भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि पिछले 8-9 वर्षों में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। सत्ता के मध्यस्थों से मुक्ति मिली है और उन लोगों से भी मुक्ति मिली है, जो अतिरिक्त कानूनी माध्यमों से शासन प्रणाली का लाभ उठाते थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भाजपा के शासन में नए भारत का मंत्र है ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन’। ‘जीवन में सुगमता’ के बड़े उद्देश्य के साथ कार्यपालिका ‘कारोबार में सुगमता’ को सुलभ बना रही है। उन्होंने कहा कि आज भारत अवसरों, नवाचारों और निवेश के पसंदीदा वैश्विक स्थल बन गया है।
उपराष्ट्रपति ने दिल्ली के भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) में दूसरा डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद स्मृति व्याख्यान को संबोधित करते हुए कहा, “आगामी 25 साल देश के लिए महत्वपूर्ण है। पिछले 9 वर्षों में हमने सकारात्मक कदमों की एक नींव रखी है कि 2047 में जब देश आजादी की शताब्दी मना रहा होगा, तो हमें पहले नंबर पर होना है और मेरे युवा साथी 2047 के योद्धा होंगे।”
उन्होंने कहा कि देश में जिस तरह का पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हुआ है और स्थिरता देखने को मिल रही है, इससे स्पष्ट है कि भारत उस समय दुनिया में नंबर एक होगा। कोविड के दौरान भारत ने न केवल दवाओं, उपकरणों और टीकों के विकास और उत्पादन के लिए अपनी क्षमताओं को बढ़ाया और अस्पतालों एवं ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना की, बल्कि महामारी के प्रसार की निगरानी के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म भी विकसित किए गए।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “जब कोविड महामारी ने हमें चुनौती दी तो हम अपनी सभ्यता से जुड़े लोकाचारों को नहीं भूले। हमने अपने टीकों को उपलब्ध कराकर 100 से अधिक देशों को मदद दी। उनमें से बहुत को मित्रवत भाव के रूप में ये मदद मिली।”
Hon'ble Vice President, Shri Jagdeep Dhankhar paid floral tributes to the Father of the Nation, Mahatma Gandhi Ji at the IIPA campus in New Delhi today. #IIPA @iipa9 pic.twitter.com/IuB89IOOfK
— Vice President of India (@VPIndia) March 29, 2023
अपने संबोधन के दौरान उपराष्ट्र ने भारत को एक शक्ति के रूप में उभरने पर उसे बदनाम की साजिश की भी बात कही। उन्होंने कहा, “हमें बदनाम करने के लिए भारत के मूल्यों, अखंडता और इसकी संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमला किया जा रहा है। वैश्विक शक्ति के रूप में उभरते हुए भारत के खिलाफ एक पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित किया जा रहा है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ बाहरी संस्थानों द्वारा राष्ट्र के रूप में भारत की वैधता और इसके संविधान पर हमला किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “भारत के कुछ अरबपति और बुद्धिजीवी परिणाम की परवाह किए बिना इन संस्थानों को फंड देकर इस तरह के विनाशकारी षडयंत्रों के शिकार हो गए हैं।”
उन्होंने कहा कि उद्योगपति को सीएसआर फंड के पैसे का इस्तेमाल देश के बाहर करने के बजाय IIMs और IITs जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों को वित्तपोषित करना चाहिए। उन्होंने कहा, “मुझ याद है कि देश के एक अरबपति ने सीएसआर के 200 करोड़ रुपए एक अमेरिकी संस्थान को दे दिए। इसी तरह 2008 में खुद भारत सरकार ने 20 करोड़ दूसरे संस्थान को दिए थे।”
न्यायपालिका को लेकर उपराष्ट्रपति ने एक बार फिर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कानून बनाने का विशेषाधिकार संसद के पास है और बनाए गए कानून का विश्लेषण, मूल्यांकन या हस्तक्षेप किसी अन्य पक्ष (न्यायपालिका या कार्यपालिका) को करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इससे नाजुक संतुलन बिगड़ जाएगा।
मोदी सरकार द्वारा साल 2014 में जजों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम सिस्टम की जगह बनाए गए नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमेटी की भी उन्होंने चर्चा की। उपराष्ट्रपति ने कहा, “इसे सर्वसम्मति से बनाया गया था और लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा पास किया गया। 16 राज्य की विधानसभाओं ने इसका समर्थन किया। देश के माननीय राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत अपने संवैधानिक अधिकार के तहत इस पर हस्ताक्षर किए। आगे क्या हुआ, सब जानते हैं।” बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया था।
Constitutional Governance is about achieving the dynamic equilibrium in the healthy interplay among the three organs of the state. #IIPA @iipa9 pic.twitter.com/BbpTUffqJD
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उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के चयन में भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श की बात कही गई थी। इसे न्यायिक आदेश के जरिए सहमति बना दिया गया। उन्होंने कहा कि परामर्श और सहमति के बीच एक मूलभूत अंतर है। न्यायपालिका ने कहा कि परामर्श ही सहमति होगी। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने 24 मई 1949 को संविधान सभा में इस तरह के सुझाव का कड़ा विरोध किया था।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि किसी भी मूल संरचना का आधार कानून निर्माण में संसद की सर्वोच्चता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में और बाहर कुछ लोग हैं, जो देश की प्रगति को देखकर प्रसन्न नहीं हैं। देश के बुद्धिजीवियों और उद्योगपतियों को ऐसे तत्वों सावधान रहने और उनके नीच मंसूबों का विरोध करने का अनुरोध किया।