इधर, 55 महीने में गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, किसानों, युवाओं और महिलाओं सहित देश के नागरिकों को आर्थिक सशक्तिकरण के साथ सामाजिक न्याय दिलाकर सशक्त व समृद्ध भारत न्यू इंडिया बनाने का दावा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार का हिसाब है, उधर 55 साल से कभी न पूरे होने वाले कॉन्ग्रेस के वादों की झड़ी है और विपक्ष के जुमलों की लड़ी है।
चुनावी माहौल आते ही जुमलेबाजी की रफ्तार बढ़ चुकी है। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने परनाना जवाहर लाल नेहरू, दादी इंदिरा गाँधी, पिता राजीव गाँधी और माँ सोनिया गाँधी की तरह ही फिर से ‘गरीबी हटाओ’ का राग अलापने लगे हैं। अपने पुरखों की तरह ही उन्होंने भी गरीबी हटाओ की एक हवा-हवाई अव्यवहारिक स्कीम ‘न्याय’ का शिगूफा छोड़ा है।
यह अलग बात है कि छह दशक तक न्याय की दुहाई देकर सत्ता पर कब्जा करने वाला गाँधी परिवार व कॉन्ग्रेस जनता को न्याय तो न दे सकी, हाँ… भ्रष्टाचार, वंशवाद, परिवारवाद, लोकतंत्र की हत्या करने वाला आपातकाल, आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, उग्रवाद, भारतीय भूभाग कश्मीर के एक हिस्से पर चीन व पाकिस्तान का कब्जा कराना, तिब्बत को चीन को सौंप देना, सिंधु जल बंटवारा करके भारत के लोगों का हक अन्यायपूर्ण तरीके से पाकिस्तान को दे देना, रक्षा सौदों में दलाली, बोफोर्स रिश्वत कांड (1987), जीप घोटाला (1948), आयल घोटाला, साइकिल घोटाला (1951), मुंधा घोटाला (1958), इंदिरा गांधी की संदिग्ध भूमिका वाला मारुति कार घोटाला, आयल घोटाला (1976), पनडुब्बी घोटाला (1987), स्टॉक मार्केट घोटाला, (1992), सिक्योरिटी घोटाला, एयरबस घोटाला, यूरिया घोटाला, स्टाम्प पेपर घोटाला, सत्यम घोटाला, 1 लाख 76 हजार करोड़ का 2 जी मामला, कॉमनवेल्थ घोटाला, देवास एंट्रिक्स घोटाला, हेलीकॉप्टर खरीद में गांधी परिवार को रिश्वत घोटाला, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी और वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा नेशनल हेराल्ड की 5000 करोड़ रुपए की संपत्ति का गमन मामला, प्रियंका वाड्रा के पति राबर्ट वाड्रा के लिये देशभर में हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा मामला, असुरक्षित सीमाएँ, हथियारों व साजोसामान से वंचित सेना, निर्दोषों को फँसाकर हिंदू आतंकवाद की थियरी गढ़ना, विजय माल्या, नीरव सहित गाँधी परिवार के करीबी अनेक बेईमानों को जनता का हजारों करोड़ रुपए लुटा देना आदि जरूर दिया।
अब जरा वर्तमान मोदी सरकार का भी हिसाब लिया जाए। विश्व बैंक के ब्रूकिंग्स संस्थान के फ्यूचर डेवलपमेंट की अद्यतन रिपोर्ट ने माना है कि 2016 के बाद भारत में गरीबों की संख्या में स्टीप फाल यानी तीव्र गिरावट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार केवल दो साल जनवरी 16 से मई 18 तक में ही भारत में गरीबों की संख्या 12.30 करोड़ से घटकर लगभग आधी यानी 7.3 करोड़ रह गई और प्रति मिनट 44 व्यक्ति गरीबी रेखा से ऊपर जा रहा है। इसी रिपोर्ट के अनुसार इसी समयावधि में भारत ने चीन की 6.8 प्रतिशत वृद्धि दर को पीछे छोड़कर 7 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेज विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था बन गई।
कॉन्ग्रेस के 55 साल के शासन में देश का हर पाँचवाँ व्यक्ति घोर गरीबी में जीवनयापन कर रहा था। आज देश की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है। पिछले पाँच साल में गरीबी उन्मूलन की सफलता की दर ऐसी रही कि गरीबों की 21.6 करोड़ से घटकर 5 करोड़ के आसपास अर्थात लगभग 3.8 प्रतिशत रह गई है। ब्रूकिंग्स रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान की मोदी सरकार द्वारा हासिल की गई आर्थिक संवृद्धि दर बनी रही तो 2022 तक शेष 5 करोड़ लोग भी गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो जाएँगे यानी भारत गरीबी से मुक्त हो जाएगा।
गरीबी को नारा बनाकर गरीब को बिसराने वाली कॉन्ग्रेस यदि विश्व बैंक के इन प्रमाण को झुठलाकर भ्रम की राजनीति के सहारे चुनाव जीतना चाहती है तो उसे यह जवाब तो देना होगा कि गाँधी परिवार की पाँच पीढ़ियों के गरीबों के हटाओ के नारे देने के बावजूद उनके शासनकाल में देश में गरीबी, अमीर और गरीब के बीच खाई और एक प्रतिशत धनी लोगों के पास देश का 73 प्रतिशत धन कैसे रहा?
दरअसल, देश की राजनीति की दिशा हवा-हवाई नारों और खोखले वादों के दौर से निकलकर पॉलीटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस की ओर बढ़ चली है। हाल ही हुए सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के सर्वे में 64 प्रतिशत लोगों ने माना है कि 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनने के बाद सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है। इस सर्वे के आँकड़े यह भी बताते हैं कि 57 प्रतिशत लोगों का कहना है, मोदी सरकार में आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगी है और जीवन लागत घटी है। जबकि 75 प्रतिशत लोगों की राय है कि सरकार की कार्यशैली व प्रदर्शन उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप रहा है। 48 प्रतिशत लोगों का कहना था कि सरकार ने बेरोजगारी की समस्या के समाधान की दिशा में संतोषजनक कार्य किया है। 55 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोदी सरकार के कार्यकाल में महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध अपराध कम हुए हैं। संसद के कामकाज को लेकर 65 प्रतिशत लोग मोदी सरकार के संसदीय प्रबंधन एवं कार्यों को संतोषप्रद बताया है। बड़ी संख्या में लोगों ने यह भी माना कि इस सरकार में आतंकवाद व सांप्रदायिकता की घटनाएं कम हुई हैं और सरकार ने पाकिस्तान के मामले ठीक से हैंडल किया है।
इस सर्वे में 30 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार ने उनकी आशाओं और आकांक्षाओं से बढ़कर काम किया है, जबकि 45 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार उनकी आकांक्षाओं को पूरा कर रही है। इस प्रकार 75 प्रतिशत लोगों ने माना है कि मोदी सरकार पाँच साल के अपने कामों के माध्यम से जनता की आकांक्षाओं पर खरी उतरी है। इस सर्वे में मोदी सरकार द्वारा पिछले पाँच साल में शुरू किये गए मिशनों व कार्यक्रमों जैसे आयकर में कटौती, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिये आरक्षण, स्टार्टअप के लिए एंजल टैक्स, आयुष्मान भारत के माध्यम से जन स्वास्थ्य सुरक्षा आदि के आधार पर नागरिकों से फीडबैक लिया गया।
यह देखकर कहा जा सकता है कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं को देश का चौकीदार बताते हैं, उसी तरह जनता भी चौकीदार बनकर बड़ी बारीकी से सरकारों के कामकाज की निगरानी कर रही है और अच्छा या ख़राब का निर्णय स्वयं लेने लगी है। ऐसे में हवा-हवाई और अव्यवहारिक घोषणाएँ करके चुनाव जीतने की घिसी-पिटी राजनीति के चादर में लिपटे दलों का हश्र क्या होगा, यह आगामी 23 मई को सामने आ जाएगा। किंतु एक बात तय है कि अब जनता के निर्णय का पैमाना बदल चुका है और प्रेरक राजनीति और सकारात्मक प्रगतिशील सुशासन इसका आधार बनने लगा है।