राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश उपवास पर हैं। उपवास दूसरे की गलतियों के लिए। उपवास खुद पर हुए अलोकतांत्रिक हमले के खिलाफ। यही तो गाँधी का पथ है, हमारे बापू का पथ। उपवास करो पाप के खिलाफ। क्या विपक्ष हरिवंश के इस गाँधीवादी कदम से कोई सीख लेगा? क्या हमेशा गाँधी नाम की राजनीति करने की कोशिश में जुटा विपक्ष सही मायनों में इस गाँधीवादी तरीके से मिल रही सीख को अपने जीवन में उतारेगा? ये तो वक़्त ही बताएगा।
ऐसा दृश्य राज्यसभा ने शायद ही देखा हो
संसद को हम बड़े गर्व से ‘लोकतंत्र का मंदिर’ कहते हैं। पर क्या वास्तव में जो हम कहते हैं उसे अमल में लाते भी हैं? भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने राष्ट्रपति काल के दौरान स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था, “सही राजनीति का सच्चा अर्थ यह है कि राजनीति, राजनीतिक-राजनीति होनी चाहिए, ना कि राजनीति के लिए राजनीति।” इसे व्यापक स्तर पर समझने की जरूरत है।
हाल ही में, कृषि बिल के विरोध में तृणमूल कॉन्ग्रेस, आम आदमी पार्टी, कॉन्ग्रेस और सीपीआई (एम) द्वारा अपनाया गया विरोध का तरीका बेहद ही असंवैधानिक तथा गैर-जिम्मेदाराना रहा। ये हम सब जानते हैं कि सोमवार को राज्यसभा में जो दृश्य था, वो पहले शायद ही कभी देखने को मिला हो। इनका विरोध इतना ज्यादा था कि कृषि विधेयक के विरोध में वेल में आकर हंगामा किया और रूल बुक फाड़ने की कोशिश की।
कृषि विधेयक पारित होने के दौरान इन सांसदों ने हंगामा तो किया ही किया, साथ ही साथ, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के साथ दुर्व्यवहार भी किया। इन सांसदों को इनके गलत रवैये के कारण ठीक दूसरे ही दिन सभापति वैंकेया नायडू द्वारा इन्हें एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया। निलंबित सांसदों में तृणमूल कॉन्गेरस के डेरेक ओ ब्रायन व डोला सेन, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, कॉन्ग्रेस के राजीव साटव, सैयद नासिर हुसैन, रिपुन बोरा और सीपीआई (एम) से एल्मलारान करीम और केके रागेश शामिल हैं। बता दें कि लोकसभा में यह विधेयक ध्वनि मत से पारित हो चुका है।
इन नेताओं द्वारा लोकतंत्र के इस मंदिर में किए गए दुर्व्यवहार को भारतीय संसदीय इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा में विरोध की अपनी महत्ता है, परन्तु विरोध तार्किक एवं संवैधानिक होना चाहिए, केवल विरोध के लिए विरोध ठीक बात नहीं है। हमें यह समझने की जरुरत है कि विरोध के लिए विरोध राजनीति को रसातल की ओर ले जाता है।
विपक्ष इतने पर ही नहीं रुका बल्कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसे सभापति वैंकेया नायडू ने खारिज कर दिया। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि विपक्ष का एजेंडा सदन को बिल पास करने से रोकना था।
क्या हरिवंश से गाँधीवादी रवैया सीखेगा विपक्ष?
एक महान व्यक्ति के क्या गुण होते हैं, यह हरिवंश ने अपने महान कृत्य से साबित किया। जब राज्यसभा से निलंबित ये 8 सांसद गाँधी प्रतिमा के सामने धरने पर बैठ गए, तब ठीक अगले ही सुबह सांसदों के धरनास्थल पर खुद उपसभापति हरिवंश उन्हें चाय पिलाने पहुँचे तथा उनसे बातें भी की। यह उनके बड़प्पन और उदारता को दर्शाता है। साथ ही साथ उनका यह कृत्य गाँधी जी के सिद्धांतो के मूल को आत्मसात करता हुआ दर्शाता है। उन्होंने यह साबित किया, ‘मतभेद भले ही हो, मनभेद नहीं होने चाहिए।’ लोकतंत्र की गरिमा को लज्जित करने वालों के समक्ष हरिवंश ने सर्वोत्तम उदाहरण पेश किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरिवंश के इस कदम की तारीफ करते हुए ट्वीट किया और कहा, “जिन सांसदों ने उन पर हमला किया और उनका अपमान किया, उनके लिए स्वयं चाय लेकर जाना उनके खुले विचार और बड़प्पन को दर्शाता है। यह हरिवंश जी की महानता को दिखाता है। मैं देश की जनता के साथ मिलकर इसके लिए हरिवंश जी को बधाई देता हूँ।” क्या इन विपक्षी दलों के नेताओं को हरिवंश जी से सीख लेने की जरूरत नहीं है?
सदन में विपक्षी दलों के सांसदों द्वारा किए गए गलत व्यवहार से दुखी हरिवंश ने एक दिन के उपवास का फैसला लिया है। इस सन्दर्भ में उन्होंने सभापति महोदय वैंकेया नायडू और राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा है, और बतलाया कि सदन में जो कुछ भी हुआ उससे वे बहुत दु:खी हैं। निश्चित तौर पर, हरिवंश का यह कदम मर्यादा की राजनीति को संरक्षित करने तथा आने वाली पीढ़ी के राजनेताओं को एक सबक के रूप में स्थापित होगा।
आज खुद से सवाल पूछने की जरूरत!
आज हमें खुद से कुछ प्रश्न करने की जरूरत है कि लोकतंत्र के मंदिर में हुई यह शर्मनाक हरकत से हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या सीख दे रहें हैं? राजनीति की दशा और दिशा क्या हो, यह संसद के माध्यम से स्थापित होती है। पर क्या हम सही मायने में देश की राजनीति को सही दिशा देने हेतु प्रेरित एवं प्रतिबद्ध हैं? हमारे राजनेताओं को आज इन प्रश्नों को बारिकी से समझने की जरुरत है।
हाल ही में राज्यसभा सांसद डॉ विनय सहस्रबुद्धे ने संसद में अपने भाषण के दौरान राजनीति के मूल-तत्व को उद्घाटित करते हुए बड़ा ही सटीक कहा था कि दलगत राजनीति से ऊपर उठते हुए राजनेताओं को ‘पॉलिटिक्स ऑफ़ रिस्पॉन्सिबिलिटी’ को आत्मसात करने के जरूरत है। आज यह जरूरी है कि इस मूल-मंत्र के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए, सच्ची एवं सार्थक राजनीति का एक अप्रतिम उदाहरण स्थापित करने के दिशा में हमारे राजनेताओं को समझने एवं मनन करने की जरूरत है।