पिछले काफ़ी समय से विपक्ष के लिए एक मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है, वो मुद्दा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार। ऐसा लग रहा है जैसे उनका साक्षात्कार न होकर कोई षड्यंत्र हो जिसकी हर क़दम पर आलोचना की गई। इन आलोचनाओं में कॉन्ग्रेस और उनके कुछ निष्ठावान मीडियाकर्मी यह आरोप लगाते हैं कि पीएम मोदी के साक्षात्कार में उनसे कठिन सवाल नहीं पूछे जाते, केवल हँसी-ठिठोली होती है, मनोरंजन किया जाता है और उनके मनपसंद व्यंजन पूछे जाते हैं।
हाल ही में, रवीश कुमार ने राहुल गाँधी का साक्षात्कार लिया था। रवीश कुमार लंबे समय से NDTV से जुड़े हुए हैं और अपने टीवी शो में वो अक्सर एक प्रश्न ज़रूर उठाते हैं कि साक्षात्कार के नाम पर पीएम मोदी से कोई कठिन सवाल नहीं पूछता, जबकि वो ख़ुद राहुल गाँधी के प्रति बेहद नरम रवैया अपनाते हैं, जो उनके द्वारा लिए गए साक्षात्कार में स्पष्ट दिखा। इस बात की पुष्टि उन्हीं के प्रशंसक निखिल वागले ने सोशल मीडिया पर की, जिन्होंने उन्हें ‘भक्त’ तक की उपाधि दे डाली।
I find nothing extraordinary about Rahul’s interview by Ravish.This is a kid glove interview in typical Ravish style. Show me one inconvenient or different question. I like Ravish, but we don’t have to praise him for wrong reasons. Journalism doesn’t need Bhakts!
— nikhil wagle (@waglenikhil) May 11, 2019
इसी बीच सोशल मीडिया पर एक पुराना वीडियो वायरल हुआ है। इस वीडियो में NDTV का एक पत्रकार अमेठी में राहुल गाँधी के पीछे भागता हुआ दिखाई दे रहा है, जो उनसे एक बेहद मुश्किल सवाल पूछता है कि ‘समोसा का स्वाद कैसा था?’
This is called real journalism ? pic.twitter.com/TcgQZrpqwT
— Chowkidar Maithun MI (@Being_Humor) May 13, 2019
इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि NDTV के उमाशंकर सिंह नामक पत्रकार ने राहुल गाँधी से समोसे के बारे में पूछा तो राहुल ने उनके मुँह में समोसा डाल दिया। मतलब यह कि, ‘समोसे के सवाल पर जवाब में समोसा ही खिला दिया, यानी इस कठिन सवाल का जवाब तो उन्हें नहीं मिला, लेकिन मिला तो क्या मिला केवल समोसा’।
NDTV के हठी पत्रकार को जब अपने इस सवाल का जवाब नहीं मिला तो वो भीड़तंत्र को चीरते हुए राहुल गाँधी की गाड़ी के पास जा पहुँचा और राहुल गाँधी से शिकायती अंदाज़ में पूछा, “आपने जवाब नहीं दिया, समोसा कैसा था?” लेकिन, इस बार पत्रकार महोदय को जवाब मिल जाता है, और राहुल बताते हैं कि हाँ उन्हें समोसा अच्छा लगा।
सवाल पूछना पत्रकार का काम होता है जिसके लिए जिज्ञासु प्रवृति का होना भी आवश्यक है। इसी का प्रमाण NDTV के पत्रकार उमाशंकर ने भी दिया। उन्होंने अपनी जिज्ञासावश राहुल गाँधी से अगला कठिन सवाल पूछा, “आपके पास जलेबियाँ भी थीं, क्या आपको जलेबियाँ पसंद थीं?” इस बार भी सवाल का जवाब पाने में पत्रकार को सफलता मिली।
इसके बाद NDTV के पत्रकार उमाशंकर ने राहुल गाँधी से अपना अगला कठिन सवाल पूछा, “आपने कुछ जलेबी भी खाई, उसका टेस्ट कैसा था?” इसका जवाब भी मिल गया कि जलेबियाँ अच्छी थीं। पत्रकार साहब को तो ये तक मालूम था कि राहुल गाँधी ने जो जलेबियाँ खाई थी, वो गुड़ की बनी हुई थी। भई वाह! मान गए, पत्रकार महोदय की बुद्धि को और उनके ज्ञान को। इसी बुद्धि और ज्ञान का सम्मिश्रण ही है NDTV, जो आए दिन मोदी-विरोधी ख़बरों को प्रचारित और प्रसारित करने में लगा रहता है। जबकि ख़ुद के दामन के दाग उन्हें आज भी नहीं दिखाई देते, जो अनगिनत हैं।
चलिए अब आगे बढ़ते हैं और NDTV के पत्रकार के कुछ और कठिन सवालों पर नज़र डालते हैं, जिनके कठिन सवालों से तो यही लगता है जैसे कि भारत का भविष्य उन समोसे और जलेबियों पर ही निर्भर करता हो, पत्रकार साहब राहुल से आगे पूछते हैं कि ‘क्या आप अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंतित नहीं हैं’? इस पर राहुल की एक स्माइल से ही पत्रकार को संतोष करना पड़ा।
हाल ही में, राहुल गाँधी का एक और पुराना वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने बड़े धूमधाम से गंगा आरती की थी और उसके बाद NDTV के एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि ‘क्या उन्होंने प्रार्थना की, तो राहुल ने जवाब दिया, “मुझे नहीं पता, मुझे यहाँ आने के लिए कहा गया था, इसलिए मैं यहाँ हूँ।”
वहीं, हम प्रधानमंत्री मोदी की बात करें तो उनसे राजनीतिक और गै़र-राजनीतिक दोनों तरह के साक्षात्कार लिए गए। हाल में तो लगभग हर बड़े मीडिया संस्थान ने उनका साक्षात्कार लिया। लेकिन अगर हम कठिन सवालों भरे साक्षात्कार का रुख़ करें तो न्यूज़ एजेंसी ANI की पत्रकार स्मिता प्रकाश ने पीएम मोदी से एक घंटे से भी अधिक समय तक एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों, विमुद्रीकरण, जीएसटी और अन्य सभी चुनौतियों से जुड़े सवाल पूछे थे, जिन्हें सरल तो नहीं कहा जा सकता था। वहीं राहुल गाँधी ने इस साक्षात्कार को “व्यवहारिकता वाली पत्रकारिता” का नाम दिया था।
ऐसे में राहुल गाँधी ख़ुद से पूछे गए सवालों को किस श्रेणी में रखेंगे, उसकी न तो उन्हें कोई समझ है और न ही वो इतने परिपक्व हैं कि इन पत्रकारों को सही पत्रकारिता से अवगत करा सकें। अच्छा यही होगा कि देश की जनता ख़ुद ‘कठिन सवाल’ और ‘सरल सवालों’ के बीच के अंतर को समझ जाए, जिससे विकास की इस राह में वो अपना सकारात्मक योगदान दे सकें।