अपने विवादित बयानों के सहारे राजनीति की दुकान खोले बैठे भाकपा नेता और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार फिर से एक बार आसमां पर थूकने की कुचेष्टा कर बैठे हैं। महाबौद्धिक श्री श्री कन्हैया कुमार जी अपनी विवादित ट्वीट को लेकर आज चर्चा में रहे। भाई फिर थोड़ा भावनाओं में बह गए आज। श्रीमान जी ट्वीट करते हैं कि हिन्दुओं के लिए धर्म आस्था का सवाल है तो वहीं संघियों के लिए महज एक धंधा!! देखिये सर क्या क्या बोल देते हैं ई बड़का लोग…. अब जैसे संघियों में हिन्दू न होकर किसी दूसरे गृह के लोग शामिल हैं। खैर चलिए अगर ये मान भी लें कि संघी सब के लिए धर्म एक धंधा ही है तब भी क्या वामपंथियों को यह अधिकार है कि वे दूसरों को धर्म जाति भाषा आदि पर राजनीति न करने का उपदेश ठेलें?
हिन्दू होने और संघी होने में क्या फ़र्क़ है?
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) February 6, 2020
हिन्दुओं के लिए धर्म आस्था है और संघियों के लिए धंधा।
धर्म अफीम है का सूत्रवाक्य देने वाले वामपंथियों ने जितना धर्म को राजनीति में घुसेड़ा है उतना तो शायद किसी ने भी नहीं। 1989 के पहले अयोध्या विवाद कभी उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा जितना इस मुद्दे को अपनी राजनीति के लिए हाईजैक करने वाले वामपंथियों ने बना दिया था। वामी उपन्यासकार रोमिला थापर जैसों ने कहानियों का ढेर लगाते हुए अयोध्या के साधारण से विवाद को हिन्दू मुस्लिम के बीच गहरी खायी खोदने के लिए इस्तेमाल किया।
लेकिन फिर इतना दूर क्यों जाना है जब हमारी याददाश्त में रोहित वेमुला की मृत्यु की सरेआम हुई बिकवाली ताज़ा ही है। रोहित वेमुला की मौत को एक दलित की मौत, एक दलित की मौत कह दमभर भुनाने वाले वामपंथी गैंग लाश नोच खाने वाले गिद्धों से कहाँ ही कम ठहरते हैं। नहीं ठहरिये! गिद्धों से इनकी तुलना करना अन्याय हो जाएगा उनके साथ, जो मृत इंसानी देहों, मृत पशुओं को खा पर्यावरण संरक्षण में अपनी अद्वितीय भूमिका का निर्वहन करते हैं। इसलिए गिद्धों के लिए संरक्षण के लिए कई सारे सरकारी गैर सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन विलुप्त होने की कगार पर पहुँचे वामपंथियों के लिए किसी भी तरह के संरक्षण की एकमात्र आस वही इस्लामिस्ट्स हैं जो कश्मीर के पुलवामा में बम बांध फटने के साथ-साथ शाहीन बाग या शरजील इमाम जैसे जिहादी तत्वों के रूप में अक्सर सामने आते रहते हैं।
इसलिए जब इस्लामिस्ट्स के तलवों में तेल लगाते वामपंथी किसी और पर धर्म का धंधा करने का आरोप लगाते हैं तो समझ नहीं आता कि इंसान ऐसे बयानों पर प्रतिक्रिया दे भी तो कैसे!
“अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल अभी जिन्दा हैं” का नारा बुलंद करने वाले गैंग के सरदार शिरोमणि आजकल बिहार में कोई जन-गण-मन यात्रा पर निकले हैं। देखिए कितनी विडंबना है यह कि देश के ‘टुकड़े टुकड़े करने’ का सपना पालने वाले गैंग भी अब कैसी-कैसी यात्रा निकाल रहे हैं। इनकी यह यात्रा नागरिकता कानून में हुए संशोधनों समेत उस NRC के खिलाफ भी निकाली जा रही है जिसका अभी कहीं कोई अता-पता ही नहीं है। इसी यात्रा के दौरान सुपौल में हुए हमले के बाद शायद दिमागी सुध-बुध खो बैठे कन्हैया कुमार अपना आपा खो, थोड़ा इधर उधर निकल गए। कन्हैया भाई कहते हैं कि ‘हम आजाद भारत में आजादी’ के नारों से आकाश गुंजा देंगें। अब कोई पूछे इनसे कि कौन वाली आजादी के नारे? जिन्नाह वाली आजादी जिसके नारे शाहीन बाग में लगाए जाते रहे या ‘शरजील इमाम वाली आजादी’ जिसमें 5 लाख कथित अल्पसंख्यकों को इकट्ठा कर भारत की ‘चिकन नेक’ को काट असम को देश से अलग करना शामिल है।
कन्हैया भाई की याददाश्त अगर कमजोर है तो उनको याद दिला दिया जाए कि अभी 6 महीने पहले ही वो लोकसभा चुनाव में अपनी जाति भुनाते घूम रहे थे। सर्वहारा की राजनीति की दुहाई देने वाले कन्हैया लोकसभा चुनाव के दौरान किस सरलता से भूमिहार हो गए पता ही नहीं चला। वो तब घर के भीतर फोटोग्राफरों के लिए पलक पाँवडें बिछाए खुद के परिवार की आर्थिक स्थिति को कैश कराने की कशिश में जुटे नजर आते थे।
खैर उनकी मंशा जो भी हो इस यात्रा के पीछे लेकिन अगर “भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह” कहने वाले ‘जन-गण-मन’ नामक यात्रा निकालने में जुट गए हैं तो फिर और कितने अच्छे दिन चाहिए आपको?