दिल्ली में कोयला ‘संकट’ आया तो केजरीवाल सरकार एक बार फिर केंद्र सरकार पर सारा ठीकरा फोड़ने को बैठी है। एक तरफ अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री से पूरे मसले पर हस्तक्षेप को बोल रहे हैं, दूसरी ओर उन्हीं के पार्टी के नेता व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार इस संकट को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रही है। उनके मुताबिक, ये हालत बिलकुल कोविड के कारण अप्रैल और मई में उपजी परिस्थिति जैसे हैं।
हालाँकि, मेडिकल ऑक्सीजन की तुलना इस मुद्दे से करना थोड़ा हैरान करने वाला जरूर है क्योंकि वो केजरीवाल सरकार ही थी जिसने जरूरत से ज्यादा की डिमांड करके राजधानी में पैनिक बढ़ाया था।
सिसोदिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर कहा, “पिछले 3-4 दिनों से, देश भर के मुख्यमंत्री इस मुद्दे को केंद्र सरकार के पास भेज रहे हैं। इन सबके बीच केंद्रीय ऊर्जा मंत्री कह रहे हैं कि कोई संकट नहीं है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को पत्र नहीं लिखना चाहिए था। केंद्र का ऐसा गैर- जिम्मेदाराना रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि सरकार ‘आँखें मूंदे रखने वाली’ नीति का पालन कर रही है, और इसने अतीत में परेशानी पैदा की है। उन्होंने कहा, “अगर सभी मुख्यमंत्री कोयले की कमी का मुद्दा उठा रहे हैं तो इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस बार भी नाकामी के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। जिस तरह से उन्होंने ऑक्सीजन का गलत प्रबंधन किया, उसी तरह वे कोयले का गलत प्रबंधन कर रहे हैं।”
हालाँकि सिसोदिया ये कहते हुए भूल गए कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त ऑडिट पैनल ने किस तरह ये बात पाई थी कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने 25 अप्रैल से 10 मई के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में ऑक्सीजन की आवश्यकता को चार गुना से अधिक बढ़ाकर माँगा। ये काम वो तब कर रहे थे जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी और हर राज्य को ऑकसीजन पहुँचाई जानी थी।
इससे पहले दिल्ली के विद्युत मंत्री सत्येंद्र जैन ने चेतावनी दी थी कि अगर राष्ट्रीय राजधानी को जल्द से जल्द कोयले की सप्लाई नहीं पहुँचती है तो पूरा ‘ब्लैकाउट’ हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि दिल्ली सरकार महंगी बिजली खरीदने को भी तैयार है। दिल्ली मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि वो हालातों पर नजर बनाए हुए हैं और पूरी कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली को बिजली की समस्या से बचाया जा सके।
AAP सरकार ने दिल्ली में किए थर्मल पावर प्लॉन्ट बैन
ये ज्ञात रहे कि दिल्ली सरकार जहाँ कह रही है कि वो अपने स्तर पर हर संभव कोशिश कर रही हैं कि थर्मल पावर प्लांट्स के लिए वो कोयला हासिल कर सकें। वहीं उनकी पुरानी रणनीति उनके दोहरे चरित्र को दिखाती है।
2019 में, दिल्ली सरकार ने दिल्ली में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। इसके बाद एक कदम आगे बढ़ते हुए, इन्होंने उन उद्योगों पर भी प्रतिबंध लगा दिया जो बिजली के स्रोत के रूप में कोयले का उपयोग कर रहे थे।
साल 2020 में, दिल्ली के बिजली मंत्री सत्येंद्र जैन ने केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह को पत्र लिखा था और उनसे राष्ट्रीय राजधानी के 300 किलोमीटर के दायरे में 11 थर्मल प्लांट बंद करने का आग्रह किया। फिर, तीन महीने पहले जून 2021 में, दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कोयले से चलने वाले दस बिजली संयंत्रों को बंद करने के निर्देश माँगे थे।
क्या सच में हो गई है भारत में कोयला कमी?
कुछ हफ्तों से विद्युत उद्योग में हल्ला है कि देश में कोयला की कमी है। इस बीच कई राज्यों समेत केजरीवाल सरकार ने हड़बड़ी मचानी शुरू कर दी है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और राज्य सरकारों के दावों के उलट केंद्र सरकार कह रही है कि देश में कोयला की कोई कमी नहीं है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में, कोयला मंत्रालय ने आश्वस्त किया कि देश में कोयले का पर्याप्त भंडार है। विशेष रूप से, भारत में जहाँ कोयला खदानें स्थित हैं, उस क्षेत्र में मानसून और भारी वर्षा के बावजूद, कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) देश भर में थर्मल प्लांटों को लगातार कोयले की आपूर्ति कर रहा है।
ये बात जानने वाली है कि इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले की कीमत बहुत बढ़ी हुई है, जिससे कोयला आयात में कठिनाई हो रही है और इसी को सबने ‘संकट’ से जोड़ दिया गया है।
CIL ने पॉवर कंपनियों से कोयला स्टॉक करने को कहा था
दिलचस्प बात यह है कि सितंबर 2021 में, यह बताया गया था कि सीआईएल बिजली कंपनियों को लिख रहा है कि वे कोयले के सेवन को विनियमित न करें और खुद से कोयला स्टॉक का निर्माण करें। सीआईएल ने कहा था कि इससे बिजली कंपनियों को लगातार बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
इसके बाद उसी माह में, सीआईएल ने बिजली संयंत्रों को आपूर्ति 20% तक बढ़ा दी थी। राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी ने कहा था कि उन्होंने प्राथमिकता पर 0 से छह दिनों के स्टॉक के साथ बिजली संयंत्रों को आपूर्ति आवंटित की थी और लिंक की गई खदानों के साथ किसी भी समस्या के मामले में वैकल्पिक स्रोतों की व्यवस्था की थी।
कोयले में कमी आना कोई नई बात नहीं है
नेताओं के दावों से उलट ये बात मालूम हो कि इस प्रकार कोयला की कमी आना कोई नई बात नहीं है। हर साल मॉनसून सत्र में ये कमी कुछ निश्चित समय के लिए होती है जिसे जल्द ही सही भी कर लिया जाता है। अप्रैल 2018 में भी ऐसी रिपोर्ट आई थी लेकिन तब सरकार ने सभी दावों को खारिज कर दिया था।
2019 में कहा गया कि हेवी मॉनसून के कारण प्रोडक्शन में 24 फीसद कमी आई है। लेकिन, नवंबर 2020 में पता चला कोयला उत्पादन में 19 फीसद उछाल आई है। कोयले की कमी भारत में केवल एक दौर की तरह है जो हर साल आता है। इस साल कम आयात के कारण हो सकता है सप्लाई में कमी है। लेकिन केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि चिंता की कोई बात नहीं है।