एक तरह जहाँ वाराणसी (Varanasi) के विवादित ज्ञानवापी ढाँचे (Gyanvapi Controversial Structure) में मिले शिवलिंग को मुस्लिम पक्ष फव्वारा बताकर इतिहास को झूठा साबित करने की कोशिश कर रहा है, वहीं IIT, BHU के प्रोफेसर ने इसे नकार दिया है। IIT, BHU में मैटेरियल और केमिकल साइंस के प्रोफेसर आरएस सिंह (RS Singh) कहा कि यह शिवलिंग ही है, क्योंकि पुराने जमाने में बिजली नहीं होती थी।
प्रोफेसर सिंह ने कहा पुराने जमाने में फव्वारे को चलाने के लिए पानी को काफी ऊपर से गिराया जाता था और वह दबाव में फव्वारे का आकार लेता था। उन्होंने कहा कि विवादित ज्ञानवापी परिसर में ऐसा कोई सिस्टम नहीं दिखा। शिवलिंग के ऊपर फव्वारेनुमा जो आकृति दिख रही है, वह सीमेंट रखा हुआ हो सकता है।
शिवलिंग के पन्ना होने की बात को लेकर उन्होंने कहा कि उसका को केमिकल एनालिसिस नहीं हुआ है, इसलिए यह कहना है कि वह पन्ना का है, थोड़ा मुश्किल है। इसको देखकर लगता है कि यह काफी पुराना है और लंबे समय से पानी में है। उन्होंने कहा कि अंतिम बार इसे राजा टोडरमल ने 400-500 साल पहले बनवाया था और उस समय बिजली नहीं थी।
प्रोफेसर आरएस सिंह ने कहा कि पुराने जमाने में भी फौव्वारे का निर्माण होता था, लेकिन जब तक पानी 100-150 फुट ऊपर से नहीं गिराया जाता, तब तक फव्वारे में पानी नहीं आता था। उन्होंने कहा कि इतने रेडियस का फव्वारा नहीं होता। अगर यह फव्वारा है तो इसके नीचे कोई मैकेनिज्म होगा और बेसमेंट में इसका सिस्टम बना होगा।
आजतक के अनुसार, उन्होंने कहा कि जो लोग इसे फव्वारा बता रहे हैं, वे लोग इसे चलाकर दिखा दें। अगर यह जाता है तो मान लिया जाएगा कि यह फव्वारा है, नहीं तो यह शिवलिंग है। वहीं, केमिकल डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर चंदन उपाध्याय ने कहा कि अगर यह फव्वारा है तो इसमें नोजल होना चाहिए, जो इसमें दिख नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि इसमें पानी होनी चाहिए, वह भी नहीं दिख रही है। उन्होंने कहा कि शिवलिंग पन्ना का हो सकता है, लेकिन इसको प्रमाणित करने के लिए जाँच जरूरी है।