Saturday, November 16, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देजिसने हिंदुस्तान को 'ईसाई राष्ट्र' बनाने का ख्वाब देखा था, RSS को उससे सीखने...

जिसने हिंदुस्तान को ‘ईसाई राष्ट्र’ बनाने का ख्वाब देखा था, RSS को उससे सीखने की जरुरत नहीं Scroll

फ्रांसिस्को लुइस गोम्स वो इंसान है, जो हिन्दू धर्म को मिटा कर ईसाईयत को पूरे हिंदुस्तान का एक ही मज़हब बना देने का सपना पालता था। वो लोकतंत्र नहीं, "एक राजवंश" की हिमायत करता था, वो भी हिंदुस्तानी समाज के हितों के लिए!

आरएसएस पर जो सबसे बड़ा आरोप विरोधियों द्वारा लगता है, और जो उसके समर्थकों की उससे सबसे बड़ी उम्मीद होती है, वह भारत को एक ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने की मंशा का है। यह बात और है कि समर्थकों में ‘हिन्दू राष्ट्र’ का अर्थ महज़ हिंदुत्व/हिन्दू-धर्म को इस देश की प्राकृतिक आस्था और स्वभाव के रूप में स्वीकार करने का है (जोकि स्व-स्पष्ट रूप से है भी), जबकि विरोधी ‘हिन्दू राष्ट्र’ में फ़ासीवाद, मुस्लिमों का सामूहिक हत्याकाण्ड, सड़क पर मार्च करते बजरंग दल और हिन्दू युवा वाहिनी, लोगों के घर पर छापे मार कर उनके फ्रिज में प्याज-लहसुन-बीफ़ की तलाशी लेता उड़न-दस्ता देखते हैं। लेकिन स्क्रॉल वाले इन सब से आगे निकल गए हैं। वे हिन्दू-राष्ट्र के सपने से दूर जाने के लिए आरएसएस-समर्थकों को उस इंसान से ‘सीख लेने’ की सलाह दे रहे हैं, जो “एक मज़हब (ईसाईयत), एक जाति, एक राजवंश” में हिंदुस्तान का कल्याण देखता था। “एक राजवंश” के नीचे पूरे हिंदुस्तान को लाने का ख्वाब पालने वाले इंसान से स्क्रॉल का यह लेख ‘लोकतंत्र’ सीखने की भी हिमायत करता है।

‘एक टाइप का राष्ट्र’ गोम्स का सपना था, गोलवलकर का नहीं

स्क्रॉल पर लेखक पीटर रोनाल्ड डिसूज़ा जिस ‘भद्र पुरुष’ से संघ-समर्थकों को सीखने की नसीहत देते हैं, वह हैं फ्रांसिस्को लुइस गोम्स- हिंदुस्तान में पैदा हुए पुर्तगाली ‘पार्लिआमेंटेरियन’। इनके विपरीत गोलवलकर (संघ के शुरुआती सरसंघचालकों में से एक) को रखकर ज्ञान झाड़ा जाता है कि गोलवलकर की शाखाओं से निकले स्वयंसेवक भला क्या जानें पहाड़ी कला की सूक्ष्म विशिष्टताओं को, संगम तमिल साहित्य के इतिहास को और भक्ति आंदोलन को? भले ही “गोलवलकर की शाखाओं से निकले स्वयंसेवक” को, उनमें से हर एक को, उपरोक्त विषयों की जानकारी न हो, लेकिन न ही वे इनमें से किसी को नीची नज़र से देखते हैं, और न ही इन सभी के उद्गम हिन्दू धर्म से एलर्जी रखते हैं। वहीं इसके उलट महाभारत और शतरंज के हिंदुस्तानी उद्गम पर दावा ठोंक उनकी विरासत के दम पर यूरोप में अपने सुसंस्कृत होने का दावा करने वाले गोम्स ने न ही यूरोप और न ही हिंदुस्तान में हिन्दू धर्म को इनके उद्गम का श्रेय दिया। वह तो हिन्दू धर्म को मिटा कर ईसाईयत को पूरे हिंदुस्तान का एक ही मज़हब बना देने का सपना पालते थे

लोकतंत्र के लिए गोम्स का उद्धरण भी हास्यास्पद

गोवा में भाजपा जो कुछ भी कॉन्ग्रेस विधयकों को अपने पाले में करने के लिए कर रही है, उसके नैतिक या अनैतिक होने पर हर एक की दोराय हो सकती है- भाजपा समर्थकों की भी है। कुछ (लगभग) कॉन्ग्रेस-मुक्त गोवा के लिए खुश हैं, तो कुछ ‘कॉन्ग्रेस-युक्त भाजपा’ को लेकर शंकालु। लेकिन इसमें भाजपा की मुखालफत के लिए संघ और हिंदुत्व से घृणा में अंधे होकर डिसूज़ा गोम्स को उद्धृत करते हैं। क्या उन्हें पता है कि गोम्स न केवल पूरे हिन्दू समाज को ईसाई बना देने का कट्टरपंथी ख्वाब पालते थे, बल्कि लोकतंत्र नहीं, “एक राजवंश” की हिमायत करते थे हिंदुस्तानी समाज के हितों के लिए?

Goa Inquisition पर सन्नाटा

हज़ारों हिन्दुओं को ज़िंदा जला देने और शरीर छेद कर टाँग देने वाला पुर्तगालियों का Goa Inquisition शायद ईसाईयत के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है। लेकिन बहुत ढूँढ़ने पर भी मुझे श्री गोम्स साहब का इसके खिलाफ एक भी लफ्ज़ नहीं मिला- न इसे जिस मज़हब के लिए किया गया उसके ख़िआलफ, न इसे करने वाले पुर्तगाली शासक के खिलाफ, न ही उस ‘संत’ फ्रांसिस ज़ेवियर के ख़िलाफ़, जो इसका मुख्य षड्यंत्रकारी था। निंदा करना तो दूर की बात, गोम्स तो “बिना ज़ोर-ज़बरदस्ती के” समूचे हिंदुस्तान के साथ वही करने की सलाह ब्रिटिशों को देते थे, जो पुर्तगालियों ने गोवा वालों के साथ किया। ऐसे में गोम्स के किसी भी वक्तव्य (जिनमें उपरोक्त समेत दोहरे चरित्र को दर्शाने वाले विरोधाभासी उदाहरणों की कमी नहीं है), किसी भी विचार का क्या ऐतबार?

डिसूज़ा साहब का मज़हब उन्हें इसके लिए अगर नर्क की आग में चिरकाल के लिए जला देने की धमकी न दे तो बेहतर होगा कि वह गोम्स की बजाय गर्ग संहिता, गंगापुत्र भीष्म का “शांति पर्व” और गौरांग महाप्रभु की शिक्षाओं को पढ़ें। भाजपा-संघ को झाड़ने के लिए ज्ञान का ‘कच्चा माल’ वहाँ बेहतर मिल जाएगा!

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

छत्तीसगढ़ में ‘सरकारी चावल’ से चल रहा ईसाई मिशनरियों का मतांतरण कारोबार, ₹100 करोड़ तक कर रहे हैं सालाना उगाही: सरकार सख्त

छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा प्रभावित जशपुर जिला है, जहाँ ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है। जशपुर में 2011 में ईसाई आबादी 1.89 लाख यानी कि कुल 22.5% आबादी ने स्वयं को ईसाई बताया था।

ऑस्ट्रेलिया में बनने जा रहा है दुनिया का सबसे ऊँचा श्रीराम मंदिर, कैंपस में अयोध्यापुरी और सनातन विश्वविद्यालय भी: PM मोदी कर सकते हैं...

ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में बन रहे भगवान राम के मंदिर में अयोध्यापुरी और सनातन विश्वविद्यालय भी मौजूद हैं। यह विश्व का सबसे ऊँचा मंदिर होगा।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -