कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी प्रधानमंत्री मोदी पर जिन आरोपों को सबसे ज्यादा लगाते हैं (राफेल और ‘गुण्डे’ हिन्दूवाद के सरासर झूठ के बाद), उनमें से एक सत्ता का केन्द्रीकरण है। उनके अनुसार मोदी सरकार में एक आदमी का ‘आई, मी, माइसेल्फ़’ है और वह हैं ख़ुद मोदी। उनके नए ‘चचा’ अरुण शौरी भी मोदी को आत्ममुग्ध (narcissistic) कहते हैं। इसी तरह अमित शाह को भी माइक्रोमैनेजमेंट के नाम पर तानाशाही फ़ैलाने और वन-मैन-शो के रूप में पार्टी चलाने का आरोप लगता रहा है।
आत्ममुग्धता और तानाशाही का जवाब तो मोदी-शाह ही देंगे, पर इस तथ्य में सच्चाई है कि मोदी-शाह बहुत सारे उत्तरदायित्व (और उन उत्तरदायित्वों से जुड़े अधिकार) अपने हाथ में रखते हैं- यह नेतृत्व करने का एक तरीका होता है, केन्द्रीयकृत तरीका, जहाँ प्रमुख नेता सबसे ज़रूरी कार्यों को अपने हाथ में रखता है।
दूसरा तरीका होता है नियुक्तिकरण (delegation of work)- जहाँ आप अलग-अलग लोगों को उनकी क्षमता और कार्य की आवश्यकता के हिसाब से नियुक्त कर देते हैं और आप एक फ़ासले से नज़र रखते हैं।
इन दोनों में से आप अपनी आवश्यकता के हिसाब से कोई भी एक तरीका पकड़ सकते हैं, कोई बुराई नहीं। पर यह तय है कि यदि आप एक कोई तरीका पकड़ने को किसी के ख़िलाफ़ चुनावी मुद्दा बना देंगे तो आप को इसका जवाब तो देना होगा कि वैकल्पिक तरीके में आप कितने पारंगत हैं।
बयान अभिजित का भले था, पर गलती राहुल गाँधी की थी
मैंने सोशल मीडिया पर देखा कि राजनीतिक टिप्पणीकार और डीयू के शिक्षक अभिनव प्रकाश ने लिखा था ‘(विशुद्ध) अकादमीशियन को टीवी डिबेट में नहीं भेजना चाहिए… अभिजित बनर्जी के बयान ने यह साबित कर दिया…’
मामला यह था कि टाइम्स नाउ के टीवी डिबेट में अभिजित यह सीधे-सीधे बोल आए कि राहुल गाँधी की चर्चित स्कीम ‘न्याय’ तभी लागू हो सकती है, जब मौजूदा करों की दरें बढ़ा दी जाएँ। उन्होंने महंगाई टैक्स को भी वापस लाने की वकालत कर दी। अभिनव प्रकाश के अनुसार लोगों ने उसमें से यह अर्थ निकाला कि यदि कॉन्ग्रेस वापस आई तो टैक्स बढ़ जाएँगे, और लोगों का यह सोचना कॉन्ग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है।
Nothing’s viable without raising taxes: Abhijit Banerjee, Economist (NYAY Advisor) while speaking to @RShivshankar | #NyayKaSach pic.twitter.com/AdZSGQFmVd
— TIMES NOW (@TimesNow) March 29, 2019
एक मिनट के लिए इस स्कीम के ख़ुद के फायदे-नुक़सान को भूलकर केवल इस बयान को देने के अभिजित के कृत्य के बारे में सोचिए। चुनाव के बीचों-बीच मध्यवर्ग की बदहाली के लिए अपने विरोधी को जिम्मदार ठहरा रही पार्टी की योजना का बचाव कर रहा इन्सान यह कहता है कि उसके नेता की सरकार आई तो मध्यम वर्ग पर और ज्यादा टैक्स लगाकर उससे ‘रेवड़ियाँ’ बाँटी जाएंगी!!
अभिजित बनर्जी की इस ‘गलती’ के लिए उन्हें नहीं, राहुल गाँधी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। एक नेता के लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि उसकी टीम में कौन सा व्यक्ति किस कम के लिए सही है। जितना मैंने अभिजित बनर्जी के बारे में देखा-सुना-पढ़ा, उसके हिसाब से वह कॉन्ग्रेस को वामपंथी रेवड़ी-नॉमिक्स राह पर सलाह देने के लिए तो सही व्यक्ति थे, पर राजनीतिक रूप से टीवी डिबेट में उसका बचाव करने के लिए नहीं।
वह तो कॉन्ग्रेस के शायद आधिकारिक सदस्य भी नहीं हैं। एक सलाहकार ( consultant) को राहुल गाँधी ने चुनावी सरगर्मी के बीच इतनी विवादास्पद स्कीम के बचाव के लिए भेज दिया? बिना यह सोचे-समझे कि अभिजित बनर्जी को राजनीति का न इतना अनुभव होगा न ज्ञान कि वह जनता के बीच स्वीकार्य रूप से कॉन्ग्रेस की बता रख पाएँ?
राहुल गाँधी का अभिजित बनर्जी को भेजना न केवल यह दिखाता है कि उनमें महत्वपूर्ण नेतृत्व गुण ‘नियुक्तिकरण’ (delegtation skills) का अभाव है बल्कि यह भी दिखाता है कि या तो कॉन्ग्रेस में इस स्कीम का बचाव करने के लिए राजनीतिक रूप से कुशल लोग ही नहीं मिल रहे, और अगर मिल रहे हैं तो राहुल गाँधी शायद अपनी और कॉन्ग्रेस की स्थिति की गंभीरता को इतना समझ नहीं पा रहे हैं कि उन लोगों को मैदान में उतारें।
नियुक्ति करनी आपको आती नहीं, केन्द्रीकरण से आपको दिक्कत है
इसके अलावा एक सवाल राहुल गाँधी से किसी को भी पूछना चाहिए कि अगर सही लोगों की सही नियुक्ति करना आपको आ नहीं रहा है, और मोदी-शाह के सब काम खुद करने से आपको समस्या है तो देश चले कैसे? किसी न किसी को कम तो करना पड़ेगा न?
या वह इस देश को फिर से 10 साल के उसी पक्षाघात (paralysis) में झोंक देना चाहते हैं जहाँ उनके रक्षा मंत्री एंटनी को जब सही निर्णय लेना नहीं आता था तो वे पद छोड़ने की बजाय फाइलें दबा कर बैठे रहे और उनकी अकर्मण्य ईमानदारी की शेखी कॉन्ग्रेस बघारती रही?