दिसंबर 2019 में चीन ने संपूर्ण विश्व को वुहान वायरस (कोविड 19) रूपी महामारी से ग्रसित कर दिया। चीन दुनिया को शुरू में ये बताता रहा कि ये बीमारी ‘मानव से मानव’ में संक्रमित नहीं होती है। अर्थात लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। ऐसा नहीं है कि चीन ने ये पहली बार किया। 2002 में जब सार्स महामारी चीन में फैली तब भी उसने ऐसा ही किया था। वुहान वायरस का संक्रमण पूरे विश्व में फैलने में कुछ महीने लगे और इसने संपूर्ण मानवता को अपने चपेट में ले लिया। भारत भी इस बीमारी से अछूता नहीं है।
मोदी सरकार ने विदेशों में फॅंसे अपने नागरिकों को देश वापस लाकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का पूर्ण प्रयास किया और विभिन्न देशो से लाखों लोग देश वापस लाए गए। देश में वुहान वायरस से रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विभिन्न कदम उठाए जाने लगे। इनमें सर्वप्रथम एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया था। इसका मकसद था कि लोग सामाजिक दुराव (सोशल डिस्टेंसिंग) के द्वारा इस वायरस के फैलाव को रोकने में सफल हो सकें। इसका एक अन्य उद्देश्य था कि शाम के 5 बजे थाली और ताली के द्वारा अपने जीवन कि बाज़ी लगाकर लोगों को बचाने और आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोगो को देश धन्यवाद ज्ञापित कर सके।
देश का छद्म बुद्धिजीवी वर्ग हमेशा कि तरह इस बार भी मोदी सरकार की आलोचना करने में जुटा रहा। सबसे पहले खुद उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को कूटनीतिक क्षमता दिखाते हुए विदेशों में फॅंसे अपने लोगों को वापस लाना चाहिए। जब लोग वापस लाए गए तो उन्हीं लोगों ने यह कहना शुरू किया कि मोदी सरकार सिर्फ अमीर लोगों की चिंता कर रही है। इसी तरह 22 तारीख के कर्फ्यू का भी मज़ाक बनाया गया। कहा गया कि एक दिन के बंद से वुहान वायरस का संक्रमण सरकार कैसे रोक सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 25 मार्च को वुहान वायरस के संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए 21 दिन के देशव्यापी स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करते हुए पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया।
21 के दिन के लॉकडाउन के दौरान सभी राज्य सरकारों से उम्मीद थी कि वो इसका पालन सख्ती के साथ करवाएँगे, जिससे वायरस के संक्रमण को रोका जा सके। सभी राज्य सरकारें अपने स्तर पर वुहान वायरस के खिलाफ लड़ने में तन्मयता के साथ जुटे भी हुए हैं। वहीं, दिल्ली की केजरीवाल सरकार इस लॉकडाउन को भी अपने लिए राजनीतिक अवसर के रूप में देख रही है। इस 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान स्वाभाविक रूप से गरीब, दिहाड़ी मजदूर, श्रमिक और अन्य छोटे-मोटे काम करके जीवन-यापन करने वाले लोगों को समस्याओं का सामना करना ही पड़ता। परन्तु उन्हें उनकी दैनिक जरूरत की वस्तुएँ प्रदान कर लॉकडाउन का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना केंद्र के साथ सभी राज्य सरकारों का दायित्व था।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने जिस तरह से गैर जिम्मेदाराना व्यवहार गरीबों के साथ किया वो चौंकाने वाला है। ऐसे समय में जब देश में महामारी फैलने का खतरा मॅंडरा रहा हो, दूसरे राज्य से आए कामगारों को दिल्ली छोड़कर जाने के लिए प्रोत्साहित करना लोकतंत्र की आत्मा की हत्या करने के समान है। केजरीवाल ने खुद ट्वीट कर कहा कि दिल्ली में खाने-रहने की व्यवस्था है पर जो लोग जाना चाहते हैं उनके लिए डीटीसी बसों कि व्यवस्था कि गई है। वहीं उप मुख्यमंत्री सिसोदिया ने ट्वीट किया कि लोगों को उनके राज्यों तक वापस जाने के लिए दिल्ली कि 100 डीटीसी बसों की व्यवस्था की गई है जो दिल्ली से लगी उत्तर प्रदेश की सीमाओं तक उन्हें छोड़ेगी। उसके आगे वहॉं से उत्तर प्रदेश की 200 बसें उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक ले जाएगी।
दिल्ली से प्रवासन के लिए विवश करने वाली आम आदमी पार्टी के विधायक राघव चड्ढा ने झूठ की पराकाष्ठा पार करते हुए ट्वीट किया कि जो लोग दिल्ली से उत्तर प्रदेश जा रहे हैं उन्हें योगी आदित्यनाथ के आदेश पर पीटा जा रहा है। उनसे कहा जा रहा है कि तुम लोग दिल्ली गए ही क्यों थे। अब आगे से जाने नहीं देंगे। बाद में उन्होंने यह ट्वीट डिलीट कर दिया। लेकिन इस ट्वीट के लिए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उपरोक्त बयानों के अलावा ऐसे वीडियो भी आए हैं जिसमें ये देखा गया कि रात में माइक से प्रचार कर कहा जा रहा था कि जो लोग अपने घर वापस जाना चाहते हैं उनके लिए बसों का इंतजाम योगी सरकार ने आनंद विहार बस स्टैंड पर किया है। इसके परिणामस्वरुप 28-29 मार्च को दिल्ली नोएडा सीमा पर हजारों की भीड़ इकठ्ठा हो गई थी। यह लॉकडाउन के मकसद को खत्म करने की एक बड़ी साजिश थी।
सोचने वाली बात ये है कि जब दिल्ली सरकार को लोगों को मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करना चाहिए था वो ऐसे समय में राजनीति करने में लगी हुई है। कुछ लोगो ने अपने प्रदेश वापस पहुॅंच कर बताया कि दिल्ली से जबरन भगाने के लिए उनके बिजली-पानी तक के कनेक्शन काट दिए गए। वे मजबूर होकर दिल्ली छोड़ दें जिससे दिल्ली सरकार के ऊपर भार काम पड़े और उनके बड़े-बड़े वादों की पोल ना खुले। आश्चर्य की बात ये है कि दिल्ली से उन्हीं लोगों को भगाने की कोशिश की गई, जिन्होंने केजरीवाल को तीन बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया। ऐसा नहीं है कि केजरीवाल और उनके मंत्री इस तरह की तुच्छ हरकत पहली बार कर रहे हैं। कुछ महीने पहले खुद केजरीवाल ने एक भाषण में कहा था कि उत्तर प्रदेश और बिहार से लोग आते हैं और यहाँ कि सभी सुविधाओं का लाभ उठाकर वापस चले जाते है। उन्हें दिल्ली आने से रोकना पड़ेगा, जिससे वही सुविधाएँ दिल्ली वालों को मिल सके। इस तरह कि सोच वाले व्यक्ति से और क्या आशा की जा सकती है।
इसके विपरीत इन कठिन परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारतीय राजनीति में एक मिसाल पेश की है। यह अन्य राज्यों के एक मिशाल है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की सरकार ने तो शुरू से केंद्र सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर वुहान वायरस (कोविड 19) के खिलाफ लड़ाई जारी रखी हुई है। उन्होंने संवेदना के आधार पर एक-एक कर ऐसे निर्णय लिए जो गरीब, दिहाड़ी मज़दूर और कमज़ोर तबके के लोगों के लिए इस लॉकडाउन के दौरान अति आवश्यक हैं या होंगी। उन्होंने गरीबों के लिए स्वास्थ्य, खाद्यान्न, निश्चित धनराशि और अन्य मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करने के लिए आपातकालीन राजस्व की घोषणा भी की और अब उसका प्रबंध भी कर रहे हैं। प्रदेशवासियों के लिए आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो इसके लिए योगी सरकार ने डोर स्टेप डिलिवरी की व्यवस्था की है।
दिल्ली सरकार के फैलाए गए अराजकता के खिलाफ भी योगी सरकार ने प्रभावी तरीके से काम किया है। योगी सरकार ने सर्वप्रथम ऐसे लोगों को उनके गंतव्य तक छोड़ने का ऐलान किया था जो लॉकडाउन के नियमों की अवहेलना, अनजाने में करते हुए उत्तर प्रदेश की सीमा में पैदल ही चल पड़े थे। ऐसे कुछ समाचार बढ़ा-चढ़ा कर दिखाए जाने लगे जिससे मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके। वुहान वायरस के खिलाफ छिड़ी लड़ाई अब दिहाड़ी मज़दूर, श्रमिक और प्रवास कर रहे कुछ लोगों की कहानियों के नीचे दबकर रह गई थी।
लोग प्रवास क्यों कर रहे हैं? इससे बड़ा मुद्दा ये हो गया कि केंद्र सरकार गरीबों के बारे में कुछ नहीं सोचती, गरीब विरोधी है। कोविड 19 की जगह यही विषय वाद-विवाद का केंद्रबिंदु बन गया। परन्तु योगी सरकार ने एक बार फिर आगे आकर इस मुद्दे को भी हल कर दिया। जो बसें शुरू में कुछ लोगों के लिए थी वो बाद में सभी लोगों को उनके राज्यों, जिलों तक पहुॅंचाने का काम करने लगी। दिल्ली सरकार को ये भी ठीक नहीं लगा तो वो लोगो में भ्रम पैदा करने में जुट गई और कहा कि ये लॉकडाउन 21 दिनों का ना होकर जून 2020 तक चलेगाए इसलिए जिसको भी अपने प्रान्त, जिला या गॉंव जाना हो वे डीटीसी की बसों से आनंद विहार बस स्टैंड तक जाए जहॉं पर उत्तर प्रदेश की सरकार उनके लिए बसों का इंतज़ाम कर रही है। इसके फलस्वरूप वहॉं लोगों की इतनी भीड़ इकठ्ठा हो गई कि सोशल डिस्टेंसिंग का अर्थ ही खो गया। ये साज़िश इसलिए रची गई ताकि योगी सरकार को केंद्र में रखकर उसकी आलोचना की जा सके।
योगी ने इसका भी हल निकालते हुए यमुना एक्सप्रेसवे पर बने अपार्टमेंटस को सरकारी कब्जे में लेते हुए, ऐसे तमाम दिल्ली से आए प्रवासियों को शरण दिया जो बेघर थे या अपने घर वापस जा रहे थे। इस दौरान ऐसे सभी लोगों के लिए खाने-पीने के साथ-साथ, स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है। ऐसे सभी लोगो को यहाँ 14 अप्रैल तक रखा जायेगा और उनका कोरोना टेस्ट भी किया जाएगा। इसके बाद ही इन लोगों को उनके गॉंव, जिले और राज्यों में भेजा जाएगा जिससे संक्रमण आगे ना फैले और इन लोगो का भी ध्यान रखा जा सके। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो एक कदम बढ़ाते हुए विभिन्न राज्यों में मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले व्यक्तियों की सहायता हेतु राज्यवार वरिष्ठ प्रशानिक एवं पुलिस अधिकारियों की तैनाती की है जो लॉकडाउन के दौरान वहॉं रह रहे प्रवासियों की मदद करेंगे। योगी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को लिखे अपने एक पत्र में ये भी कहा कि वे दिल्ली के तमाम ऐसे लोगों भी ध्यान रखेंगे जो उत्तर प्रदेश में रह रहे हैं। ऐसे दूर-दृष्टया जनकल्याणकारी सरकार की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगा। योगी जी ने सिद्ध किया कि वे एक क्षेत्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य ना कर, मानवता के आधार पर कार्य करते हैं।
वुहान वायरस का संक्रमण रोकने के लिए जरूरी है कि केंद्र सरकार के सभी प्रयास सफल रहें। इसके लिए राज्य सरकारों को बिना किसी छल-कपट के एकजुट होकर काम करना होगा। तभी अपने लोगों के जीवन की रक्षा की जा सकती है। ईश्वर ना करें, इटली, जर्मनी, स्पेन और अमेरिका जैसे हालात भारत में पैदा हो, जहॉं आज मरीजों और मृतकों की संख्या हज़ारो में हैं। यदि ऐसा कुछ भी हुआ तो इसकी जिम्मेदारी केजरीवाल जैसी सरकारों की ही होगी।