जिन्ना और पाकिस्तान का समर्थन एक बार फिर चर्चा में है। इसके पीछे पहला और सबसे ताजा कारण कॉन्ग्रेस द्वारा बिहार चुनावों में एक जिन्ना समर्थक को टिकट दिया जाना है और दूसरा कारण जिन्ना को मीडिया गिरोह द्वारा निरंतर ही मिलते रहने वाली सहानुभूति और उस मजहबी विचारधारा का महिमामंडन है। ऐसे में कुछ ऐसे नाम भी हैं, जो कॉन्ग्रेस प्रत्याशियों से भी बहुत पहले से जिन्ना में यकीन रखते थे, मगर उनका दुर्भाग्य था कि जिस जिन्ना और पाकिस्तान को उन्होंने भारत के बदले चुना, वो उनके चुनाव से इन्साफ नहीं कर सके। जिन्ना और जिन्ना के ‘पाकिस्तान’ ने उन्हें तलाशा और उनकी मजहबी पहचान के लिए उनकी हत्या कर डाली।
हालाँकि, ऐसे लोग प्रभावशाली ‘बुद्धिजीवी’ लोग थे, जो ‘सेक्युलर’ होने के नाम पर पाकिस्तान के समर्थन में रहे और आखिर में उन्हें इसका नतीजा गुमनामी या फिर मजहबी भीड़ द्वारा दी गई क्रूरतम मौत के रूप में चुकाना पड़ा। इसी कड़ी में पाकिस्तान के ‘धर्मनिरपेक्ष’ जिन्ना और पाकिस्तान के हिन्दू समर्थक अर्थशास्त्री प्रोफेसर बृज नारायण (Professor Brij Narayan) की नृशंस हत्या का भी जिक्र हुआ है।
विभाजन के बाद जहाँ दूसरे समुदाय के कई लोगों ने भारत में रहना चुना तो वहीं, पाकिस्तान को चुनने वाले हिन्दुओं की संख्या भी कम नहीं थी। इन्हीं में से एक थे प्रगतिशील अर्थशास्त्री प्रोफेसर बृज नारायण, जो लाहौर यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख थे। पाकिस्तान और जिन्ना समर्थक प्रोफेसर बृज नारायण ने लाहौर में ही रहने का विकल्प चुना था। दुर्भाग्यवश बृज नारायण की उनके कार्यालय में ही हिन्दुओं को तलाश रही एक मजहबी भीड़ ने हत्या कर दी, बावजूद इसके कि बृज नारायण जिन्ना समर्थक थे।
11 अगस्त, 1947 को, जिन्ना ने पाकिस्तान संविधान सभा में एक भाषण दिया था, जिसमें सभी पाकिस्तानी नागरिकों को उनके धर्म या जातीयता के बावजूद समान अधिकारों की घोषणा की थी। हालाँकि जो उन्होंने कहा, वह पाकिस्तान की वास्तविकता से एकदम उलट था।
जिन्ना ने दावा किया था कि उनके समुदाय की सरकार स्वतः ही निष्पक्ष होगी क्योंकि लोकतंत्र उनके खून में है। इसके साथ ही उन्होंने यही सलाह समुदाय के उन लोगों को भी दी जो भारत में ‘वफादार भारतीय नागरिक’ बनने के लिए रहे और उन्होंने उम्मीद की कि भारत सरकार (कॉन्ग्रेस के तहत) उनके प्रति निष्पक्ष और सुरक्षात्मक होगी।
Lahore economist Prof Brij Narain, a Hindu admirer of Jinnah, was mercilessly killed by a mob that raided his home.He pleaded in vain that he was a supporter of Jinnah/Pakistan. After that incident, few if any Hindus/Sikhs remained in Lahore/Pak Punjab https://t.co/ip92dKAKkG https://t.co/0aUkvnVudk
— Prasanna Viswanathan (@prasannavishy) October 19, 2020
आश्चर्य की बात यह है कि कुछ हिंदू भी जिन्ना की धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते रहे और उनमें से कुछ पाकिस्तान में ही रहकर अपनी सेवा देना चाहते थे। इन्हीं में से जिन्ना के एक ऐसे ही हिंदू प्रशंसक थे- लाहौर के प्रमुख अर्थशास्त्री प्रोफेसर बृज नारायण, जिनकी भीड़ ने निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी। भीड़ ने निकोलसन रोड स्थित उनके घर पर धावा बोला और उनकी नृशंस हत्या कर दी। इस दौरान वो उस हिंसक भीड़ से मिन्नतें करते रह गए कि वह पाकिस्तान और जिन्ना के समर्थक हैं, मगर भीड़ ने उनकी एक न सुनी और मौत के घाट उतार दिया।
प्रोफेसर बृज नारायण की मॉब लिंचिंग एक सुनियोजित हत्या थी या नहीं यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन जिस भीड़ ने उन्हें अपना शिकार बनाया, उसे सिर्फ हिंदुओं को मारना था। 2 दिन पहले जहाँ लाहौर आधा हिन्दू और आधा सिखों से भरा हुआ था, उसी लाहौर में महज 2 दिन में सिर्फ मुस्लिम बाकी रह गए।
बृज नारायण सिंह भीड़ से यही कहते रहे कि वो पाकिस्तान और जिन्ना समर्थक हैं। बताया जाता है कि इस्लामी भीड़ की पहली टुकड़ी ने उन्हें छोड़ भी दिया था, लेकिन उन्मादियों की दूसरी भीड़ शायद दलीलें नहीं चाहती थीं, ना ही उन्हें हिन्दुओं की किसी मुल्क और उसके कानून के प्रति आस्था का सबूत चाहिए था।
हिन्दू और प्रगतिशील होने के साथ-साथ सेक्युलर विचारधारा में यकीन रखने वाले अर्थशास्त्री प्रोफेसर बृज नारायण ने तर्क दिया था कि पाकिस्तान बनने से आर्थिक स्थिति को मजबूती ही मिलेगी। उनके द्वारा लिखे गए कई लेख भी इसकी पुष्टि करते हैं, मगर जब कट्टरपंथियों ने दंगे करने और हिन्दुओं को चुन-चुनकर मारना शुरू किया तो उन्होंने पाकिस्तान समर्थक सेक्युलर हिन्दुओं को भी नहीं छोड़ा। मुस्लिम लीग और कॉन्ग्रेस के कैडरों ने निर्दोष लोगों पर हिंसक हमलों में भाग लिया।
जिन्ना ने उन्हें यकीन दिलाया था कि एक बार पाकिस्तान अस्तित्व में आया और सत्ता की बागडोर उसके हाथों में थी, तो हालात सामान्य हो जाएँगे। प्रोफ़ेसर बृज नारायण जैसे कितने ही लोगों ने जिन्ना के शब्दों पर यकीन भी जताया और अपना भाग्य एक हिंसक मजहब के सेकुलर आवरण के भरोसे रख दिया।
इसी तरह बंगाल के दलित नेता थे जोगेंद्र नाथ मंडल। पाकिस्तान के जन्मदाताओं में से वो भी एक थे। सन 1940 में कलकत्ता म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में चुने जाने के बाद से ही खास समुदाय की उन्होंने खूब मदद की। उन्होंने बंगाल की एके फज़लुल हक़ और ख्वाजा नज़ीमुद्दीन (1943-45) की सरकारों की खूब मदद की और 1946-47 के दौरान मुस्लिम लीग में भी उनका योगदान खूब था। इस वजह से जब कायदे आज़म जिन्ना को अंतरिम सरकार के लिए पाँच मंत्रियों का नाम देना था तो एक नाम उनका भी रहा।
जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान के पहले श्रम मंत्री भी थे। सन 1949 में जिन्ना ने उन्हें कॉमनवेल्थ और कश्मीर मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी भी सौंप दी थी। इस 1947 से 1950 के बीच ही पाकिस्तान में हिन्दुओं पर लौमहर्षक अत्याचार होने शुरू हो चुके थे। दरअसल हिन्दुओं को कुचलना कभी रुका ही नहीं था। बलात्कार आम बात थी। हिन्दुओं की स्त्रियों को उठा ले जाना जोगेंद्र नाथ मंडल की नजरों से भी छुपा नहीं था। वो बार-बार इन पर कार्रवाई के लिए चिट्ठियाँ लिखते रहे।
इस्लामी हुकूमत को ना उनकी बात सुननी थी, ना उन्होंने सुनी। हिन्दुओं की हत्याएँ होती रहीं। जमीन, घर, स्त्रियाँ लूटी जाती रहीं। कुछ समय तो जोगेंद्र नाथ मंडल ने प्रयास जारी रखे। आखिर उन्हें समझ आ गया कि उन्होंने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी है। जिन्ना की मौत होते ही 1950 में जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आए। पश्चिम बंगाल के बनगांव में वो गुमनामी की जिन्दगी जीते रहे। अपने किए पर 18 साल पछताते हुए आखिर 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने गुमनामी में ही आखरी साँसें लीं।