अब जब बिहार में NDA ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया है, आपको उस क्षेत्र के बारे में बताना जरूरी है, जिसने इसमें सबसे ज्यादा योगदान दिया है और वो है चम्पारण का क्षेत्र। नेपाल से सटे चम्पारण के मोतिहारी और बगहा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली भी हुई। पूर्वी चम्पारण और पश्चिम चम्पारण, इन दोनों जिलों को मिला दें तो NDA को 21 में 17 सीटें मिलीं। इनमें से 15 सीटें तो अकेले भाजपा की हैं, जबकि दो जदयू को मिली।
वहीं महात्मा गाँधी के आंदोलन की धरती चम्पारण में महागठबंधन को बुरी तरह मात मिली। ये पूरा क्षेत्र एक तरह से पिछले एक दशक से भी अधिक समय से भाजपा के गढ़ के रूप में तब्दील हो चुका है। बिहार में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और पार्टी के राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी राधा मोहन सिंह यहाँ से सांसद हैं, इसीलिए पार्टी के लिए अपने गढ़ को बचाना प्रतिष्ठा का भी विषय था, जो उसने बखूबी किया। राधा मोहन सिंह भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
इस तरह से अगर पूरे तिरहुत प्रमंडल को मिला दें तो यहाँ भी NDA, खासकर भाजपा को बहुत बड़ी बढ़त मिली है। तिरहुत में NDA को 31 सीटें मिलीं, जिनमें से 25 तो अकेले भाजपा को ही मिली। राजद को 13 और कॉन्ग्रेस को मात्र 2 सीटों से संतोष करना पड़ा। इनमें वाल्मीकि नगर से युवा विधायक रिंकू सिंह और रामनगर से भागीरथी देवी की जीत महत्वपूर्ण है, जो उत्तर बिहार में भाजपा का दलित चेहरा भी हैं और पहले सफाईकर्मी हुआ करती थीं।
चम्पारण के मोतिहारी से राज्य के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार ने आसान जीत दर्ज की। वहीं मधुबन विधानसभा क्षेत्र से राज्य के कोऑपरेटिव मंत्री राणा रणधीर विजयी हुए। प्रमोद कुमार का ये लगातार चौथा कार्यकाल होगा और राणा रणधीर का लगातार दूसरा। केसरिया से जदयू की चर्चित उम्मीदवार शालिनी मिश्रा की जीत भी अहम है। इनमें से एक सीट पर मुस्लिम 30% से ज्यादा हैं, वो है शिवहर। वहाँ से राजद ने जीत दर्ज की।
शिवहर से ‘बाहुबली’ नेता आनंद मोहन और लवली आनंद के बेटे चेतन आनंद विजयी हुए। उन्होंने जदयू के सिटिंग विधायक मोहम्मद सर्फुद्दीन को हराया। ये वही क्षेत्र है, जहाँ श्रीनारायण सिंह नामक प्रत्याशी की हत्या कर दी गई थी। वहीं तिरहुत प्रमंडल में 6 ऐसी सीटें हैं, जहाँ यादवों की जनसंख्या 30% से भी ज्यादा है, इनमें से 4 राजद को और 2 भाजपा को मिली। इससे पता चलता है कि भाजपा ने बिहारी पार्टियों के बनाए जातीय चक्रव्यूह को तोड़ दिया।
Bihar’s Champaran region is again proving to be pivotal to the BJP’s dreams of retaining the state. For the past three elections now, this area has stood by the BJP against the prevailing trends in 2010 and 2015. #VerdictWithNews18 @suhasmunshi writes. https://t.co/TzFEd9wFUD
— News18.com (@news18dotcom) November 10, 2020
तिरहुत प्रमंडल में अगर 2015 के चुनाव की बाते करें तो यहाँ उस वक़्त भी भाजपा अकेले ही 18 सीटें लेकर आई थी। उस चुनाव में साथ लड़ रही जदयू-राजद 23 सीट जितने में कामयाब रही थी। उस चुनाव में भाजपा को मात्र 53 सीटें ही मिली थीं, और उसका एक तिहाई इसी क्षेत्र में था। और पीछे जाएँ तो 2010 में इस प्रमंडल में NDA को अभूतपूर्व रूप से 49 में से 45 सीटें मिली थीं। इस तरह से चम्पारण के कारण तिरहुत भाजपा का गढ़ रहा है।
पूरे बिहार में अब अगर हर चरण की बात करें तो पहले चरण में 71, दूसरे में 94 और तीसरे में 78 सीटों पर मतदान हुआ। NDA का सीट शेयर हर चरण के साथ बढ़ता ही चला गया। ये क्रमशः 29.6%, 52.1% और 66.7% रहा। हमारे अनुमानों के मुताबिक ही, महागठबंधन का सीट शेयर हर चरण के साथ घटता ही चला गया और ये क्रमशः 67.6%, 46.8% और 26.9% रहा। अक्टूबर 28, नवंबर 3 और 7 को तीनों चरण के लिए मतदान संपन्न हुआ था।
चम्पारण वो क्षेत्र है, जो 2015 में सबसे कठिन समय में भी भाजपा के साथ रहा। ये वो क्षेत्र है, जहाँ से 1989 में ही लोकसभा में कमल खिला। ये वो क्षेत्र है, जहाँ जनसंघ के दिनों में भी पार्टी नेताओं की सक्रियता रही। आपातकाल के समय अटल बिहारी वाजपेयी ने यहाँ आकर गिरफ़्तारी दी। ऐसे में भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं के मार्गदर्शन में यहाँ से कई युवा विधायक भी चुने गए हैं, महिलाएँ भी हैं। बिहार विधानसभा में क्षेत्र की अच्छी उपस्थिति रहेगी।