सेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने भेदभावपूर्ण माना है। शॉर्ट सर्विस कमीशन की करीब 650 महिला अधिकारियों की याचिका पर शीर्ष अदालत ने गुरुवार (25 मार्च 2021) को सुनवाई की। अदालत ने कहा कि स्थायी कमीशन के लिए अपनाए गए मूल्यांकन मापदंड ‘मनमाने और तर्कहीन’ हैं।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेना को इस पर दो महीने के भीतर पुनर्विचार करने के निर्देश दिए। सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) की मूल्यांकन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें कई खामी है। इसे पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए तैयार की गई प्रक्रिया बताया।
महिला अधिकारियों ने स्थायी आयोग और संबंधित लाभ को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में कहा गया था कि बबीता पुनिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद मेडिकल फिटनेस की मनमानी सीमा लगाई गई। इसने 5 या 10 साल की सेवा से परे उनकी योग्यता की अनदेखी हुई। अदालत ने इसे मानते हुए कहा कि इसकी वजह से कई बेहतरीन महिला अधिकारी सेना से बाहर हो गई।
SC begins to pronounce its verdict on a batch of petitions filed by women officers for permanent commission in Indian Army & Navy, seeking a direction that contempt proceedings be initiated against those who had allegedly failed in their duty to comply with SC’s earlier judgement
— ANI (@ANI) March 25, 2021
गौरतलब है कि फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने के भीतर महिलाओं के लिए सेना में स्थायी कमीशन का गठन करने के निर्देश दिए थे। उस समय अदालत ने कहा था कि महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह फैसला केन्द्र सरकार की उस याचिका पर आया था जिसमें इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट के मार्च 2010 के फैसले को चुनौती दी गई थी।
केंद्र का तर्क था कि सेना में ‘कमांड पोस्ट’ की जिम्मेवारी महिलाओं को नहीं दी जा सकती, क्योंकि उनकी शारीरिक क्षमता इसके लायक नहीं और उनपर घरेलू जिम्मेदारियाँ भी होती हैं। इन कारणों के साथ केंद्र ने कहा था कि इस पद की चुनौतियों का सामना महिलाएँ नहीं कर सकेंगी। इस पर कोर्ट ने कहा कि कमांड पोस्ट पर महिलाओं को आने से रोकना समानता के विरुद्ध है।