जिस समय राजेंद्रनगर और कंकड़बाग में नाव चल रही है, ठीक उसी समय बोरिंग रोड और बेली रोड में धूल उड़ रही है। अगर ये प्राकृतिक आपदा है, तो फिर ऐसा क्यों?
साहब, अपनी गलती के लिए प्रकृति को दोष मत दीजिए। ये 6 फ़ीट तक जमा पानी, आपकी नाकामी है। अपनी नाकामी तो मत छिपाइए। ये पानी अगर आपके अफसरों की आँखों में होता तो पटना डूबता नहीं। संप हाउस ठीक से काम कर रहे होते। नालों में कचरा नहीं होता। घरों में हज़ारों लोग कैद नहीं होते।
जलजमाव वही हैं, जहॉं नाला उड़ाही में लापरवाही हुई। जहॉं संप हाउस के मोटर खराब हैं। जहॉं नए नालों के नाम पर पुराने नाले ध्वस्त कर दिए गए मगर नए नालों को लिंक किया ही नहीं। तभी तो पाटलिपुत्र कॉलोनी और श्रीकृष्णापुरी में कमर तक पानी है, मगर चिरैयाटांड़ जैसी पुरानी बस्ती में कहीं पानी नहीं दिख रहा।
लापरवाही तो हुई है। मौसम विभाग ने भारी बारिश को लेकर 72 घंटे पहले चेताया था। बैठक भी हुई थी। मंत्री-अफसर सब जुटे थे। नाश्ते में काजू भी रहा होगा मगर उस बैठक का नतीजा क्या हुआ? आपके अफसरों ने संप हाउस के खराब मोटर तक को बनाना जरूरी नहीं समझा। डीजल तक नहीं था कि मोटर चलाई जाती। बारिश होती रही, फिर भी ढीठ सिस्टम मुॅंह ताकता रहा। कहा गया कि बारिश रुकते ही पानी निकल जाएगा मगर क्या हुआ?
बारिश रुके 48 घंटे हो चुके हैं। अब तो धूप भी निकल गई है मगर पानी है कि निकलने का नाम ही नहीं ले रहा। छह फ़ीट में बमुश्किल एक से डेढ़ फ़ीट पानी घटा है। बिना बिजली के पानी के बीच फॅंसे लोग भूख प्यास से बिलबिला रहे हैं। अब तो पानी भी सड़ने लगा है। बदबू आ रही है। अगर पानी निकलने की गति यही रही तो दशहरा बीत जाएगा।
अब भी मानिए हुज़ूर कि गलती हुई है। मानिए कि आपके अफसर किसी की नहीं सुनते, आपकी भी नहीं। मानिए कि पटना डूबा नहीं, डुबाया गया है। मानिए की ये प्राकृतिक आपदा नहीं, क्रिमिनल ऑफन्स है। और…इस क्रिमिनल ऑफन्स की सजा मिलनी चाहिए। छह फीट पानी में तो इंसान डूब जाता है, आपका अहंकार क्यों नहीं डूबता…
(लेखक कुमार रजत दैनिक जागरण पटना में कार्यरत हैं)