गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले वहाँ की सत्ताधारी भाजपा सरकार राज्य में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू कर सकती है। इसको लेकर राज्य सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाई है, जिसमें कमिटी के गठन को लेकर मंथन होगा।
इस कमिटी की अध्यक्षता हाईकोर्ट के रिटायर जज करेंगे। इसमें कितने सदस्य होंगे, इसकी जानकारी अभी सामने नहीं आई है। आज शनिवार दोपहर 3 बजे राज्य के गृहमंत्री हर्ष सांघवी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे सकते हैं।
Gujarat government is likely to move a proposal to constitute a committee, just like in Uttarakhand, under a retired High Court judge, to evaluate all aspects of implementing the Uniform Civil Code in the state: Sources
— ANI (@ANI) October 29, 2022
माना जा रहा है कि मंगलवार या बुधवार (1 या 2 नवंबर 2022) को चुनाव आयोग गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। ऐसे में अगर गुजरात UCC लागू करने की घोषणा करता है तो वह इसे लागू करने वाला देश का पहला राज्य हो जाएगा। बता दें कि उत्तराखंड में भी UCC लागू करने के लिए इस साल मार्च में कमिटी का गठन किया गया था।
बता दें कि भाजपा के घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 की समाप्ति और देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना प्रमुख मुद्दा है। इनमें से दो वादे को भाजपा पूरा कर चुकी है और तीसरा एवं फिलहाल का अंतिम प्रमुख मुद्दा UCC को लागू करना भाजपा के लिए अभी बाकी है।
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप से लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।
आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।
मुस्लिमों का कानून पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।
UCC पर क्या कहता है संविधान
26 जनवरी 1950 को लागू किए गए संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से लेकर 51 तक राज्य के नीति निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है। ये निदेशक तत्व, मूल अधिकारों की मूल आत्मा कहे जाते हैं। अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को अनिवार्य बताया गया है। अनुच्छेद 44 में कहा गया है, “भारत पूरे देश में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगा।”
यहाँ बताना आवश्यक है कि संविधान के अनुच्छेद 37 में अनुच्छेद 44 में जैसे नीति निदेशक तत्व कानून की अदालत में अप्रवर्तनीय है, फिर भी देश के शासन में मौलिक है और कानून बनाकर इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य (भारत) का कर्तव्य है।
समान नागरिकता पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर हमेशा बल दिया है। मुस्लिम महिला शाह बानो के तीन तलाक उनका भरण-पोषण के लिए खर्चे के लिए दायर याचिका पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “दुख की बात है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 एक मृत पत्र बना हुआ है। एक समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी कानूनों के प्रति असमानता वाली निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य को पूरा करने में मदद करेगी।”
द्विविवाह में प्रसिद्ध केस सरला मुद्गल के फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता नहीं लाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के रवैये पर निराशा व्यक्त की था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने साल 1954 में संसद में हिंदू कोड बिल लाया था, जिसके तहत हिंदू (बौद्ध, सिख, जैन आदि) के सिविल कानूनों को निर्धारित किया गया था।
जुलाई 2021 मे दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने हिन्दू मैरिज ऐक्ट 1955 से जुड़ी सुनवाई के दौरान देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर बल देते हुए केंद्र सरकार से इसके विषय में आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा था। कोर्ट ने कहा था कि UCC के कारण समाज में झगड़ों और विरोधाभासों में कमी आएगी, जो अलग-अलग पर्सनल लॉ के कारण उत्पन्न होते हैं।
मायरा उर्फ वैष्णवी विलास शिरशिकर और दूसरे धर्म में शादी से जुड़ी 16 अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 19 नवंबर 2021 को सरकार से यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में संविधान के अनुच्छेद 44 को लागू करने के लिए एक पैनल का गठन करने को कहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था समान नागरिक संहिता काफी समय से लंबित है और इसे स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा था, “इस मामले पर अनावश्यक रियायतें देकर कोई भी समुदाय बिल्ली के गले की घंटी को बजाने की हिम्मत नहीं करेगा। यह देश की जरूरत है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों के लिए यूसीसी को लागू करे और उसके पास इसके लिए विधायी क्षमता है।”