केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार (16 अप्रैल 2021) को कहा कि अगर कोई महिला योग्य है तो उसे कार्य की प्रकृति के आधार पर रोजगार के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस अनु शिवरामन ने कहा, ”किसी योग्य उम्मीदवार को सिर्फ इस आधार पर नियुक्त करने से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह एक महिला है और रोजगार की प्रकृति के अनुसार उसे रात में काम करना होगा। जबकि महिला का योग्य होना ही उसकी नौकरी के लिए सुरक्षात्मक प्रावधान है।”
कोर्ट ने केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड की नौकरी के लिए जारी उस अधिसूचना को पलट दिया, जिसमें सिर्फ पुरुषों को आवेदन करने की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अधिसूचना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, जबकि फैक्ट्रीज एक्ट 1948 के प्रावधान महिलाओं को कार्यस्थल पर शोषण से बचाने के लिए हैं।
ट्रेजा जोसफीन सेफ्टी एंड फायर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट हैं। वह केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड में ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी (सेफ्टी) के रूप में कार्यरत हैं। 25 वर्षीय ट्रेजा ने कंपनी में उपलब्ध सेफ्टी ऑफिसर के स्थायी पद के लिए आवेदन के लिए जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी। इस अधिसूचना में कहा गया था कि केवल पुरुष उम्मीदवार ही इस पद के लिए आवेदन कर सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा कि यह भेदभावपूर्ण है और इस तरह के प्रावधान सेफ्टी ऑफिसर के स्थायी पद के लिए नियुक्ति का उल्लंघन करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट से प्रार्थना की कि फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 की धारा 66 (1) (बी) में जो प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करते हैं, उन सभी प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया जाए। उक्त प्रावधानों के अनुसार किसी भी महिला को केवल सुबह 6 बजे से शाम के 7 बजे तक ही फैक्टरी में काम करने की इजाजत है।
इस पर अदालत ने कहा कि हमें कार्यस्थल को बेहतर और समानता वाला बनाना है, ना कि परिस्थितियों का हवाला देकर महिलाओं को रोजगार के मौकों से वंचित करना है। हमें आधी आबादी को हर क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा अवसर देना है।
अदालत ने आगे कहा, ”दुनिया आगे बढ़ रही है और जब समाज में और देश के आर्थिक विकास में महिलाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है तो उन्हें घर के कामों में लगा दिया गया है। हम एक ऐसे मुकाम पर पहुँच गए हैं, जहाँ आर्थिक विकास के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को किसी भी इंडस्ट्री द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा, उड्यन और सूचना प्रौद्योगिकी सहित कई उद्योगों में सभी समय पर काम करने के लिए लगाया जा रहा है।”
केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा, “कई पेशों में तो चौबीसों घंटे काम करने की आवश्यकता होती है और इस तरह की चुनौतियों का सामना कर महिलाओं ने यह साबित किया है कि वे हर समय किसी भी तरह का कार्य करने में सक्षम हैं। हमें इस तथ्य पर विचार करना होगा कि फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 ऐसे समय में अधिनियमित किया गया था, जब किसी महिला को किसी भी प्रकृति का काम करना पड़ता था। इसलिए ऐसा देखा जाता था कि कारखानों में रात के समय महिला का शोषणकारी और अधिकारों का उल्लंघन किया जाता।”
कोर्ट ने कहा कि हालाँकि फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 की धारा 66 (1) (बी) केवल एक सुरक्षात्मक प्रावधान है, इसे केवल एक संरक्षण के रूप में संचालित और प्रयोग किया जा सकता है। यह प्रावधान ऐसी महिला को नौकरी देने से या काम करने से इनकार करने का बहाना नहीं हो सकता है, जिसे इस तरह के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है।
गौरतलब है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार, भारत सरकार किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी। अनुच्छेद 14 के साथ अनुच्छेद 15 भी जुड़ा है। इसमें कहा गया है, “राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा।”
वहीं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक पदों पर अवसर की समानता से संबंधित प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 16(2) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी भी पद के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे भेद किया जाएगा।