आज भारतीय जनता पार्टी, असम प्रदेश के महासचिव डॉक्टर राजदीप रॉय द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई। इस विज्ञप्ति के अनुसार हाल ही में संपन्न हुए असम विधानसभा चुनावों में दल के अल्पसंख्यक मोर्चा का प्रदर्शन निम्न स्तर का रहा। प्रदर्शन इतना खराब था कि दल को अल्पसंख्यक मोर्चा के पंजीकृत सदस्यों के वोट भी नहीं मिले। यही कारण है कि प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने प्रदेश में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे को ही भंग कर दिया है।
पार्टी की ओर से जारी यह विज्ञप्ति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भाजपा के प्रति अल्पसंख्यकों की सोच को दर्शाता है। जिस दल के नेतृत्व का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ हो उसके अल्पसंख्यक मोर्चे के सदस्य ही उसे वोट न करें तो दल आम अल्पसंख्यक वोटर से क्या उम्मीद लगाएगा? यह घटना दल के उन नेताओं के लिए भी एक संदेश है जो उत्तर-पूर्व में केंद्र सरकार और दल का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह दावा कर चुके हैं कि भाजपा को असम में अल्पसंख्यकों के वोट मिले हैं।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा असम में अल्पसंख्यक मोर्चे को भंग करने के निर्णय को उस खबर के साथ देखा जाना सही होगा जिसमें पाँच राज्यों में संपन्न हुए चुनाव में मुस्लिम विधायकों की कुल संख्या 111 है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कॉन्ग्रेस ने 42 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमें केवल एक की हार हुई। पर असम में भाजपा के आठ मुस्लिम उम्मीदवारों में सभी को हार का सामना करना पड़ा। शायद यही कारण है कि प्रदेश अध्यक्ष ने अल्पसंख्यक मोर्चे की जिला, प्रखंड और राज्य समितियों को भंग कर दिया।
विशेषज्ञों के अनुसार पश्चिम बंगाल में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कॉन्ग्रेस और वाम मोर्चे ने मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर अपने अल्पसंख्यक वोट तृणमूल कॉन्ग्रेस को ट्रांसफर कर दिए। असम में भाजपा का सीधा मुक़ाबला कॉन्ग्रेस पार्टी और बदरुद्दीन अज़मल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के गठबंधन से था जिसकी वजह से मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करना भी पार्टी को वोट नहीं दिला सका।
भाजपा से सेक्युलर दलों की वर्षों पुरानी शिकायत रही है कि पार्टी मुस्लिम सदस्यों को टिकट नहीं देती पर जब उसके पंजीकृत अल्पसंख्यक सदस्य ही उसे वोट न करें तो पार्टी क्या करेगी? पार्टी के नेतृत्व का विश्वास अल्पसंख्यक मतदाताओं पर कैसे होगा, इस पर अल्पसंख्यकों और पार्टी दोनों को चिंतन की आवश्यकता है क्योंकि पार्टी का एक बड़ा समर्थक वर्ग सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यकों के लिए दिए गए उसके नारे को लेकर शिकायत करता रहता है। फिलहाल तो लग रहा है कि अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए पार्टी को कुछ और करना होगा और वह कितना करेगी यह समय ही बताएगा।