भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मुलाकात के बाद उनकी प्रशंसा कर राजनीतिक गलियारों और सोशल मीडिया में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्विटर पर कहा कि भी ममता बनर्जी में बड़े नेताओं वाले गुण हैं। उन्होंने ममता बनर्जी की तुलना जयप्रकाश नारायण (जेपी), मोरारजी देसाई, राजीव गाँधी, चंद्रशेखर और पीवी नरसिम्हा राव से की।
Of the all the politicians I have met or worked with, Mamata Banerjee ranks with JP, Morarji Desai, Rajiv Gandhi, Chandrashekhar, and P V Narasimha Rao who meant what they said and said what they meant. In Indian politics that is a rare quality
— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 24, 2021
स्वामी ने पश्चिम बंगाल में “हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार” के “मुद्दे को उठाने” के लिए अपनी प्रशंसा करने वाले ट्वीट्स को रीट्वीट किया। इसमें कहा गया है कि इस मुद्दे पर भाजपा सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया, लेकिन ममता बनर्जी के साथ अत्याचार के मुद्दों को उठाने के लिए स्वामी बंगाल में थे। ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में आतंक का शासन शुरू हो गया था, जहाँ टीएमसी के गुंडों और मुस्लिम भीड़ ने भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या और महिलाओं के साथ बलात्कार किया था।
एक तरफ स्वामी ममता बनर्जी की प्रशंसा कर रहे थे और प्रशंसकों द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर अघा रहे थे, वहीं उनके कुछ ट्वीट एक अलग ही कहानी कह रहे थे। स्वामी ने ट्विटर पर घोषणा की कि वह बंगाल में पुलिस अधिकारियों से मिलेंगे और चुनाव के बाद शुरू हुई हिंसा से संबंधित “तथ्यों की जाँच”, हिंसा के 6 महीना बीत जाने के बाद अब करेंगे। यह ट्वीट 25 नवंबर को किया गया था, जबकि उन्होंने एक दिन पहले ममता बनर्जी के साथ बंगाल में ‘हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार’ का मुद्दा उठाने के लिए खुद की प्रशंसा करने वाले ट्वीट को रीट्वीट किया था।
Around mid Dec.I will go with a VHS team to Bengal to assess the situation that developed recently in some parts of the State. I will talk to officials for doing a fact check. I recall CM Mamata three years ago responding favourably when I told her about freeing Tarkeshwar Temple
— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 25, 2021
इसको लेकर जब स्वामी के मंशा पर सवाल उठाए गए, तब उन्होंने ट्वीट किया, “दिसंबर के मध्य में मैं वीएचपी की टीम के साथ राज्य के कुछ हिस्सों में उत्पन्न हुई स्थितियों का आकलन करने के लिए बंगाल जाऊँगा। तथ्यों की जाँच करने के लिए मैं अधिकारियों से बात करूँगा। मुझे याद है कि तीन साल पहले जब मैं तारकेश्वर मंदिर को मुक्त कराने के लिए कहा था, तब उन्होंने (ममता बनर्जी ने) अनुकूल प्रतिक्रिया दी थी।”
इन ट्वीट्स के दो हिस्से हैं, जिन्हें स्वामी ने चालाकी से लिखा है। स्वामी ने पहले कहा कि “तथ्यों की जाँचके लिए” वे अधिकारियों से बात करेंगे। तथ्य जाँच का यही मतलब है कि स्वामी को संदेह है कि चुनाव के बाद वास्तव में हिंसा हुई थी। ममता को बचाने के लिए “तथ्यों की जाँच” एक बहाना है। ट्वीट का दूसरा हिस्सा और भी दिलचस्प था। चुनाव के बाद की हिंसा के मामले में ममता को क्लीन चिट देने के प्रयास के तहत स्वामी ने यह कहकर कि उन्होंने तारकेश्वर मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का समर्थन किया था, ममता को एक “अच्छे हिंदू नेता” के रूप में चित्रित करना शुरू कर दिया।
ममता बनर्जी से मिलने और उनकी प्रशंसा करने के बाद कई लोगों ने ‘विराट हिंदू’ पसंद करने वाले भाजपा नेता स्वामी से पूछा कि जब ममता बनर्जी के शासन में हिंदुओं की बेरहमी से हत्या की गई, फिर भी वे उनसे क्यों मिले। इन सवालों के जवाब में स्वामी ने लोगों पर हमला करते हुए कहा किया कि उन्हें यह सवाल केंद्र सरकार से पूछना चाहिए, उनसे नहीं। जब कहा गया कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है तो स्वामी ने कश्मीर में सुरक्षाबलों का उदाहरण देते हुए लताड़ लगाई।
आलोचना से खुद को बचाने के प्रयास में स्वामी ने बंगाल और कश्मीर की स्थितियों की तुलना करके अपने पाठकों को गुमराह किया। कश्मीर एक केंद्रशासित प्रदेश है और AFSPA के अंतर्गत आता है। एक “अशांत क्षेत्र” होने के नाते सशस्त्र बलों और यहाँ तक कि अर्धसैनिक बलों को भी राष्ट्र की शांति और संप्रभुता बनाए रखने के लिए वहाँ होना आवश्यक है। बंगाल हिंसा पर चुप्पी के लिए केंद्र सरकार और पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाना जायज है, लेकिन यहाँ स्वामी ममता बनर्जी पर से सारा दोष हटाने का प्रयास करते दिख रहे हैं।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि मई में ही गृह मंत्रालय ने ममता बनर्जी सरकार से चुनाव बाद की हिंसा और उसे नियंत्रित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को लेकर रिपोर्ट माँगा था। कई बार रिमांइडर भेजने के बाद भी राज्य सरकार ने गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया था। अगस्त में केंद्र सरकार ने कलकत्ता उच्च न्यायालय को बताया था कि एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसियाँ चुनाव बाद की हिंसा की जाँच करने और राज्य पुलिस की सहायता करने के लिए तैयार हैं। हालाँकि, अदालत ने यह कहते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया था कि राज्य पुलिस से लेकर मामलों को केंद्रीय एजेंसियों को स्थानांतरित करने के लिए यह समय उपयुक्त समय नहीं है। इससे पहले अदालत ने एनएचआरसी को एक समिति गठित करने और हिंसा के मामलों की जाँच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा था। इस रिपोर्ट में राज्य में भाजपा कार्यकर्ताओं की क्रूर हिंसा को उजागर किया था। ममता बनर्जी ने एनएचआरसी की रिपोर्ट को “पक्षपातपूर्ण” और एक निर्वाचित राज्य सरकार पर हमला बताया था।
ऐसा लगता है कि स्वामी ने ममता बनर्जी को क्लीन चिट देने के लिए इन घटनाओं को भूला दिया है। यह पहली बार नहीं है जब स्वामी ने ममता की प्रशंसा की है और उनके आतंक के शासन को पूरी तरह नजरअंदाज किया है। साल 2020 में स्वामी ने ममता की राजनीति की आलोचना करने वाले एक ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “मेरे अनुसार ममता बनर्जी एक पक्की हिंदू और दुर्गाभक्त हैं। वह हर एक मामले पर कार्रवाई करेंगी। उनकी राजनीति अलग है।” इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, स्वामी के टीएमसी में शामिल होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने सधी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “मैं पहले से ही उनके (ममता) साथ हूँ। मुझे पार्टी में शामिल होने की कोई जरूरत नहीं है।”