विचारों के प्रति प्रतिबद्ध, कानून के जानकार, हाजिरजवाब, दोस्तों के दोस्त… अरुण जेटली को आप जैसे चाहें याद कर सकते हैं। जेटली हर मसले का बारीक और विस्तृत विश्लेषण करने वाले नेताओं में से थे। किस विषय पर कब और कैसे अपनी बात रखनी है यह उनसे सीखा जा सकता है। यही कारण है कि उनका ब्लॉग भी काफी चर्चित रहा।
अपना आखिरी ब्लॉग में उन्होंने 6 अगस्त को लिखा था। इसमें संसद के सफल और ऐतिहासिक सत्र के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को विशेष तौर पर धन्यवाद देते हुए उन्होंने अपनी बात शुरू की है। तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर पर सरकार के फैसले की तारीफ करते हुए विस्तार से बताया है कि कैसे आर्टिकल 370 की वजह से चीजें बिगड़ी। कैसे नेहरू और शेख अब्दुल्ला के प्रयोगों की प्रयोगशाला बन गया जम्मू-कश्मीर।
ब्लॉग की शुरुआत करते हुए उन्होंने लिखा है, “संसद का वर्तमान सत्र सबसे अधिक सफल रहा है। इस सत्र में ऐतिहासिक बिल पारित किए गए हैं। ट्रिपल तलाक कानून, भारत के आतंकवाद विरोधी कानूनों को मजबूत करना और अनुच्छेद 370 पर निर्णय सभी अभूतपूर्व हैं। सरकार की नई कश्मीर नीति के समर्थन में जनता का मूड इतना मजबूत है कि कई विपक्षी दलों ने जनता की राय के आगे घुटने टेक दिए। राज्यसभा के लिए दो-तिहाई बहुमत से इस फैसले को मंजूरी देना किसी की भी कल्पना से परे है।”
फिर उन्होंने जम्मू-कश्मीर पर विफल प्रयासों का सिलसिलेवार तरीके से विवरण दिया है। उन्होंने लिखा है कि विभाजन के बाद पश्चिम पाकिस्तान से लाखों शरणार्थी भारत आए। पंडित नेहरू की सरकार ने उन्हें जम्मू-कश्मीर में बसने नहीं दिया। पंडित नेहरू ने शेख अब्दुल्ला पर भरोसा किया जिसने राज्य को अपने ‘पर्सनल किंगडम’ में बदल दिया।
उन्होंने लिखा है, “कश्मीर पर पंडित नेहरू ने हालात का आकलन करने में भारी भूल की थी। उन्होंने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला पर भरोसा करके उन्हें राज्य की बागडोर सौंपने का फैसला किया। 1953 में उनका विश्वास शेख से उठ गया और उन्हें जेल में बंद कर दिया।”
जेटली ने फिर बताया है कि कैसे इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी ने कश्मीर में प्रयोग किए। उन्होंने बताया है कि बाद में शेख अब्दुल्ला को रिहा करने और बाहर से कॉन्ग्रेस का समर्थन सुनिश्चित कर इंदिरा गाँधी ने उनकी सरकार बनवाई। कुछ महीने के भीतर ही शेख अब्दुल्ला के सुर बदल गए और इंदिरा गाँधी को छले जाने का अहसास हो गया। 1987 में राजीव गाँधी ने एक बार फिर से नीतियों को बदला। शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। चुनाव में धांधली हुई। कुछ उम्मीदवार जिन्हें जोड़-तोड़ कर हराया गया, वे बाद में अलगाववादी और आतंकवादी तक बन गए।
जेटली ने लिखा है, “जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने की ऐतिहासिक भूल से देश को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी। आज, जबकि इतिहास को नए सिरे से लिखा जा रहा है, उसने ये फैसला सुनाया है कि कश्मीर के बारे में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दृष्टि सही थी और पंडित नेहरू जी के सपनों का समाधान विफल साबित हुआ है।”
उन्होंने लिखा है, “1989-90 तक हालात काबू से बाहर हो गए। अलगाववाद के साथ आतंकवाद की भावना जोर पकड़ने लगी। कश्मीरी पंडितों को वैसे अत्याचार बर्दाश्त करने पड़े, जैसे अत्याचार केवल नाजियों ने ही किए थे। पंडितों को घाटी से खदेड़ दिया गया।”
ब्लॉग में जेटली ने आगे बताया है कि अलगाववाद के जोर पकड़ने पर विभिन्न राजनीतिक दलों की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार ने तीन नए प्रयास किए। अलगाववादियों के साथ बातचीत की कोशिश की, जो व्यर्थ साबित हुई। द्विपक्षीय मामले के रूप में पाक के साथ बातचीत की कोशिश की गई। जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों पर भरोसा कर उन्हें सत्ता में बिठाया। लेकिन यह भी असफल रहा।
कॉन्ग्रेस के लिए जेटली ने लिखा है, “कॉन्ग्रेस पार्टी की विरासत ने इस समस्या का सृजन किया और उसे बढ़ाया। अब कॉन्ग्रेस के लोग व्यापक तौर पर सरकार के फैसले का समर्थन कर रहे हैं। नया भारत बदला हुआ भारत है। केवल कॉन्ग्रेस इसे महसूस नहीं करती है। कॉन्ग्रेस नेतृत्व पतन की ओर अग्रसर है।”