राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने कोटा बिल पर पार्टी के फ़ैसले के खिलाफ़ बयान दिया है। रघुवंश प्रसाद ने कहा: “लालू यादव ने मुझसे कहा था कि वो गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के ख़िलाफ़ नहीं हैं। हमारी पार्टी ने तो हमेशा गरीबों के लिए काम किया है। हम तो यह चाहते थे कि ओबीसी, दलित व अति पिछड़ा वर्ग को आबादी के हिसाब से उनका आरक्षण बढ़ाया जाए। संसद में कोटा बिल का समर्थन न करना हमारी भूल थी। हमसे चूक तो हुई है।”
रघुवंश प्रसाद के इस बयान को सुनने के बाद मुझे हिंदी की एक कहावत याद आ गई “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।” लेकिन नहीं, रघुवंश सिंह को पूरा भरोसा है कि चिड़िया उनके खेत को अभी नहीं चुग पाई है। इसीलिए रघुवंश सिंह ने कोटा बिल पर पार्टी के स्टैंड के खिलाफ़ बयान देकर राजपूत जाति के लोगों को अपनी तरफ झुका कर रखने का प्रयास किया है।
संसद में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए लाए गए बिल के विरोध का झुनझुना बजाकर राजद प्रवक्ता मनोज झा ने विरोध किया। अपने भाषण में मनोज झा ने संविधान संशोधन बिल के महत्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया था।
यही नहीं राजद के सभी सांसदों ने भी इस बिल के विरोध में वोट किया था। राजद के नेता तेजस्वी यादव चिल्ला-चिल्लाकर इस बिल पर सरकार का विरोध करते रहे हैं। ऐसे में रघुवंश सिंह का पार्टी से अलग हटकर इस बिल पर बयान देना एक तरह से उनके वोट बैंक पॉलिटिक्स का ही एक हिस्सा हैा
सोचने वाली बात यह भी है कि सवर्णों के खिलाफ ‘भूरा बाल साफ़ करो’ का नारा देने वाले लालू यादव के साथ हमेशा खड़े रहने वाले रघुवंश प्रसाद को इस बिल के समर्थन में बयान देने की लाचारी आखिर क्यों आ पड़ी।
दरअसल बिहार में ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण की राजनीति करने वाले लालू यादव की पार्टी में रघुवंश सवर्ण समुदाय से आने वाले इकलौते बडे़ नेता हैं। रघुवंश की यह लाचारी है कि वो पार्टी स्टैंड से अलग हटकर बयान दें। यदि वो ऐसा नहीं करते हैं तो अपनी वजूद को बचा पाना रघुवंश के लिए बहुत मुश्किल होगा।
रघुवंश को राजद व राजनीति में अपनी वजूद कायम रखने के लिए हर हाल में अगला चुनाव जीतना होगा। रघुवंश सिंह बिहार के वैशाली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं। वैशाली लोकसभा से ही चुनाव जीतकर रघुवंश सिंह केंद्र की यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री बन चुके हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान वैशाली लोकसभा में तीन जाति भूमिहार, राजपूत व यादव के लोग मुख्य भूमिका निभाते हैं। रघुवंश राजपूत जाति से आते हैं और राजद के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं, इसलिए राजपूत व यादव दोनों ही जातियों का समर्थन रघुवंश को मिलता है। लेकिन पिछले चुनाव में मोदी लहर के दौरान लोजपा कैंडिडेट ने रघुवंश सिंह को चुनाव मैदान में पस्त कर दिया था।
2014 लोकसभा चुनाव में रघुवंश के हारने की मुख्य वजह राजपूत समुदाय का वोट दो हिस्सों में बँट जाना था। ऐसे में जब चुनाव नजदीक है और राजद झुनाझुना बजाकर आर्थिक रूप से पिछड़ों के आरक्षण वाले बिल का विरोध कर रही है तो बेचारे रघुवंश सिंह हड़बड़ी में ग़ड़बड़ी की बात तो करेंगे ही।
अब देखने वाली बात यह है कि रघुवंश सिंह रोने-धोने के बावजूद राजपूतों के वोट को अपने पाले में ला पाएँगे या नहीं ला पाएँगे। ऐसा इसलिए क्योंकि जब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले संघ प्रमुख ने आरक्षण पर पुनर्विचार करने की बात कही थी तो राजद व कॉन्ग्रेस के नोताओं ने इसका गलत तरीके से लोगों के प्रचार कर दिया था।
भाजपा व संघ विरोधियों ने संघ प्रमुख के बयान को आरक्षण खत्म करने की साजिश बताकर दुष्प्रचार किया था। इस चुनाव में हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव भी भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। राजद के इस आरोप को हुकुमदेव नारायण यादव व दूसरे भाजपा नेताओं ने खारिज किया इसके बावजूद यादवों ने भाजपा को वोट नहीं किया था।
अब देखना यह है कि जब आर्थिक रूप से पिछड़ों के आरक्षण वाले बिल पर जनता राजद नेताओं की नौटंकी को जान चुकी है तो रघुवंश प्रसाद सिंह अपने बचाव में बयान देकर भी राजपूतों को अपने पक्ष में कर पाते हैं या नहीं।