पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने पूरे विश्व का ध्यान इस समय आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे की तरफ मोड़ दिया है। लेकिन, आतंकवाद के केंद्र पाकिस्तान पर अब भी कोई खासा फर्क़ पड़ता नहीं दिख रहा है। एक तरफ़ जहाँ पूरे विश्व भर में इस भयावह घटना की निंदा की जा रही है। वहीं पाकिस्तान निंदा करना तो छोड़िए, बल्क़ि कह रहा है कि इस घटना से उसका कोई लेना-देना नहीं है।
पुलवामा में गुरुवार (फरवरी 14, 2019) को हुए आतंकी हमले की पूरी ज़िम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली। पाकिस्तान समर्थित इस संगठन का सरगना मसूद अजहर है, वही मसूद जिसका नाम साल 1991 में भारतीय विमान की हाई जैकिंग, 2001 में संसद पर हमले में और 2016 में पठानकोट के हमले में आ चुका है।
आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं के बाद भी लगातार पाकिस्तान उसमें अपनी संलिप्ता नकारता आया है। इस भयावह घटना के बाद भारत संयुक्त राष्ट्र से पाकिस्तान में आज़ादी से घूम रहे इस आतंकी को बार-बार प्रतिबंधित करने की माँग कर रहा है। वहीं पाकिस्तान अपने यहाँ से संचालित होने वाली सभी आतंकी गतिविधियों पर बिल्कुल भी शर्म महसूस नहीं करते हुए कहता है कि वो भारत के लगाए आरोपों को ख़ारिज करता है।
पूरे विश्व को मालूम है कि पाकिस्तान की धरती पर लगातार आतंकवादियों को पनाह दी जाती रही है। इसकी सूची बहुत लंबी है। लेकिन, पाकिस्तान को इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। नतीजतन भारतीय सेना के ज़वानों को बिना किसी प्रत्यक्ष युद्ध के ही शहीद होना पड़ रहा है। 2016 में उरी हमले के बाद सेना पर यह दूसरा सबसे बड़ा आतंकी मामला सामने आया है।
आज पीएम आवास पर हुई सुरक्षा को लेकर चर्चा के बाद वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस ले लिया गया है। साथ ही उन्होंने बैठक के बाद यह भी आश्वाशन दिया कि सरकार पूरी कोशिश करेगी कि पाकिस्तान को दुनिया से अलग कर दिया जाए।
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जितने कड़े क़दम उठाए जाएँ, वो बहुत कम हैं। पाकिस्तान का कहना है कि उसका इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए भारत उसे इससे न जोड़े। सोचिए, जिस पाकिस्तान में हर आतंकी संगठन अपना घर मुख्यालय बनाकर रह रहा हो, उस पाकिस्तान को इनका अनुमान बिल्कुल नहीं होगा क्या? लगातार धर्म की आड़ में आतंकियों को पालने वाले पाकिस्तान को अच्छे से यह बात मालूम है कि जो आतंक का बीज वो अपनी सरज़मीं पर लगाता है, उसकी जड़ें भी बनेंगी और वो फैलेंगी भी। जैश-ए-मोहम्मद से लेकर अनेको आतंकियों को और आतंकी संगठनों को आज पाकिस्तान शरण देता है।
हर आतंकवादी को मिलती है जहाँ पनाह…उसे पाकिस्तान कहते हैं!
पाकिस्तान में मसूद ने 31 जनवरी 2000 को जैश-ए-मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन का गठन किया था। शायद, इतना काफ़ी है कि पाकिस्तान को ही इस हमले का आरोपित बताया जाए। विदेश मंत्रालय के अनुसार इस आतंकी संगठन के सरगना मसूद अज़हर को पाकिस्तानी सरकार ने पाकिस्तान नियंत्रण वाले इलाकों में अपनी गतिविधियों चलाने और आतंकी ठिकानों को बढ़ाने के साथ ही भारत में और अन्य किसी भी जगह पर हमला करने की छूट दे रखी है। हालाँकि भारत ने कई बार मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने का प्रयास किया है लेकिन इसमें चीन हर बार का अपनी टाँग फँसा देता है।
इसके अलावा दुनिया में सबसे ज़्यादा आतंकी हमलों को अंजाम दे चुका ‘तालिबान’ 1994 में अपने अस्तित्व में आया था। आज भी अलग-अलग देशों में यह सक्रिय है। क़रीब 60 हज़ार से अधिक आतंकियों का इसमें शामिल होने का अनुमान है। तालिबान की आतंकी गतिविधियों ने अफ़ग़ानिस्तान में हमेशा से ही ख़ौफ का माहौल बनाया हुआ है। जब अमरीकी सेना ने तालिबान को वहाँ से भगाया तो आतंकियों के कर्ता-धर्ता पाकिस्तान ने उसे अपने राष्ट्र में जगह दी। नतीजन आज पाकिस्तान के क्वेटा व पेशावर में इसके मुख्यालय कर मौजूद हैं।
अलकायदा जैसे खूँखार आतंकी संगठन का मुखिया ओसामा बिन लादेन भी पाकिस्तान में ही मिला था। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का नेतृत्व करने वाले हाफिज़ सईद भी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है। यह वही हाफिज़ सईद है जिस पर अमेरिका एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित कर चुकी है, लेकिन पाकिस्तान की मेहरबानी से हाफ़िज न नागरिकों की तरह आम जीवन जी रहा है, चुनाव के लिए पार्टी भी बना रहा है और चुनाव के लिए मैदान में उम्मीदवार भी उतार रहा है।
पाकिस्तानी तालिबान कहे जाने वाले ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ की स्थापना 2007 में हुई थी। इसमें 25 हज़ार आंतकी शामिल हैं। अमेरिकी संस्था नेशनल कंसोर्टियम फॉर द स्टडी ऑफ टेररिज्म एंड रिस्पॉन्सेज टू टेररिज्म ने अपनी रिपोर्ट में इसे 2017 का दुनिया का 11वां सबसे खूंखार आतंकी संगठन बताया है।
पाकिस्तान में लश्कर-ए-झंग्वी नाम का आतंकी संगठन भी पनाह पाए हुए है। 2009 में हुए श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुए आतंकी हमले में भी इसी संगठन का नाम आया था।
हिज़्बुल मुज़ाहिद्दिन जिसका नाम आए दिन कश्मीर में हो कही आतंकी गतिविधियों में आता रहता है, उसका गठन भी 1989 में हो गया था। इस संगठन के आतंकी कैंप पाकिस्तान की सरज़मीं से चलते हैं। इसका मुख्यालय मुज़्फ़्फरबाद में है। इस समय इसके मुखिया सैयद सलाहुद्दीन हैं। जिसे अमेरिका ने 2017 में स्पेशियली डेजिनेटेड ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया है।
इतने सारे आतंकियों को पनाह देने वाला पाकिस्तान जब अपनी ग़लती को मानने की जगह उस पर हाथ खड़े करता है। तो ज़ाहिर है कि किसी भी राष्ट्र का और अपने राष्ट्र से प्रेम करने वाले राष्ट्रवादी का ख़ून खौलेगा ही। आज भारत में गौ प्रेम में अगर व्यक्ति कुछ बोल दे तो उस पर हिंदू आतंकी होने का टैग लग जाता है। लेकिन, पाकिस्तान की इन हरक़तों पर बोलने वाले सेकुलर लोग ऐसी घटनाओं पर शांति बनाए रखने जैसी बातें करते हैं। पाकिस्तान
का अस्तित्व में होना (जब तक वो आतंकवाद को पनाह देता है पूरे विश्व के लिए ख़तरनाक है, इसलिए ज़रूरी है उसे अलग कर दिया जाए।
ऊपर लिखे आतंकी संगठन बहुत चुनिंदा है जिनके अस्त्तिव में होने की ख़बर हमें मालूम है। लेकिन, सोचिए एक सरज़मीं पर जहाँ इतने आतंकी संगठन पल-पोस कर बढ़ रहे हों। वहाँ के आम जनों पर इसका क्या फ़र्क़ पड़ता होगा। क्या कभी वहाँ के नागरिकों को आतंकियों को शरण देने पर विरोध नहीं करना चाहिए? या, हमलों के बाद पल्ला झाड़ लेने वाली सरकार को क्या इसके ख़िलाफ़ कड़े क़दम नहीं उठाने चाहिए? ये कोई पहली घटना तो है नहीं… अगर हर आम जन के मन में उठ रहे सावलों के जवाब पाकिस्तान नहीं दे सकता, तो क्या यह मान लिया जाए कि वहाँ का हर व्यक्ति आतंकवाद के समर्थन में हैं। और, अगर ऐसा है तो इल्ज़ाम लगने पर पल्ला क्यों झाड़ा जा रहा है?
आख़िर कब तक 72 हूरों की कहानी और काफ़िरों के गुनाहों की शिक्षा देकर उन्हें आतंकी बनने की ओर बढ़ावा मिलता रहेगा? कब तक शांति को बनाए रखने वाला इस्लाम हर आतंकी संगठन का धर्म होगा? पाकिस्तान के कारनामों पर मैं अगर सवाल न भी करूँ तो यह सब सबूत बोलने लगते हैं, कि उरी से लेकर पुलवामा तक, संसद से लेकर पठानकोट तक सबका ज़िम्मेदार सिर्फ़ पाकिस्तान ही है।