रद्द कर दिया था। आज वही जज परोक्ष तौर पर ये कह रहे हैं कि अदालत के फैसलों में राजनीतिक चयन रहता है। ये बात उन्होंने एडवोकेट गौतम भाटिया की पुस्तक “अनसील्ड कवर्स: ए डिकेड ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन, द कोर्ट्स एंड द स्टेट” के लॉन्च पर कही।