Sunday, November 17, 2024
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‘7 महीने से व्यापार ठप, रोजी-रोटी का संकट’: GT रोड खुलवाने 21 जुलाई को सिंघु बॉर्डर तक होगा सोनीपत के ग्रामीणों का मार्च

"कृषि सुधार कानूनों के विरोध में प्रदर्शनकारी 7 महीनों से जीटी रोड बंद करके बैठे हैं। इसके कारण अब स्थानीय लोगों की परेशानियाँ हद से ज्यादा बढ़ चुकी हैं। रोड बंद होने के कारण लोगों का व्यापार पूरी तरह से ठप हो गया है, जिसके कारण निर्णय लिया गया है कि रोड खुलवाने को लेकर..."

हरियाणा के सोनीपत में किसानों के आंदोलन के कारण महीनों से बंद जीटी रोड को खुलवाने के लिए स्थानीय ग्रामीणों ने पैदल मार्च निकालने का निर्णय लिया है। रविवार (11 जुलाई 2021) को मनौली गाँव में राष्ट्रवादी परिवर्तन मंच की अध्यक्षता में करीब 3 दर्जन गाँवों के निवासियों ने बैठक की। बैठक में निर्णय लिया गया कि केएमपी के पास सिंघु बॉर्डर तक आगामी 21 जुलाई को पैदल मार्च निकलते हुए अपनी माँग रखी जाएगी।

रोजी-रोटी का संकट इसलिए शांतिपूर्वक मार्च:

बैठक में राष्ट्रवादी परिवर्तन मंच के अध्यक्ष हेमंत नांदल ने बताया कि कृषि सुधार कानूनों के विरोध में प्रदर्शनकारी 7 महीनों से जीटी रोड बंद करके बैठे हैं। इसके कारण अब स्थानीय लोगों की परेशानियाँ हद से ज्यादा बढ़ चुकी हैं। उन्होंने बताया कि रोड बंद होने के कारण लोगों का व्यापार पूरी तरह से ठप हो गया है, जिसके कारण निर्णय लिया गया है कि रोड खुलवाने को लेकर प्रशासन से बात की जाएगी। नांदल ने बताया कि इस मुद्दे पर संयुक्त किसान मोर्चा से भी बातचीत की गई थी, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला था। अब राष्ट्रवादी परिवर्तन मंच के नेतृत्व में सोनीपत की 35 पंचायतें, आरडब्ल्यूए, पेट्रोल पंप मालिक और इंडस्ट्रियल यूनियन एक तरफ से जीटी रोड खुलवाने के लिए आगे आएंगे। नांदल ने कहा कि अगर उन्हें रोका गया तो उनके द्वारा भी आंदोलन किया जाएगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 21 जुलाई को इलाके के लगभग 1,500-2,000 ग्रामीण शांतिपूर्वक तरीके से पैदल मार्च करेंगे। यह मार्च केएमपी से शुरू होकर दिल्ली के सिंघु बॉर्डर तक जाएगा। यह एक सांकेतिक मार्च होगा, जिसका उद्देश्य प्रशासन को बताना है कि अब स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ चुका है। इसके अलावा, अब इस इलाके के लोगों को रास्ता चाहिए और सरकार एवं प्रशासन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

ज्ञात हो कि केंद्र सरकार द्वारा संसद से संवैधानिक तरीके से पारित किए गए कृषि सुधार कानूनों को रद्द करने की माँग को लेकर लगभग 7 महीनों से तथाकथित किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। कई बार सरकार आश्वासन दे चुकी है कि न तो मंडियाँ समाप्त होंगी और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ कोई छेड़छाड़ किया जाएगा। इसके बाद भी कथित किसान नेता इस राजनैतिक आंदोलन को लेकर अपनी हठ पर अड़े हुए हैं। सरकार कह चुकी है कि कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों पर किसान संगठनों को आपत्ति है, उन पर सरकार चर्चा और उसमें जरूरी सुधार करने को तैयार है, लेकिन प्रदर्शनकारी किसान कानूनों को रद्द करने की माँग पर अड़े हुए हैं।

पहले भी आ चुकी हैं नुकसान की खबरें:

किसान आंदोलन के कारण हो रहे नुकसान को लेकर कई रिपोर्ट्स आ चुकी हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने जनवरी में जानकारी दी थी कि दिल्ली और इसके आसपास चल रहे ‘किसान आंदोलन’ के चलते बीते एक महीने से ज़्यादा समय में दिल्ली तथा उससे सटे राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं राजस्थान को लगभग 27,000 करोड़ रुपए के व्यापार का नुकसान हुआ है।

उसके बाद 6 महीने बीत चुके हैं। ऐसे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस कथित किसान आंदोलन से व्यापार का कितना नुकसान हो रहा होगा। इसके अलावा, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी मार्च में बताया था कि किसान आंदोलन के कारण तीन राज्यों में 16 मार्च तक 814.4 करोड़ रुपए के टोल राजस्व का नुकसान भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को हुआ है। इनमें सर्वाधिक नुकसान पंजाब और हरियाणा में हुआ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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