2014 लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले (13 सितंबर, 2013) भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। उनके साथ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे।
7 Years Back, On this very day the then Gujarat CM @narendramodi was declared as a PM Candidate by the then BJP President @rajnathsingh. As they say rest is the history. Nostalgia !!! pic.twitter.com/KYCj7hhPOc
— Dhaval Patel (@dhaval241086) September 13, 2020
प्रेस वार्ता में यह घोषणा की गई कि नरेंद्र मोदी आगामी चुनावों में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री का चेहरा होंगे। कयास लगाए जा रहे थे कि फिर से लालकृष्ण आडवाणी पीएम का चेहरा होंगे। बहुतों ने यह भी सोचा था कि सुषमा स्वराज या अरुण जेटली भी पीएम का चेहरा हो सकते है, क्योंकि मोदी को मीडिया ने 2002 के गुजरात दंगों की अगुवाई करने वाले व्यक्ति के तौर पर पेश किया था। जबकि इस तथ्य पर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के 12 वर्षों में गुजरात काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा था।
मैंने उस वक्त के ट्वीट्स को देखा जिसमें राणा अय्यूब और राजदीप सरदेसाई ने भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी को पीएम चेहरे के लिए चुनने पर जमकर हमला किया था। उस दौरान वे नरेंद्र मोदी को काफी हल्के में ले रहे थे।
Ok Modiji, apologies , the fireworks in Mumbai are for Ganpati visarjan…
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) September 13, 2013
उन लोगों ने उनके US वीजा स्टेटस का मजाक भी उड़ाया।
@saliltripathi you don’t have to rub it in 🙂
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) September 14, 2013
आप देखें, किसी ने वास्तव में नहीं सोचा था कि साबरमती के किनारे से यह आदमी भाजपा का यह सपना पूरा करेगा। मीडिया की धारणा उनके खिलाफ थी। विपक्षी नेताओं द्वारा उन्हें ‘मौत का सौदागर’ कहा जाता था। उनके अपने सहयोगी इस बात से बहुत खुश नहीं थे और उन्होंने इसे बहुतायत स्पष्ट भी कर दिया था। जून 2013 में जब मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होने की चर्चाएँ तेज हो रही थीं, तब जदयू के नीतीश कुमार ने 17 साल पुराने एनडीए गठबंधन को तोड़ दिया था।
उन्होंने पीएम मोदी के लिए अपनी ‘नापसंदगी’ को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया था। नीतीश कुमार ने 2010 में मोदी सहित कई भाजपा नेताओं के लिए एक पूर्व निर्धारित रात के भोजन के कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया था। वहीं दो साल पहले 2008 में, उन्होंने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में गुजरात सरकार द्वारा दिए गए 5 करोड़ रुपए को भी लौटा दिया था जो बिहार को बाढ़ राहत के लिए मिला था। उन्होंने इसे ब्याज के साथ वापस किया था।
गौरतलब है कि भाजपा पूरे पाँच साल के लिए सिर्फ एक बार ही सत्ता में आई थी। वहीं मोदी को पीएम उम्मीदवार के रूप में प्रचारित कर भाजपा एक बहुत ही बड़ा जोखिम मोल ले रही थी, जब उनकी खुद की पार्टी के सहयोगी इस बात से नाराज चल रहे थे। इसके अलावा वे कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए को भी चुनौती दे रहे थे जिसके पास तीसरी बार सत्ता में आने के लिए पूरा इकोसिस्टम साथ खड़ा था।
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, नरेंद्र मोदी ने वाइब्रेंट गुजरात नामक द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन शुरू किया था। एक वरिष्ठ पत्रकार ने एक बार मुझसे कहा था कि 2002 के दंगों के ठीक बाद मोदी ने गुजरात में परिवर्तन लाने का फैसला किया था। उन्होंने मन बना लिया था कि जब लोग गुजरात के बारे में सोचेंगे तो वे प्रगति के बारे में सोचेंगे। पहला वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन नवरात्रि के दौरान 2003 में आयोजित किया गया था, जो नौ-रात्रि लंबा नृत्य महोत्सव था।
उससे पहले मोदी ने विभिन्न मीडिया हाउस के संपादकों और पत्रकारों को बुलाया और उन्हें अपने विजन पर एक पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया। एक पत्रकार ने मुझे बताया 2002 के दंगों के दौरान भड़काऊ खबरों को प्रसारित करने वाले गुजरात समाचार संपादक श्रेयांश शाह भी उसमें मौजूद थे। उन्होंने मुझे बताया कि शाह प्रस्तुति के बीच में ही बाहर चले गए थे। जाहिर तौर पर उन्हें वो सब पसंद नहीं आया होगा। इसके बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उन्हें खुद रोका और वापस आने के लिए कहा। लेकिन शाह फिर भी नहीं माने।
यह तब था जब मोदी ने यह परवाह करना छोड़ दिया था कि मीडिया उनके बारे में क्या कहती है। उन्होंने इस बात का फैसला किया था कि उनके द्वारा किए गए काम को बोलने दो।
अगला शिखर सम्मेलन जनवरी 2015 के लिए निर्धारित किया गया था। नरेंद्र मोदी ने इस अवसर का भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने हरित ऊर्जा, स्वच्छ तकनीक, शिक्षा, कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न विषयों पर ‘वाइब्रेंट गुजरात प्री-इवेंट समिट्स’ की एक श्रृंखला की।
जिन लोगों ने 2003 में शिखर सम्मेलन को खारिज कर दिया था। वहीं लोग उसके शुरुआत से पहले ही उसको फ्रंट पेज पर प्रकाशित कर रहे थे। उन्होंने न केवल देश को यह बताया कि एक सीएम होते हुए उन्होंने सबसे उद्यमी राज्य में क्या-क्या किया। बल्कि यह भी कि जो वादा उन्होंने किया उसे पूरा भी किया। वह जानते थे कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था नीतिगत पक्षाघात के कारण फँस गई है। उन्होंने सुनिश्चित किया कि हर कोई इसके बारे में जाने।
लेकिन इस बात की उम्मीद कम थी कि बीजेपी के पास वास्तव में एक मौका हो सकता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चरम पर था। लोग कॉन्ग्रेस से नाराज थे। लेकिन क्या उनकी नाराजगी भाजपा को बहुमत देने देने के लिए पर्याप्त थे? क्या लोग 2002 के दंगों के बाद मोदी को वोट देने के लिए घटनाओं और मनगढ़ंत कहानियों को नजरअंदाज करने के इच्छुक थे? क्या भाजपा के लिए तर्कसंगत नेता को पीएम चेहरे के रूप में चुनना बुद्धिमानी होगी? क्या ‘त्रिशंकु संसद’ होगी और भाजपा को 5 साल की स्थिर सरकार के लिए सहयोगियों पर निर्भर रहना होगा? सच कहूँ, तो मुझे यकीन नहीं था।
यह तस्वीर मतगणना से 2 दिन पहले की है। भारत ने तय किया था। मोदी की बॉडी लैंग्वेज से यह लगता कि उन्हें यकीन था कि वह दिल्ली आ रहे हैं।
भाजपा ने रिस्क लिया। मोदी जीते और कैसे। सिर्फ एक बार नहीं। उन्होंने न केवल इतिहास दोहराया, बल्कि 2019 में मजबूत जनादेश के साथ वापसी करते हुए सत्ता में अपनी पकड़ को स्थापित किया।
राजनाथ सिंह की उस घोषणा ने पार्टी के इतिहास को बदल दिया। पार्टी को मजबूती के साथ हर वर्ष एक नई उम्मीद और पहचान बनाने का मौका दिया।