Sunday, December 22, 2024
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रास्ते में मस्जिद की वजह से RSS के मार्च को अनुमति देने से स्टालिन सरकार का इनकार: मद्रास हाई कोर्ट ने लगाई फटकार, पूछा- यह कैसा सेक्युलरिज्म?

"आरएसएस का विरोध करने वाले कुछ संगठनों द्वारा मस्जिद, चर्च या कार्यालय का हवाला देकर, जुलूस और सार्वजनिक बैठक आयोजित करने के अनुरोध को खारिज कर देना। यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विपरीत है जो हमारे भारत के संविधान की नींव है।"

तमिलनाडु की एम के स्टालिन सरकार के सेकुलरिज्म के नाम पर आरएसएस के मार्च पर प्रतिबन्ध लगा दिया। जिसपर मद्रास हाई कोर्ट ने फटकार लगाई है। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को बड़ी राहत देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे 22 और 29 अक्टूबर को तमिलनाडु में 35 स्थानों पर “रूट मार्च” आयोजित करने की अनुमति दे दी है। दरअसल, तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने रास्ते में मस्जिद और चर्च होने का हवाला देकर आरएसएस के मार्च को अनुमति देने से इनकार कर दिया था।  

मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु की स्टालिन सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को राज्य में मार्च और जनसभाएँ करने की अनुमति देने से इनकार करने का निर्णय संविधान द्वारा दी गई धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन ने तमिलनाडु पुलिस को आरएसएस को अनुमति देने का निर्देश देते हुए की। कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि सरकार आरएसएस को इस साल 22 और 29 अक्टूबर को राज्य में 35 स्थानों पर “रूट मार्च” आयोजित करने की अनुमति दें। कोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा अनुमति देने से इनकार करने की वजहों में कुछ प्रस्तावित मार्गों पर मस्जिदों, चर्चों और डीएमके के एक क्षेत्रीय कार्यालय की मौजूदगी और कुछ सड़कों पर संभावित यातायात की भीड़ को कारण बताया गया था। जो सही नहीं है और सेक्युलरिज्म के खिलाफ है।

16 अक्टूबर, 2023 के अपने आदेश में न्यायाधीश ने कहा कि राज्य सरकार लगभग एक महीने से इस तरह के रूट मार्च के लिए आरएसएस के सदस्यों और पदाधिकारियों द्वारा दिए गए आवेदन पर रोक लगाकर बैठी है। वहीं याचिकाकर्ताओं द्वारा मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से ठीक पहले राज्य की पुलिस ने अंततः अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

वहीं इस पूरे मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “आरएसएस के रुट मार्च को तमिलनाडु पुलिस द्वारा अनुमति न देना, निश्चित रूप से शासन के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक तरीके के अनुरूप नहीं है। और न तो यह भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करना ही है। आरएसएस की विचारधारा का विरोध करने वाले कुछ संगठनों के ढाँचे, मस्जिद या कार्यालय का हवाला देकर, जुलूस और सार्वजनिक बैठक आयोजित करने के आरएसएस के अनुरोध को खारिज कर देना। यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विपरीत है जो हमारे भारत के संविधान की नींव है।”

इस मामले में न्यायालय ने आरएसएस के स्थानीय और राज्य-स्तरीय सदस्यों द्वारा ऐसी अनुमति माँगने के लिए दायर की गई कई याचिकाओं को अनुमति दे दी। वहीं कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों और रूट मार्च में भाग लेने वालों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया भी दिया है कि रूट मार्च शांतिपूर्वक आयोजित की जाएँ।”

गौरतलब है कि यही मुद्दा पिछले साल अक्टूबर में भी अदालत के सामने आया था जब आरएसएस ने गाँधी जयंती और भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में राज्य भर में कई स्थानों पर अपना मार्च और जनसभाएँ करने की तमिलनाडु की राज्य सरकार से अनुमति माँगी थी।

तब भी राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था और खुफिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद आरएसएस ने पिछले साल भी मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
उस वर्ष 4 नवंबर को कोर्ट ने आरएसएस को कुछ शर्तों के साथ मार्च आयोजित करने की अनुमति दी थी। वहीं इस साल 10 फरवरी को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने इन प्रतिबंधों को हटा दिया था और स्वस्थ लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के महत्व पर जोर दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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