न अमन की खोखली बातों से बुझेगी ये आग, न जीते-जी भरेंगे घाव: बारूद के ढेर को चिंगारी से बचाने की मुश्किल

आखिर इन दंगों के पीछे क्या है?

दंगे के तुरंत बाद अमन की बात वो करते हैं जिन्हें दंगों के अपराधों को छुपाना होता है। जिस तरह दंगे एक जघन्य अपराध हैं, ठीक उसी तरह दंगों की तैयारी करना भी। दंगों का जख्म अमन की खोखली बातों से नहीं भरता। दंगों का जख्म केवल इंसाफ से भरता है। जिसने अपना बच्चा खोया, जिसने अपना संबंधी खोया, जिसने अपने जीवन भर की कमाई खोई, जिसने अपने सारे व्यवसाय को सबेरे जला हुआ पाया, उनसे फकत अमन की बात करना बेमानी है।

ये अपराध इंसाफ मॉंगता है। उन कारणों और उन लोगों की पहचान मॉंगता है जिन्होंने इस दंगे के लिए इतनी तैयारी की थी। उन लोगों की पहचान माँगता है जिन्होंने हज़ारों की दंगाई भीड़ इकट्ठा करके दो रात तक अलग अलग मोहल्लों में छापामार दंगा करके इंसानियत को शर्मसार किया।

वजह कई हैं पर फिलहाल एक वजह साफ स्पष्ट दिख रही है। ट्रंप और विदेशी मीडिया के सामने पाक प्रायोजित हिंसा, जिसे भारत के ही कुछ लोगों ने उन लोगों से पैसा या कुछ और प्रलोभन दे कर फैलाया। हमें इस दंगे की तह में जाना ही चाहिए। इस कैंसर को खत्म करना ही चाहिए। और बंद होनी चाहिए अमन की खोखली बातें। दो महीने से ज्यादा हो गए तब तो नहीं हुआ था दिल्ली के उस हिस्से में रास्ता रोको, दिल्ली रोको आंदोलन। अचानक से सब होना ट्रंप के आते ही और वो भी इस तैयारी के साथ, बस एक ही बात बताता है कि दुश्मन किस तरह से हमारे देश के अंदर अपनी वैश्विक राजनीति हेतु सक्षम है। क्या इस खतरे के साथ हम हमेशा रहने को सक्षम हैं?
क्या अनपढ़, क्या पढ़ा-लिखा, क्या वामपंथी विचारधारा वाले अदूरदर्शी नाटककार सब सम्मिलित हैं, भारत की राजव्यवस्था को तोड़ने में और बहाना बना रहे हैं संविधान की रक्षा का।

ये जितने भी लोग संविधान की रक्षा के नाम पर आज रोड ब्लॉक करने की और आगजनी करके सरकार को सबक सिखाने की कोशिश कर रहे हैं, याद रखिएगा इनका तो घोषित छद्म उद्देश्य ही संविधान और लोकतंत्र की हत्या है। जिस भी दिन ये केंद्रीय सत्ता पर आरूढ़ हुए या क्षमतावान हुए तो इनका पहला प्रहार संविधान पर ही होगा।

दो गुट हैं, एक भारत की व्यवस्था को चीनी माओवादी बनाना चाहता है और दूसरा भारत को चूस-चूस के शरिया की ओर ले जाना चाहता है।

वैश्विक स्तर पर एक-दूसरे को फूटी आँख ना सुहाने वाले भारत के दो दुश्मन देखिए कैसे एक हुए हैं- भारत को बर्बाद करने के नाम पर। दोनो एक-दूसरे को ज्यादा चालाक समझ रहे हैं। दुनिया में कई वामपंथी विचार वाली निरंकुश सरकारें हैं। साथ ही साथ कई इस्लामी मुल्क भी। एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा जहाँ या तो वामपंथी मुल्क में इस्लामी राजनैतिक विचार की आज़ादी हो और ना ही एक भी ऐसा इस्लामी मुल्क जहाँ वामपंथियों को अपना दफ्तर खोलने की अनुमति हो। फिर भी भारत में इनका याराना देखिए।

मूर्खों को ये नहीं पता कि लोकतंत्र की दुहाई दे कर ये इसी लोकगणराज्य की हत्या कर अपने लोगों के लिए केवल एक देश चाहते हैं। इन्हें भारत की विविधता और बहुल सोच वाली संस्कृति से कोई सरोकार नहीं। क्या ऐसे लोग जो अपनी बात मनवाने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को छोड़ कर सड़क जाम कर, दंगे भड़का कर समाज में भय पैदा कर सरकार को दवाब में डाल रहे हैं, क्या वे लोग भारत के लोकतांत्रिक अधिकारों के लायक भी हैं। क्या ऐसे लोग भारत के नागरिक कहलाने के काबिल हैं। सोचना होगा हमें। क्या भारत में जन्मा हर व्यक्ति जिसकी सोच अब गैर भारतीय हो गई हो, भारत की विविधता और संवैधानिक प्रक्रियाओं से इतर हो गई हो, को भारत का नागरिक कहा जा सकता है। कुछ ऐसे लोग जो रोग (rouge) हो गए हैं से नागरिकता छीन ही नहीं लेनी चाहिए।

संवैधानिक व्यवस्था में सबको विरोध का अधिकार है। लेकिन सरकार के द्वारा प्रक्रिया अंतर्गत बनाए कानून के विरोध में महीने-दो महीने रोड जाम करने का अधिकार किसी को है क्या? क्या सड़क जाम कर और दंगा भड़का कर हम किसी कानून को वापस करवा सकते हैं? बिल्कुल नहीं। अगर आप सरकार के किसी कदम से असहमत हैं तो जनजागरण कीजिए, चुनाव लड़िए, अगले चुनाव में जीत कर आइए, कानून बदल दीजिए। कोर्ट में सरकार के खिलाफ मुकदमा लड़िए। विरोध का वो तरीका और वो स्थान चुनिए जहाँ से भारत के अन्य सामान्य नागरिकों को दिक्कत नहीं हो, वैसे लोग क्यों भुगतें जो आपकी तरह नासमझ नहीं हैं या जिन्हें आपके आंदोलन से कोई सरोकार नहीं है। समाज में तनाव का माहौल बनेगा तो कहीं न कहीं फूटेगा ही।

ये आग जो भड़की है ये अमन की खोखली बातों से मुझे तो बुझती नहीं दिखती। दंगों के समय हुआ अपराध त्वरित न्याय माँगता है। कुछ लोगों ने अपने दूरगामी राजनैतिक वैश्विक और क्षेत्रीय मंसूबों के खातिर अपने ही लोगों और मोहल्ले का नुकसान कराया ही, साथ ही साथ अपने पड़ोसियों को भी ऐसा घाव दे दिया है जो शायद ही उनके जीते जी भर पाए। वो सारे मोहल्ले अब काफी लंबे समय तक दंगे के भय और अविश्वास के साथ जिएंगे। ऐसा अविश्वास जो या तो इंसाफ से खत्म होगा या इंतकाम से। सरकार के लिए बड़ी मुश्किल घड़ी है। इस बारूद के ढ़ेर को चिंगारी से कैसे बचाया जाए।

जो लोग समाज में राजनीति के इस बारूद का इस्तेमाल करते हैं, जो दंगों में आपराधिक गुटों का सहयोग लेते हैं, जो इसकी तैयारी महीनों करते हैं। पूरे के पूरे समाज को एक कानून के नाम पर झूठ बोल-बोल कर गुमराह करते हैं। गिद्धों की तरह अपनी कलम से, अपनी कला से, लाशों के बिछाए जाने की पटकथा लिखते हैं, उनलोगों के साथ क्या करना चाहिए। हम सभी के मन में ये प्रश्न हैं। क्या हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया इस तरह के छद्म तरीके से लड़े जा रहे युद्ध के लिए तैयार है? क्या हमारी प्रकिया ऐसे अपराधियों को ढूंढ कर सजा देने के काबिल है?

याद रखियेगा पाकिस्तान का आईडिया सारे जहाँ से अच्छा लिखने वाले अल्लामा इकबाल ने ही दिया था। उन्होंने ही सबसे पहले कहा था भारत में एक पाक स्थान है जो कि एक धर्म विशेष के आधार पर चलता है। यानी कि भारत की बहुलता वादी सोच, बहुईश्वरवाद से भिन्न है और साथ नहीं रह सकता। नतीजा हम सब जानते हैं। ये वही सोच है जो फिर से सर उठा रही है। जाते-जाते एक बात और, अरब की क्रांति जो कि वहाँ के निरंकुश राजाओं के विरुद्ध हुई थी, अब वो विशुद्ध रूप से इस्लामी रूप ले चुकी है और ISIS को जन्म दे चुकी है। इस हेतु किसी भी आंदोलन के मूल स्वभाव और उद्देश्यों को समझे बिना उसे अपने जीवन का हिस्सा मत बनाइए। हर तरह का डिसेंट या बागी विचार जरूरी नहीं कि सही ही हो। कुछ बागी तेवर काफी खतरनाक होते हैं। जहरीले नाग की तरह, इनको मारने के बाद इनका फन भी कुचलना जरूरी होता है।

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Ayush Anand: Advocate at Supreme Court of India. Writes on socio political and legal issues.