सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हाल ही में उच्च स्तरीय समिति द्वारा उनके पद से हटाया गया था। इस समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, न्यायाधीश सीकरी (जो चीफ़ जस्टिस की जगह आए थे) और कॉन्ग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे। आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने का महत्वपूर्ण कारण उन पर लगे भ्रष्टाचारों के आरोप हैं। इस मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज़ की थी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट में आलोक वर्मा के ख़िलाफ बहुत ही संज़ीदा आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट में आयोग ने बताया कि 31 अगस्त 2018 को उन्हें शिकायत मिली। जिस पर उन्होंने सीबीआई से 11 सितंबर को मामले से जुड़े प्रासंगिक रिकॉर्डों को 14 सितंबर तक पेश करने को कहा। लेकिन आयोग के कई बार याद दिलाने के बाद भी इन रिकॉर्डों को 23 अक्टूबर तक पेश नहीं किया गया। जिसके बाद ही आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने का फैसला लिया गया।
पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा के लिए मुश्किलें और भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे मामले जो उनके पद के कारण दबे रह गए थे, अब खुल कर सामने आ रहे हैं। जो साबित करते हैं कि अपने पद और दायित्वों के प्रति की गई बेईमानी उनके गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये का परिणाम नहीं हैं, बल्कि उनके भीतर छिपे बेईमान शख़्स की हकीकत है। इस लेख में हम आपको आलोक वर्मा पर लगे कुछ केसों के बारे में बताएंगें, जो साबित करते हैं कि सीबीआई प्रमुख के पद से हटाया जाना कितना अनिवार्य था।
हाल ही में आयोग ने आलोक वर्मा को 6 नए आरोपों में फिर से घेरे में ले लिया है। इन मामलों पर एंटी करप्शन वॉचडॉग ने जाँच के बाद पिछले साल 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दायर की थी।
आलोक पर लगाए गए 6 नए आरोपों में नीरव मोदी मामला और विजय माल्या के केस भी शामिल हैं। आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 26 दिसंबर 2018 को सीबीआई से एक ख़त के ज़रिए, इन मामलों से जुड़े हर दस्तावेज़ पेश करने को कहा गया था, ताकि पूरी जाँच को तार्किकता के धरातल पर सँभव किया जा सके। देश से फ़रार हुए माल्या और नीरव मोदी से जुड़े कागज़ों की माँग अगले बुधवार (जनवरी 16, 2019) तक की गई है, जबकि बाकि दस्तावेज़ों की तारीख़ को पेंडिंग रखा गया है।
आलोक वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने नीरव मोदी के मामले में जाँच बिठाकर छानबीन कर अपराधियों को पकड़ने से ज्यादा मामला को रफ़ा-दफ़ा करने का प्रयास किया था। इसके बाद आलोक पर सी शिवशंकरन का मामला समेट कर उन्हें बचाने का भी आरोप है। बता दें कि सी शिवशंकरन पर IDBI बैंक के साथ 600 करोड़ रुपए के लोन फ्रॉड का आरोप है।
मोइन कुरैशी केस में भी आयोग की रिपोर्ट में आलोक वर्मा पर संदेह जताया गया कि उन्होंने सतीश साना से 2 करोड़ की रिश्वत ली थी। इस रिपोर्ट के सबूतों (circumstantial evidence) के आधार पर पूरा सच सामने आ सकता है, अगर कोर्ट के द्वारा जांच का आदेश मिले।
आईआरसीटीसी केस में भी आलोक वर्मा पर आरोप है। इस केस में उन्होंने संदिग्ध राकेश सक्सेना का नाम FIR से नाम हटवा दिया था। जिसके पीछे कारण बताया गया कि राकेश सक्सेना उनके करीबियों में से एक थे।
पशु तस्करी के मामले से भी आलोक अछूते नहीं हैं। इस मामले में भी उन पर कई आरोप लगे हैं, हालांकि इनकी अभी पुष्टि नहीं हुई है।
हरियाणा में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रही जाँच में पुख़्ता सबूत के लिए समय और रिसोर्सेज की जरूरत पर आयोग ने बल दिया। हालाँकि आयोग का कहना है कि अगर इस पर उन्हें कोर्ट से जाँच का आदेश मिलेगा तो वो इसका निष्कर्ष दो हफ्तों में जरूर निकाल देंगे।
दिल्ली एयरपोर्ट पर सोने की तस्करी करने वाले राज़कुमार पर भी आलोक वर्मा ने कोई कदम नहीं उठाया था। इसकी पुष्टि भी आयोग की रिपोर्ट द्वारा की गई है।
इसके अलावा भी बहुत से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जो आलोक की साख पर सवाल उठाते हैं। लखनऊ की ब्राँच में नियुक्त एडिशनल एसपी सुधाँशु खरे ने भी आलोक पर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में एटीएस एडिशनल एसपी राजेश साहनी की आत्महत्या के मामले पर आलोक ने जाँच करने से मना कर दिया था। खरे का कहना है कि ऐसा उन्होंने यूपी पुलिस के कुछ अफसरों को बचाने के लिहाज़ से किया था। जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस मामले पर सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
खरे ने आलोक वर्मा पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में पकड़े गए कुछ लोगों को बचाने का भी आरोप लगाया था। साथ ही रंजीत सिंह और अभिषेक सिंह नाम के लोगों को लखनऊ एसबीआई बैंक फ्रॉड के आरोपों से बचाने का भी प्रयास किया था।
आश्चर्य की बात है कि खरे ही वो अधिकारी हैं, जिन्होंने संयुक्त निदेशक राजीव सिंह के खिलाफ विभाग जाँच करने की माँग की थी, लेकिन राजीव पर जाँच बिठाने की जगह आलोक ने खरे पर ही प्रारंभिक जाँच के आदेश दे दिए।
ये सारे मामले और सीवीसी की रिपोर्टों में लगाए गए आरोप निश्चित रूप से ही बेहद गंभीर हैं। मुख्य रूप से विजय माल्या, नीरव मोदी, आईआरसीटीसी मामले जैसे हाई प्रोफाइल मामले। इनके साथ अन्य मामलों को मिलाकर देखेंगे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आलोक वर्मा सीबीआई डायरेक्टर नहीं बल्कि वो दीमक थे, जो अपने पद और कुर्सी से जुड़े दायित्वों के साथ-साथ सीबीआई जैसी संस्था को लगातार खोखला कर रहे थे।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न्यायमूर्ति सीकरी ने सीवीसी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद
आलोक वर्मा को पद से हटाने का फ़ैसला किया जबकि कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन दोनों के फ़ैसले पर अपनी आपत्ति दर्ज़ की थी।