इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर है, जब पूरा संसार एक महामारी से त्रस्त होकर ठप पड़ा है। ऐसी आपदा में जहाँ देश के नागरिकों का व्यवहार राष्ट्रीय चरित्र की झलक देता है, वहीं राजनीतिक दलों, सामाजिक व धार्मिक संगठनों एवं समाज के उच्च पायदान पर बैठे व्यक्तियों के कार्य व आचरण समाज को दिशा देकर चेतना व आत्मबल का संचार करने में सहायक होते हैं।
पर दुर्भाग्य यह है कि जनता की ओर से इस महामारी से निपटने में जितनी समझदारी, संयम और सहयोग मिला है, विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से उतना ही असंवेदनशील एवं असहयोगी रूख रहा है।
ऐसे समय में जब एकजुट होकर जनता के साथ खड़े रहकर, सरकार द्वारा इस महामारी से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों में सहयोग देकर और एक राजनीतिक दल के रूप में अपने तंत्र का प्रयोग जन समस्याओं को दूर करने के लिए होना चाहिए था, तब अधिकांश विपक्षी दल राजनीतिक बयानबाजी और जनता में भ्रम फैलाने का काम करते रहे।
लोकतंत्र की शक्ति अक्षुण्ण रखने और लोकतंत्र के उद्देश्य को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि आपद काल में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों दलीय विसंगतियों से ऊपर उठकर साथ मिलकर दलीय तंत्र का उपयोग जनहित व जनता के संकट को दूर करने में करें।
पर, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ऐसा करने के बजाय अनेक विपक्षी दल निंदा व टाँग खिंचाई में अधिक व्यस्त दिखाई दे रहे हैं। जबकि यह समय सरकार व जनता के साथ खड़े होकर सुझाव देने और दलतंत्र के बजाय समाज-तंत्र बनकर जनता की पीड़ा को कम करने में अधिकाधिक योगदान देने का है।
वैसे उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों ने इस महामारी से निपटने में तत्परता व सकारात्मक कदम उठाए हैं, उससे कॉन्ग्रेस व उन अन्य दलों को सीखना चाहिए जिनका उद्देश्य जनता की सहायता के बजाय केवल और केवल छुद्र राजनीति रहा।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार दूसरे प्रांतों के 13 लाख से अधिक श्रमिकों को लाकर उनके घर तक पूरी सतर्कता, राशन व आवश्यक वस्तुएँ देकर पहुँचाया, वह सराहनीय है।
योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य में योगदान देने के लिए जिस प्रकार कमर कसी है और संकट के इस अवसर को राज्य के विकास व जनता के कल्याण का अवसर बनाने का प्रयास कर रहे हैं तथा अन्य राज्यों से आए प्रवासी श्रमिकों के लिए उत्तर प्रदेश में ही 50 लाख रोजगार सृजन की दिशा में कार्यरत हैं, वह प्रशंसनीय है।
इसी प्रकार भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई ने भी जिस प्रकार पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं को लगाकर जरूरतमंदों तक भोजन, मास्क व अन्य सहायता निरंतर पहुँचा रही है तथा प्रवासी श्रमिकों के लिए शिविर लगाकर उनकी सहायता कर रही है, वह भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल की सार्थकता को प्रकट करती है।
यद्यपि लोकतंत्र की इस दलीय व्यवस्था का पक्ष आशा की किरण भी दिखाता है। विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल होने की जिम्मेदारी पूरी गंभीरता से निभाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने लॉकडाउन में देशभर में गरीबों, जरूरतमंदों व आपद स्थिति में फँसे श्रमिकों, परिवारों को भोजन पहुँचाने का अभिनंदनीय कार्य सफलतापूर्वक किया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने लॉकडाउन की घोषणा करने के साथ ही मार्मिक अपील की थी कि सक्षम व समर्थ लोग अपने आसपास के गरीबों, मजबूरों, मजदूरों और प्राणियों की चिंता करें, जिससे कि न तो कोई मनुष्य भूखा रहे और न ही पशु-पक्षी।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के निर्देश पर 18 लाख भाजपा कार्यकर्ता लॉकडाउन की अवधि में देश भर में लोगों की सेवा कर रहे हैं। भाजपा ने अब तक दो करोड़ जरूरतमंद परिवारों को भोजन सामग्री वाला राशन किट और 6 करोड़ से अधिक परिवारों को भोजन के पैकेट वितरित किए हैं।
इसके अतिरिक्त भाजपा विभिन्न राज्यों से अपने गृह प्रांतों को जा रहे श्रमिकों व उनके परिवारों के लिये मार्ग में भोजन व अन्य आवश्यक वस्तुओं को पहुँचा रही है, साथ ही प्रवासी श्रमिकों के लिए शिविर लगा रही है।
भाजपा ने ‘फीड द नीडी’ (जरूरतमंद को भोजन कराएँ) कार्यक्रम चलाकर सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि देश के किसी भाग में कोई व्यक्ति लॉकडाउन में भूखा न रहे तथा इस कार्यक्रम के अंतर्गत 10 करोड़ लोगों को हाथ से बने फेस मास्क प्रदान किए जा रहे हैं।
साथ ही भाजपा ने अंबेडकर जयंती पर झुग्गी-झोपड़ियों में ‘मेरी बस्ती, कोरोना मुक्त बस्ती’ अभियान चलाया। इस अभियान के अंतर्गत भाजपा ने देश के सभी मंडलों में न्यूनतम दो गरीब बस्तियों के सभी घरों में महीने के भोजन सामग्री की किट बाँटी।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे, “राजनीति की धारा बदलनी होगी। प्रदर्शनात्मक राजनीति का मार्ग उचित नहीं है। जनतंत्र की सफलता और दल की सफलता के लिए सामान्य जन का कल्याण ही उद्देश्य होना चाहिए।” उन्होंने कहा है, “राजनीतिक दल का उद्देश्य ‘इदं न मम्’ अर्थात समाज के दीन, दलित, वंचित, जरूरतमंदों के प्रति ममत्व की भावना की प्रतिबद्धता होनी चाहिए, जिससे समाज के कल्याण के मार्ग में परिवर्तन किया जा सके।”
जनसंघ से भाजपा तक पहुँचने की यात्रा के पथ में राजनीतिक दल के रूप में भाजपा की राजनीति का मूल उद्देश्य यही रहा है। कोरोना महामारी के इस आपद काल में भाजपा ने यह देखे बिना कि राज्य में उसके दल का शासन है या नहीं, जिस प्रकार सरकार व प्रशासन का साथी बनकर जनता का दुख हरने में योगदान दिया है, वह दीनदयाल के उसी मंत्र इंद न मम् का प्राकट्य व प्रतिबद्धता है।
अच्छा यह होता कि अन्य राजनीतिक दल भी इस आपद काल में आरोप-प्रत्यारोप का दौर छोड़कर एकाकार होते। यदि ऐसा होता तो आज श्रमिकों के पलायन से दारूण दृश्य उत्पन्न हुए हैं और और इस समस्या के समाधान के बजाय भड़काने व भ्रमित करने की जो राजनीति हो रही है, उससे बचा जा सकता था।
मोदी सरकार द्वारा श्रमिकों को उनके गृह राज्य पहुँचाने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई गई हैं, किंतु दुर्भाग्य से संवेदनहीन राजनीति का कुचक्र इसमें भी प्रवेश कर गया है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र राजस्थान, दिल्ली आदि प्रदेशों में जिस प्रकार प्रवासी श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार व अव्यवस्था हुई है तथा इन प्रदेशों की सरकारों ने जिस प्रकार संकट काल में ओछी राजनीति कर श्रमिक ट्रेनों की व्यवस्था का लाभ प्रवासी श्रमिकों तक पहुँचाने में न केवल असहयोग किया है, बल्कि प्रवादों के माध्यम से श्रमिकों को प्रदेश को छोड़ने के लिए अमानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न की, वह लोकतंत्र की दलीय व्यवस्था के उद्देश्यों के विरुद्ध है।
एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना महामारी को परास्त करने में भारत को विश्व का नेतृत्वकर्ता बनाने के साथ ही आत्मनिर्भर भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को स्थापित कर एक शक्तिशाली व समर्थ राष्ट्र का भव्य प्रासाद निर्मित करने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं विपक्ष के राजनीतिक दलों की यह जिम्मेदारी बनती है कि कोरोना संकट से निपटने में ओछी राजनीति के बजाय जनता के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करें।
भारत का लोकतंत्र आशा के प्रकाश में उजाले की ओर बढ़ता रहा है तो यह अपेक्षा अनुचित नहीं होगी कि अब तक जो हुआ वो हुआ, पर अब आगे सभी राजनीतिक दल मिलकर राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य के पथ में सहायक बनेंगे।