भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा का निर्धारण इच्छामति नदी के द्वारा होता है। प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान दोनों देशों के हिन्दू नदी किनारे एकत्रित होकर मूर्ति विसर्जन करते हैं। इस अवसर पर दोनों देशों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। लेकिन, इसी अवसर का लाभ उठाते हुए कुछ लोग अवैध तरीक़े से भारतीय सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। तमाम इंतजाम किए जाने के बावजूद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक नदी पार करके भारत आने में कामयाब हो जाते हैं।
सुरक्षा बलों की सक्रियता के बावजूद अवैध रूप से भारत आने वाले लोग चिंता का विषय हैं, क्योंकि इससे देश की सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है। ख़बर के अनुसार, लाखों ऐसे विदेशी नागरिक हैं जो अवैध रूप से भारत की सीमा में घुस जाते हैं और फिर यहीं बस जाते हैं। ऐसा काफी समय से होता आया है और कभी इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया गया। लेकिन मोदी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इस पर अपना विरोध जताया। भारत में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों को बाहर करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे को पुरज़ोर तरीक़े से उठाया।
बीजेपी के कार्यकाल में ‘नागरिकता संशोधन विधेयक 2016’ पास हुआ था। भाजपा ने इस विधेयक को पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश से विस्थापन की पीड़ा झेल रहे हिन्दू, पारसी, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अहम फ़ैसला बताया है। बिल के पारित होने पर गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में अपने भाषण में कहा, “नागरिक संशोधन विधेयक सिर्फ़ असम के लिए नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में रह रहे प्रवासियों पर भी लागू होता है। यह कानून देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। असम का भार सिर्फ़ असम का नहीं है, पूरे देश का है।”
#CitizenshipAmendmentBill सिर्फ असम के लिए नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में रह रहे प्रवासियों पर भी लागू होता है।
— BJP (@BJP4India) January 8, 2019
यह कानून देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। असम का भार सिर्फ असम का नहीं है, पूरे देश का है: गृहमंत्री श्री @rajnathsingh pic.twitter.com/mN9uUfo17J
वहीं तृणमूल कॉन्ग्रेस ने संसद में इस विधेयक को बाँटने वाली राजनीति करार देते हुए इस पर अपना विरोध दर्ज किया था। वहीं एक और बात का ख़ुलासा हुआ था कि TMC बांग्लादेश में अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार भी कर रहीं थीं, जिसमें वो अपने पक्ष में वोट की अपील करते भी पाई गईं थी।
दरअसल, एक वीडियो सामने आया था जिसमें ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC (तृणमूल कॉन्ग्रेस) के आधिकारिक फेसबुक पेज पर सूचना और विज्ञापनों पर जब क्लिक किया गया, तो आप उन देशों को देख सकते हैं जहाँ TMC लोकसभा चुनाव में वोट देने की अपील करती नज़र आई। ड्रॉप-डाउन वाले विकल्प पर क्लिक करने पर जब एक देश के रूप में ‘बांग्लादेश’ का चयन किया गया तो वहाँ TMC अपने पक्ष में वोट माँगने की अपील करती नज़र आई। इससे यह साफ़ हो गया है TMC अपने देश के अलावा दूसरे देश में भी प्रचार कर रही थी। भारत में प्रचार करना तो समझ में आता है, लेकिन पड़ोसी देश बांग्लादेश में प्रचार करने का भला क्या मतलब हो सकता था?
ऐसी ही एक और ख़बर सामने आई थी जब बांग्लादेशी अनिभेता फ़िरदौस का बिज़नेस वीज़ा रद्द हो गया था। उस समय इस बात का ख़ुलासा हुआ था कि वो पश्चिम बंगाल में TMC के उम्मीदवार कन्हैया लाल अग्रवाल का प्रचार कर रहा था। नोटिस मिलने के बाद उसे बांग्लादेश वापस जाना पड़ा था।
फ़िरदौस अकेला ऐसा शख़्स नहीं था जो TMC का प्रचार करने में शामिल था, उसके अलावा बांग्लादेशी फ़िल्म इंडस्ट्री के दो अन्य लोग अंकुश हाज़रा और पायल सरकार भी प्रचार-अभियान में शामिल थे। उस समय में बीजेपी ने फ़िरदौस द्वारा चुनाव किए जाने पर आपत्ति जताई थी और उसके ख़िलाफ़ चुनाव आयोग में शिकायत करने के साथ-साथ उसकी गिरफ़्तारी की माँग भी की थी। इस पर भारत में बांग्लादेश उच्चायोग ने भी फ़िरदौस को वापस जाने को कहा था। बता दें कि फ़िरदौस की वापसी का मामला थमा भी नहीं था कि TMC का प्रचार करने में जुटे एक और बांग्लादेशी अभिनेता गाज़ी अब्दुन नूर का नाम सामने आया था, जो दमदम क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे TMC उम्मीदवार सौगात के लिए प्रचार कर रहा था।
TMC द्वारा बांग्लादेशी अभिनेताओं से चुनाव-प्रचार कराने पर बीजेपी के महासचिव राहुल सिन्हा ने तर्क दिया था कि कल को ममता बनर्जी पाकिस्तान से भी अभिनेताओं को अपने पक्ष में चुनाव-प्रचार के लिए बुला सकती हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम चरण में बशीरघाट में मतदान होगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि बशीरघाट में 50 फ़ीसदी से अधिक लोग मुस्लिम हैं। पिछले साल वहाँ 2 बार साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएँ हो चुकी हैं। TMC ने इदरिस अली की जगह अदाकारा नुसरत जहाँ को टिकट दिया है, और कॉन्ग्रेस ने क़ाज़ी अब्दुल रहीम को टिकट दिया है, बता दें कि अब्दुल रहीम के पिता अब्दुल गफ्फार इलाक़े से सम्मानित व्यक्तियों में से एक रहे हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सूबे की कमान सँभालने वाली ममता बनर्जी को बांग्लादेश से बड़ी उम्मीदें हैं। शायद उन्हें यह लगता है कि भारत में उनकी राजनीति बांग्लादेश के बलबूते ही चमकेगी। स्थिति भले ही कुछ भी हो लेकिन सीधे तौर पर यह मुक़ाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच दिख रहा है।