Sunday, November 17, 2024
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पश्चिम बंगाल में मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे 40 साल के नाग, BJP का करते थे समर्थन: घर के बाहर पेड़ से लटके मिले

परिजनों का दावा है कि नाग गाँव में भाजपा कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते थे, इसलिए टीएमसी कार्यकर्ताओं ने मारकर उनका शव पेड़ से लटका दिया।

पश्चिम बंगाल में एक बीजेपी कार्यकर्ता का शव संदिग्ध स्थितियों में पेड़ से लटका मिला। मृतक की पहचान पूर्ण चंद्र नाग के तौर पर हुई है। व​ह मजदूरी कर अपना घर चलाते थे। बीरभूम जिले के मल्लारपुर कस्बे में मंगलवार (19 अप्रैल 2022) तड़के अपने ही घर के बाहर वह पेड़ से लटका मिले।

वीडियो कृप्या अपने विवेक से देखें।

नाग सोमवार को अपने घर नहीं लौटे थे। जब परिजन उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराने जा रहे थे, तभी उन्होंने उनका शव घर के पास एक पेड़ से लटका हुआ पाया। 40 वर्षीय पूर्ण चंद्र दिहाड़ी मजदूर थे। वह ममता बनर्जी सरकार की नीतियों के खिलाफ थे और भाजपा के कट्टर समर्थक थे। हालाँकि, रिपोर्ट्स बताती हैं कि वे राजनीतिक गतिविधियों में इतना सक्रिय नहीं थे।

मल्लारपुर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए रामपुरहाट मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभी तक इस मामले में कोई भी शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है। बीजेपी कार्यकर्ता ने आत्महत्या की है या फिर यह सुनियोजित राजनीतिक हत्या है, इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं हैं। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि हो सकता है कि पूर्ण चंद्र की हत्या राजनीतिक कारणों से की गई हो। वहीं, मृतक के परिवार वालों ने भी यह दावा किया है कि वह गाँव में भाजपा कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते थे, इसलिए टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें मारकर शव पेड़ से लटका दिया। पुलिस मामले की जाँच कर रही है।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 के नतीजे घोषित होने के बाद जबरदस्त राजनीतिक हिंसा हुई थी। विपक्षी दलों खासकर बीजेपी समर्थकों और उनकी संपत्तियों को निशाना बनाने के आरोप टीएमसी के गुंडों पर लगे थे। इसके बाद राज्य से बड़े पैमाने पर पलायन भी हुआ था। काफी संख्या में लोग असम चले गए थे जहाँ बीजेपी ने उनकी मदद की थी। उनके रहने और भोजन की व्यवस्था की गई थी।

पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी अपनी फाइनल रिपोर्ट में कलकत्ता हाई कोर्ट को बताया था, “राज्य में ‘कानून का शासन’ नहीं बल्कि ‘शासक का कानून’ है। करीब 50 पेज की NHRC की इस रिपोर्ट में राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की गई थी और कहा गया था कि राज्य प्रशासन ने जनता में अपना विश्वास खो दिया है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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