बिहार में राजद और जदयू के गठबंधन वाली सरकार ने निर्णय लिया है कि वह राज्य के 94 लाख गरीब परिवारों को ₹2-2 लाख की आर्थिक सहायता देंगे। इस फैसले को 16 जनवरी, 2024 को हुई कैबिनेट बैठक में सहमति दे दी गई। इस योजना के लिए अभी ₹1250 करोड़ की स्वीकृति दी गई है।
नीतीश सरकार यह लाभ हाल ही में संपन्न हुई जातिगत जनगणना के आँकड़ों के आधार पर देगी। बिहार सरकार की जातिगत जनगणना में राज्य में 94 लाख 33 हजार परिवार ऐसे पाए गए थे जो गरीब की श्रेणी में आते थे। बिहार सरकार ने ऐसे परिवारों को गरीब का दर्जा दिया है जिनकी मासिक आय ₹6000 से कम है।
नीतीश सरकार का कहना है कि वह अगले पाँच वर्षों में इन 94 लाख परिवारों के एक सदस्य को अपना कोई छोटा उद्यम करने के लिए ₹2 लाख की आर्थिक सहायता प्रदान करेगी। बिहार सरकार ने इसे ‘बिहार लघु उद्यमी योजना’ का नाम दिया है। यह धनराशि गरीब परिवारों को तीन किश्तों में दी जाएगी।
योजना के क्रियान्वन के लिए बिहार सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 में ₹250 करोड़ और वित्त वर्ष 2024-25 में ₹1000 करोड़ देने की घोषणा भी कर दी है। नीतीश सरकार का यह कदम लोकसभा चुनावों से पहले आया है और इसे वोटरों को लुभाने की तरकीब माना जा रहा है।
हालाँकि, इस योजना के ऊपर प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं। बिहार सरकार ने हालिया जनगणना के हिसाब से ही बताया था कि उनके राज्य में लगभग 2.7 करोड़ परिवार रहते हैं। इसमें से 94 लाख यानी लगभग एक तिहाई ऐसे हैं जो कि गरीब की श्रेणी में आते हैं।
इन सभी परिवारों को यदि ₹2 लाख की सहायता दी जाएगी तो यह धनराशि ₹1.88 लाख करोड़ बनेगी जो कि एक बड़ी संख्या है। प्रश्न उठ रहे हैं कि बिहार सरकार यह धनराशि कहाँ से जुटाएगी।
बिहार सरकार ने यह योजना अगले पाँच वर्षों में पूरी करने की बात कही है। यदि बिहार सरकार सच में पाँच वर्षो में यह योजना पूरी करने का लक्ष्य रखती है तो भी यह स्कीम जमीन पर उतरने से दूर दिखाई पड़ती है। पाँच वर्षों में योजना पूरी करने के लिए बिहार सरकार को हर वर्ष लगभग ₹37000 करोड़ का आवंटन करना पड़ेगा। इस धनराशि का इंतजाम भी बिहार के लिए करना मुश्किल है।
बिहार सरकार का कुल बजट वित्त वर्ष 2023-24 में ₹2.62 लाख करोड़ था। ऐसे में ₹37,000 करोड़ आवंटित करने के लिए बजट में कम से कम 15% की बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। बिहार को अपने यहाँ कर वसूली से इतना पैसे मिलता नहीं है और कर्ज से भी यह पैसा जुटाया नहीं जा सकता।
संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, बिहार पर पहले से ही लगभग ₹2.90 लाख करोड़ का कर्ज है। यह बिहार की कुल जीडीपी का लगभग 38% है। कर्ज लेने के लिए लागू होने वाले नियमों को देखा जाए तो बिहार का कर्ज पहले ही सीमा से अधिक है। ऐसे में और कर्ज बिहार सरकार कैसे ले सकती है।
इन सभी परिस्थितयों को देखते हुए, यह योजना भले ही कागजों और भाषणों में कुछ दिन चल जाए लेकिन आर्थिक रूप से देखा जाए तो लगभग 95 लाख परिवारों को ₹2 लाख देना काफी मुश्किल टास्क मालूम पड़ता है। ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री इस योजना का लक्ष्य वोट बटोरना ही लग रहा है ना कि गरीबी हटाना।