2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए विपक्षी दल कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। नरेंद्र मोदी के लहर से पार पाने के लिए झारखंड में विपक्षी दलों ने एकजुट होना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन ने कॉन्ग्रेस व अन्य दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना ज़ाहिर की है।
झारखंड में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं। राज्य में आदिवासियों की संख्या अच्छी तादाद में है। आदिवासियों के वोट बैंक पर झामुमो की पकड़ मजबूत है। यही वजह है कि आदिवासी नेता होने के नाते शिबू सोरेन की पार्टी को आदिवासियों का वोट मिल जाता है। जबकि राज्य के गैर-आदिवासी वोटों का झुकाव भाजपा की तरफ़ ज्यादा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि झारखंड में अगर किसी पार्टी ने गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री दिया भी है तो वो भाजपा ही है।
भारतीय राजनीति में शिबू सोरेन कौन हैं? शिबू एकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने खुलेआम कॉन्ग्रेस सरकार को बचाने के लिए रिश्वत लेने की बात स्वीकार की थी। शिबू सोरेन वो नेता हैं, जिनके ऊपर भीड़ को उकसा कर 10 लोगों को मरवाने का आरोप है। यही नहीं, शिबू सोरेन पर सत्ता का भय दिखाकर लोगों के जमीन को हथियाने और अपने पीए को जान से मरवाने के मामले भी हैं। इनमें से कुछ मामलों में शिबू बरी हो गए हैं, कुछ मामले में जाँच चल रही है, जबकि कुछ मामले जग-ज़ाहिर हैं।
आज शिबू से जुड़े एक ऐसे ही मामले की बात करते हैं, जो सबों के सामने है। प्रभात खब़र को लिखे अपने लेख में वरिष्ट पत्रकार सुरेंद्र किशोर लिखते हैं कि एक अप्रैल 1997 को दिल्ली की एक आदालत में लोग बहस के बीच में झामुमो नेता का बयान सुनकर हतप्रभ रह गए थे।
दरअसल रिश्वत के आरोपित झामुमो सांसद शैलेंद्र महतो ने बहस के दौरान कहा था, “जज साहब, सरकार मेरे बैंक खाते में जमा रिश्वत की राशि जब्त कर सकती है।” और इस तरह झामुमो सांसद ने स्वीकार किया कि शिबू सोरेन के द्वारा पीवी नरसिंह राव के समर्थन में वोट देने के लिए उन्हें 40 लाख रुपए रिश्वत दिए गए थे।
याद रहे कि केंद्र में कॉन्ग्रेस सरकार को बचाने के लिए शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो, साइमन मरांडी व सूरज मंडल ने करोड़ों रुपयों का घूस लिया था। इस मामले में फ़ैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा था कि संविधान ने हमारे हाथ बांध रखे हैं। कोर्ट ने तब जो कहा था उससे ज़ाहिर है कि भविष्य में रिश्वतखाेरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए संविधान में संशोधन की ज़रूरत है। पर दु:ख की बात यह है कि इतने साल के बाद भी किसी राजनीतिक दल ने अब तक इस मामले के लिए संशोधन की दिशा में कोई पहल नहीं की है।
अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में ही शिबू ने अपराध का सहारा लिया था। दरअसल 1975 की एक रैली में शिबू ने लोगों के बीच भड़काऊ भाषण दिया था। शिबू के भाषण को सुनकर लोगों की भीड़ उग्र हो गई थी। उग्र भीड़ ने 10 लोगों को मौके पर लिंच कर दिया था। इन दस में से नौ लोग मुस्लिम समुदाय के थे। राजनीति में आदिवासियों का मसीहा बनने के लिए शिबू ने उग्र रूप धारण कर लिया था।
झारखंड के बोकारो जिले में शिबू सोरेन की बहु सीता सोरेन पर ज़बरन ज़मीन कब्जा करने का आरोप है। बोकारो स्टील प्लांट के 40 से अधिक रिटायर्ड अफ़सरों ने शिबू सोरेन पर ज़मीन कब्ज़ाने का आरोप लगाया है। एनडीटीवी रिपोर्ट के मुताबिक लोगों ने कई अधिकारियों के पास ज़मीन कब्जा मुक्त कराने का आग्रह किया, लेकिन किसी अधिकारी ने शिबू सोरेन के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखाई।
जानकारी के लिए बता दें कि 2000 में बिहार से झारखंड राज्य अलग हुआ था। झारखंड के अलग होने के बाद दो दशक में पहली बार भाजपा ने राज्य में स्थाई सरकार बनाई है। इससे पहले शिबू सोरेन के झामुमो व बाबूलाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) जैसे दलों के बीच सत्ता का बंदर-बाँट होता रहा था। ऐसे में एक बार फ़िर से झारखंड में झामुमो व कॉन्ग्रेस के बीच राजनीतिक गठबंधन के कारण पुरानी यादें तरोताजा होना स्वाभाविक सी बात है।