इस लेख की शुरुआत में ही मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं एक मुस्लिम हूँ। मैंने मोदी को वोट नहीं दिया है और मैं चाहती थी कि हमारे देश को प्रधानमंत्री के रूप में कोई और नेता मिले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो फिर से पीएम बने और इसलिए बने क्योंकि हिंदुस्तान के लोगों ने उन्हें अपना नेता चुना।
Heart has sunk to my knees already. Can’t even imagine what it must feel like to be a Muslim in India this morning. ?
— Urmi Chanda-Vaz (@URM1) May 23, 2019
23 मई को जब ये साफ़ होता जा रहा था कि नरेंद्र मोदी सत्ता में दोबारा लौट रहे हैं, तो मेरा ट्विटर टाइमलाइन उच्च जाति के कुछ चुनिंदा हिंदुओं के ट्वीट्स से भर गया था, जिसमें वो भारत में मुस्लिमों की स्थिति पर गंभीर विचार कर रहे थे।
Today I stand with my minority( Muslims) brothers and sister who feel threatened and scared. Don’t worry, we together will fight to protect secular India together. India can never be Hindu Rashtra.
— nikhil wagle (@waglenikhil) May 23, 2019
सच कहूँ, 24 मई को जब मैं सुबह उठी तो मुझे बिलकुल वैसा लग रहा था जैसे मैंने 27 साल पहले महसूस किया था। मेरे अंदर कोई डर नहीं बढ़ा था। मुझे बिलकुल नहीं लग रहा था कि दुनिया खत्म होने वाली है। मुझे नहीं महसूस हो रहा था कि मुझे अपना बैग-पैक करके देश छोड़ देना चाहिए।
फिर आप लोग किस लड़ाई के बारे में बात कर रहे हैं? कोई लड़ाई नहीं है। मैं ऐसे हिंदुओं को बिलकुल नहीं जानती जो मेरे पास आकर मेरे धर्म के बारे में पूछें। और इस बात को जानने के बाद कि मैं एक मुस्लिम हूँ, वो मुझे तंग करें। ट्विटर ही सिर्फ़ एक ऐसी जगह है जहाँ बार-बार मुझे मेरे धर्म से अवगत कराया जाता है। यहाँ मुझे बार-बार बताया जाता है कि मुझे डरने की जरूरत है क्योंकि यह अटल सत्य है कि एक दिन मुझे मेरे मुस्लिम होने के कारण मार दिया जाएगा।
मैंने अपनी एक मुस्लिम साथी का लेख पढ़ा। इसमें वो लिखती हैं कि वो अपनी भारतीयता को साबित करते-करते थक चुकी हैं और वो अपनी ऊर्जा खुद को पाकिस्तान से अलग दिखाने में गँवाती हैं। हो सकता है वो गलत लोगों की संगत में हों या अपना ज्यादा से ज्यादा समय ट्विटर पर बिताती हों, जहाँ अपनी आवाज उठाते ही लोग आपको तेजी से ट्रोल कर देते हैं। लेकिन अगर आप सच में अपने घर से कदम निकालेंगी और लोगों से बात करेंगी तो मालूम चलेगा कि दुनिया वैसी ही है जैसे अब से 10 साल पहले थी।
हमें हकीकत में उस सोच को बदलने की जरूरत है, जिसमें हमने अपनी छवि ऐसे मुस्लिम की बना ली है जिसे बचाने की जरूरत है। लोग हमसे नाराज़ नहीं हैं, बल्कि उन कट्टरपंथियों से नाराज़ हैं जो अल्लाह का नाम लेकर मज़हबी लड़ाई लड़ते हैं। इसलिए हमें हमारे मजहब के कारण विशेष महसूस करवाना बंद करिए। उस समय आप अपने सेकुलर होने की साख को धूमिल करते हैं जब आप मुझे एक ‘मुस्लिम’ की तरह देखते हैं। जैसे-जैसे मेरे मज़हब से जुड़े लोग अपराध करना बंद करेंगे, वैसे-वैसे लोगों में इस मज़हब के प्रति गुस्सा कम होता जाएगा। उनके आक्रोश की जड़ मेरा मुस्लिम होना नहीं हैं, बल्कि इसका कारण आप हैं जो मेरे मजहब के लोगों के गुनाहों को ये कहकर छिपाते हैं कि अपराध से मजहब का कोई लेना-देना नहीं हैं, जबकि ये सब जानते हैं कि मजहब ही एक कारण जिसके कारण लोग भड़कते हैं।
मेरे परिवार में ऐसे लोग हैं जो दूसरे धर्म के लोगों से जुड़ना ही नहीं चाहते हैं। वे अपने स्वयं के केंद्रित इलाकों में रहना पसंद करते हैं, दूसरों के साथ बातचीत करने से इनकार करते हैं। जिसके कारण दूसरों में अविश्वास की भावना पैदा होती है। वो डर और गरीबी में जीवन जीते हैं क्योंकि उनके धार्मिक गुरू चाहते हैं कि वो ऐसे ही रहें। मुस्लिम समुदाय की 5 प्रतिशत आबादी जो संपन्न है, वो इस्लाम को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है। किनके खिलाफ? उनके खिलाफ जो मुस्लिम समाज का बहुसंख्यक तबका (आर्थिक व सामाजिक तौर पर पिछड़ा) है। वो नहीं चाहते हैं कि पूरी मुस्लिम कौम का विकास हो, वो नहीं चाहते हैं कि पंक्चर वाला अब्दुल बाहर निकले, दुनिया देखे, आगे बढ़े… क्योंकि इससे उनकी सत्ता पर खतरा मंडराता है।
अब ऐसे में क्या इसका मतलब यह है कि मैं मोदी समर्थक हूँ? नहीं। क्या मैं कॉन्ग्रेसी हूँ? नहीं। क्या मुझे आम आदमी पार्टी में यकीन है? बिलकुल नहीं।
और क्या मुझे डर लग रहा है? बिलकुल भी नहीं।
इसलिए आप लोग अपने गुस्से को शांत करें, और असल जिंदगी में कुछ काम करें। मुस्लिमों से बात कीजिए, उन्हें पढ़ाइए और एक बात खुद भी समझिए कि आपके टीवी स्टूडियो के बाहर अधिकांश मुस्लिमों का जीवन आम है, आप जैसा ही है। ये आप हैं जो किसी भी कारण से चाहते हैं कि मुस्लिम डर के साथ जिए। ये बिलकुल उतना ही साम्प्रादायिक है जितना एक मुस्लिम से कहना कि वो अपना राष्ट्रवाद साबित करे।
मैं ये भार नहीं चाहती हूँ। मैं एक आम जिंदगी जीना चाहती हूँ।
नोट: लेखिका का नाम नूरी मोहम्मद है। उनका पालन-पोषण भोपाल में हुआ है। उन्होंने एमबीए किया हुआ है और वर्तमान में वो गुरुग्राम स्थित एक कम्पनी में बतौर एचआर एग्जिक्यूटिव कार्यरत हैं।
यह लेख अनुवादित है। अंग्रेजी में मूल लेख पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-
I am an Indian Muslim, stop feeling sorry for me