बेंगलुरु में 11 अगस्त 2020 की रात कुछ ही घंटों में सब कुछ खाक हो गया। 60 से अधिक पुलिसकर्मी एवं कई स्थानीय लोग जख्मी हो गए। करोड़ों की सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ। कथित तौर पर सोशल मीडिया में एक कमेंट की वजह से यह दंगा हुआ।
कॉन्ग्रेस के दलित विधायक आर मूर्ति के भतीजे नवीन पर पैंगम्बर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक कमेंट करने का आरोप है। इसकी वजह से संप्रदाय विशेष के लोग विधायक के घर के बाहर इकट्ठा होकर हिंसा करने लगे। विधायक ने इस पोस्ट के लिए माफी भी मॉंगी। बावजूद जो कुछ हुआ उससे जाहिर है कि दंगाई तो बस हिंसा का बहाना खोज रहे थे।
देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में दंगाई विधायक के घर के बाहर और केजी हाली पुलिस थाने में जमा हो गए। वे आरोपी को तत्काल फाँसी की मॉंग कर रहे थे। मानो न्यायपालिका वे ही चलाते हों और जो उन्होंने कह दिया वही सच है।
पुलिस ने भीड़ को समझाने की कोशिश की। भरोसा दिलाया कि वे उचित कार्यवाही कर रहे हैं। परंतु भीड़ हिंसक हो गई। वाहनों और थाने को फूॅंक दिया गया। जल्द ही बेंगलुरु से भयावह तस्वीर सामने आने लगी।
सोशल मीडिया पर इस तरह का माहौल बनाया गया कि मानो इस्लाम खतरे में आ गया है। संप्रदाय विशेष के लोगों को जुटने का संदेश दिया गया। बेंगलुरु में हर जगह संप्रदाय विशेष की भीड़ जमा होने लगी। मंदिर के पास भी उन्हीं की भीड़ थी। जिसे बाद में मानव श्रृंखला का नाम देकर बताया गया कि वे तो मंदिर की सुरक्षा कर रहे थे।
ऐसा नहीं है कि किसी धर्म को लेकर टिप्पणी पहली बार हुई थी। इसी हिंदुस्तान में हिन्दू देवी-देवताओं पर अश्लील फब्तियॉं कसी जाती है। उनके अश्लील चित्र बनाए जाते हैं। कॉमेडी शो में हिन्दू संस्कृति, हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाया जाता है। माँ दुर्गा को वेश्या तक कहा गया। सीता माता एवं रावण के सम्बंध बताना एवं जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के चरित्र पर सवाल उठाना आम है। हाल ही में असम में एक प्रोफेसर ने भगवान राम पर अश्लील टिप्पणी की थी। लेकिन देश में कहीं भी न हिन्दू धर्म खतरे में आया, न ही कहीं दंगे हुए।
केरल में माँ दुर्गा की नग्न तस्वीर का पोस्टर वामपंथी कई बार लगा चुके हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने माँ दुर्गा को वेश्या तक कह दिया था। अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बकायदा अकाउंट हैं, जिनका काम ही हिन्दू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक पोस्ट करना है।
ऐसा भी नहीं है कि हाल के दिनों में ही यह देखने को मिला है। कथित पेंटर एमएफ हुसैन हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए हिन्दू देवियों के अश्लील चित्र बनाता था।
लेकिन कभी हिंदू हिंसक नहीं हुआ। यदि इनके खिलाफ आवाज उठती भी है तो हिंदू अकाउंट की रिपोर्ट कर शांत हो जाते हैं। लेकिन बेंगलुरु में एक फेसबुक कमेंट ने सुनियोजित दंगे का रूप ले लिया।
ऐसे में सवाल उठता है कि ये अचानक हुआ या इसकी पहले से योजना तैयार थी? इसी साल फरवरी में भयानक हिंदू विरोधी दंगे हुए थे। दंगों के एक आरोपित ताहिर हुसैन ने ने कबूल किया है दंगों की योजना कई महीने पहले ही बना ली गई थी। इन्हें विदेशी ताकतों का समर्थन और पैसा भी हासिल था।
दिल्ली दंगों का कारण वे बड़े फैसले थे जो देश की संसद और न्यायपालिका ने लिए थे। इनमें मुख्य रूप से तीन तलाक, राम मंदिर, नागरिकता संशोधन कानून था। सुनियोजित तरीके से पहले यह दुष्प्रचार किया गया कि ये सब इस्लाम विरोधी हैं। फिर कुछ राजनीतिक संगठन जिनमें वामपंथी एवं कट्टरपंथी ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान से संबंध रखने वाले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे कट्टर इस्लामिक संगठनों ने हिंसा की साजिश रची।
अमेरिका के हालिया दंगों में ANTIFA नामक एक संगठन का हाथ पाया गया था। इसके बाद अमेरिकी सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा यिा। ANTIFA का सम्बन्ध भी दिल्ली दंगों से जुड़ा मिला। वामपंथियों के नेतृत्व में यह संगठन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी सक्रिय है।
ऐसे में बेंगलुरु में भी जो कुछ हुआ वह सुनियोजित ही लगता है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में अचानक कुछ ही घंटों के भीतर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जुट जाना, दंगाई भीड़ के इस्लामी नारे, आगजनी, हिंसा, सब कुछ इसी ओर इशारा करते हैं।
दिल्ली दंगों की जॉंच में अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उससे भी जाहिर है कि बेंगलुरु में भी इस तरह की हिंसा बिना योजना के मुमकिन नहीं थी। इस मामले में हैरत की बात यह भी है कि कॉन्ग्रेस विधायक मूर्ति दलित समुदाय से आते हैं। बावजूद न तो कथित दलित हितैषियों ने इस मामले में चुप्पी तोड़ी है और न ही कॉन्ग्रेस ने अपने विधायक और उनके परिवार को निशाना बनाकर किए गए इस हिंसा की निंदा की है।
भारत में आज भी ऐसे लोग हैं जो गजवा-ए-हिन्द का सपना लिए बैठे हैं। 1946 के लेकर आज तक इन दंगों की जगह भले बदली हो पर तरीका आज भी वही है।