पूर्ण बहुमत की सरकार को पाँच साल पूरा हुआ। इन पाँच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधान सेवक से चौकीदार तक की यात्रा तय की है। ऐसे में उस समय की कुछ मजेदार बातें याद आती हैं जब नरेंद्र मोदी भाजपा की तरफ से लोकसभा के प्रत्याशी बनाए गए थे। सन 2014 जैसा चुनाव का मौसम मैंने कभी नहीं देखा था। और यदि बड़े-बूढ़ों की मानें तो इंदिरा गाँधी के बाद देश ने भी किसी नेता के प्रति ऐसी दीवानगी पहली बार देखी थी। वह दिन था 24 अप्रैल 2014 जब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा सीट से नामांकन भरा था।
आम चुनाव के उस मौसम में बनारस मीडिया वालों से अटा पड़ा था। सड़कों पर केवल बड़े-बड़े ओबी वैन दिखाई पड़ते थे और उनसे भी बड़े पत्रकार यूँ ही टहलते मिल जाते थे। नगर में सड़कों की वास्तविक चौड़ाई नज़र आने लगी थी। एक न्यूज़ चैनल का ड्रोन कैमरा देख कर कुछ लोग छोटा हेलीकॉप्टर समझ रहे थे। चौराहे के आसपास ‘मोदी’ चाय के साथ ‘मोदी’ लस्सी भी बिक रही थी। न जाने कितने वर्षों के बाद किसी भावी प्रधानमंत्री ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामने खड़े महामना के सामने शीश झुकाया था।
सन 2014 में देश में एक करिश्माई व्यक्तित्व उभरा था। बनारस से बहुत दूर गुजरात में। मज़बूत कद काठी और दमदार जन संवाद की शैली उस व्यक्ति की विशेषता थी। वह एक बेहद शक्तिशाली इंसान था। बनारस आने पर उन्होंने कहा था, “सोमनाथ की धरती से विश्वनाथ की धरती पर आया हूँ।” यह ताक़त उधार की नहीं थी। मेरी समझ से नरेंद्र मोदी अंतःकरण से शक्तिशाली हैं। उन्हें नियंत्रण, संकर्षण और समर्पण में नियमन के साथ संतुलन कैसे और कितना रखना है इसका भरपूर ज्ञान है।
पाँच वर्ष पहले नरेंद्र मोदी के चुनावी नामांकन वाले दिन स्थिति ऐसी थी कि जिस चौराहे से विवेकानंद की मूर्ति तक जाने में साधारण ट्रैफिक में मात्र पाँच मिनट लगते हैं उस दूरी को तय करने में मोदी के काफिले को 2 घंटे से अधिक समय लगा था। शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के परिवारवालों को नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने का निमंत्रण दिया गया था जिसे उस समय उस्ताद के पुत्र और पोते द्वारा ठुकरा दिया गया था। इसके बाद महामना मालवीय जी के पोते गिरिधर मालवीय और प्रख्यात संगीतकार छन्नूलाल मिश्र नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे। शायद इस वर्ष उस्ताद के पोते और बेटे को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने इस बार ‘प्रधानमंत्री’ नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने की इच्छा जताई है।
नरेंद्र मोदी द्वारा नामांकन भरने के बाद राहुल गाँधी बनारस में रोड शो करने आए थे तब एक हास्यास्पद बात हुई। अस्सी क्षेत्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता मोहन प्रकाश का पुश्तैनी घर है। राहुल का छोटा सा रेला उधर से गुजरने वाला था। रोड शो से एक दिन पहले मोहन प्रकाश के घर से 10 घर आगे और 10 घर पीछे हर घर में कॉन्ग्रेस का झंडा लगा दिया गया था। मजेदार बात यह थी पूरे शहर में सिर्फ यही 20-21 घर थे जहाँ खाँटी भाजपाई वोटरों के घरों पर कॉन्ग्रेस का झंडा लगा था। राहुल के जाने के बाद लोगों ने अगले दिन फिर से भाजपा का झंडा लगा लिया था।
वाराणसी में प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरने के बाद चुनाव जीतकर जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जो उन्हें विशिष्ट बनाते हैं। एक बार प्रधानमंत्री ने संसद की कैंटीन में खाना खाया और ₹29 स्वयं अपनी जेब से भुगतान किया। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो उन्हें कुछ अलग बनाती हैं। पुराने ज़माने में अटल जी जैसे नेता और सांसद अपने निवास से संसद तक पैदल चल कर चले जाते थे और ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती थी। लेकिन आज के समय में कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पहली बार संसद जाए और चौखट पर शीश नवाए तो यह कोई छोटी बात नहीं समझी जानी चाहिए। हमारी पीढ़ी के कुछ लोग आश्चर्यचकित रह गए थे जब नरेंद्र मोदी ने संसद की दहलीज पर सर झुका कर भारत के प्रजातंत्र को नमन किया था।
जिस दिन नरेंद्र मोदी को सांसद दल का नेता चुना जाना था उस दिन अपने भाषण में उन्होंने दक्षिण की किसी पार्टी के एक सांसद की पत्नी के काम को बहुत सराहा था। उस पार्टी का नाम तक किसी ने नहीं सुना था और राजग (NDA) में उस पार्टी का एक ही सांसद है। जहाँ गठबंधन में 315 से अधिक का आँकड़ा हो वहाँ एक के काम को महत्व देना बड़ी बात थी। इसके अलावा उसी दिन नरेंद्र मोदी ने 5000 चुनावी रैलियों में से एक रैली को याद किया जो नहीं हो सकी थी क्योंकि भाजपा के किसी स्थानीय जिला अध्यक्ष की मृत्यु हो गयी थी। अपने संगठन में नीचे से ऊपर तक सबकी खबर रखना नरेंद्र मोदी की कई खूबियों में से एक है।
जब नरेंद्र मोदी अस्सी घाट की सफाई करने बनारस आये थे तो जिस सहजता से उन्होंने एनजीओ के मालिक से बात की थी वह देख कर शहर के लोग आश्चर्य में पड़ गए थे। दूसरी बार प्रधानमंत्री ने बड़ी तन्मयता से फावड़ा चला कर कई मिनट तक सफाई की थी। उनके बगल में खड़ा बनारस का मेयर काठ की तरह खड़ा था। उन्होंने उससे मिट्टी हटाने को कहा तब उसने फावड़ा उठाया। उसके बाद नरेंद्र मोदी आए तो अस्सी पर ही एक गली की बहुत दूर तक सफाई की थी। बाहरी लोग नहीं जानते हैं उस गली में लोग पेशाब करते थे।
उस दिन मुझे अपने नगर के लोगों पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई थी। एक बार अपनी वाराणसी यात्रा में नरेंद्र मोदी माता आनंदमयी अस्पताल गए थे जो बहुत छोटा सा अस्पताल है। वहाँ ₹10-20 में अच्छे डॉक्टर मिल जाते हैं। वह कोई नामी गिरामी आधुनिक सुविधाओं युक्त बड़ा अस्पताल नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी वहाँ इसलिए गए थे क्योंकि कई साल पहले एक बार किसी क्षेत्र में संघ के प्रचारक के तौर पर जब उन्हें और उनके साथियों को बड़ी भूख लगी थी तब माता आनंदमयी के आश्रम में उन्हें भोजन मिला था। इतने बड़े पद पर पहुँच कर इतनी पुरानी बात याद रखना अचंभे में डालती है।
नवंबर 2014 में सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत गाँव को गोद लेने जब प्रधानमंत्री वाराणसी के जयापुर गाँव गए थे तो उन्होंने गाँव की ग्राम प्रधान के लिए स्वयं उठकर माइक नीचे कर दिया था और वो भी बहुत सहज भाव से। ध्यान रहे की ग्राम प्रधान भारतीय शासन व्यवस्था में सबसे नीचे का पद होता है और प्रधानमंत्री सबसे ऊंचा ओहदा। यानी शासन व्यवस्था (Governance) में सबसे ऊँचे पद पर बैठे व्यक्ति का समन्वय सबसे निचले स्तर पर बैठे व्यक्ति से इस तरह से हो सकता है यह दिखाकर नरेंद्र मोदी ने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया था। उस महिला ग्राम प्रधान ने बाद में कहा की मैं इस दिन को जीवन भर नहीं भूल सकती।
2014 चुनाव से पहले लोग कहते थे कि नरेंद्र मोदी आएगा तो मुस्लिमों का जीना दूभर हो जाएगा। मुझे याद है मार्च 2017 में जब बनारस में रोड शो हुआ था तब प्रधानमंत्री ने मुस्लिम मोहल्ले में अपना काफिला रुकवाकर एक व्यक्ति से द्वारा दिया गया शॉल स्वीकार किया और उसे माथे पर रखा था। दाउदी बोहरा समुदाय हो या साईं बाबा को मानने वाले, सभी की आस्था को एक आदर्श नेता और स्टेट्समैन की भाँति नरेंद्र मोदी ने सर माथे लगाया।
नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में भारत के लोगों को ही नहीं विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भी गले लगाया है। वो चाहे ओबामा हों, पुतिन, शिंज़ो आबे या बेन्जामिन नेतान्याहू। यह वही नरेंद्र मोदी थे जिन्हें कॉन्ग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा था कि उन्हें जिओपॉलिटिक्स, डिप्लोमेसी और अंतरराष्ट्रीय राजनीति की समझ नहीं है। पिछले महीने (मार्च 2019) ही इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने वॉशिंगटन में दिए अपने व्याख्यान में इस्राएल की तकनीक के गुण गाए और नरेंद्र मोदी को अपना ‘मित्र’ संबोधित करते हुए कहा कि आज गुजरात के किसानों के खेतों की पैदावार में इस्राएली तकनीक के कारण उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
लगभग हर महत्वपूर्ण देश में जाकर मोदी ने प्रवासी भारतवासियों से भारत माता की जय के नारे लगवाकर सॉफ्ट डिप्लोमेसी का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया। जब हम भारत में टीवी के सामने बैठकर प्रवासी भारतीयों को मातृभूमि की जय बोलते सुनते थे तो सहसा विश्वास नहीं होता था। यह अकल्पनीय बात थी क्योंकि भारत के आर्थिक-राजनैतिक तंत्र ने हमें हमेशा ही ‘अमेरिकन ड्रीम’ को जीना सिखाया था। नरेंद्र मोदी ने एक झटके में उसे एक ‘ग्रेट इंडियन ड्रीम’ में परिवर्तित कर दिया था।
एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की पाकिस्तान नीति राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, जनता की सोच में भी ऐसा परिवर्तन हुआ जो कई दशकों से नहीं देखा गया था। पाकिस्तान पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के विकल्प अटल जी और मनमोहन सिंह के समय भी थे। किसी चीज की कमी थी तो वह था ‘नेशनल कनसेन्सस।’ किसी भी मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति होना आवश्यक है जो किसी भी सरकार से वह करवा सकती है जो अन्यथा संभव नहीं होता।
यही लोकतंत्र की शक्ति है। नरेंद्र मोदी ने इस शक्ति को पहचाना और जनता के आक्रोश को सेना के मनोबल में बदल दिया। जब कन्हैया कुमार ने सेना पर लांछन लगाए थे तब सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी डीपी में सेना के चित्र लगाकर जवाब दिया था। लेकिन जब एयर स्ट्राइक की गई तब जनता ने वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल का चित्र लगाकर पाकिस्तान पर की गई दंडात्मक कार्यवाही का स्वागत किया। यह अनोखा बदलाव था क्योंकि देश ने 1971 के बाद वायुसेना का पराक्रम देखा ही नहीं था। एयर स्ट्राइक ने देश को वायुसेना से अभिनंदन नामक एक हीरो दिया।
नरेंद्र मोदी कार्यकाल की आलोचना, विवेचना अपनी जगह है। देश के विकास की योजनाओं का मूल्यांकन भी समय करेगा ही लेकिन नरेंद्र मोदी ने देश के जनमानस के मन पर एक छाप जरुर छोड़ी है। भविष्य में जब कभी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे तब लोग इतना ज़रूर कहेंगे की शासन तंत्र के तंतुओं को अलग तरीके से बुनने वाला एक ऐसा नेता भी था।