5 अगस्त 2019 को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में एक बिल पेश किया जिसके पारित होते ही जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाला में अनुच्छेद 370 ख़त्म हो गया। पूरे राज्य में सुरक्षा के एहतियात बरतने के चलते सेना को इसकी पूरी ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। इस सब के बीच कई लोगों ने इस बात की दलील देते हुए कश्मीर में होने वाली सेना और सरकार की कार्रवाई का विरोध किया था कि कश्मीर घाटी में उठाए जा रहे कदम पूरी तरह से मानवाधिकारों के खिलाफ है।
दरअसल सरकार ने फैसला किया है कि जम्मू-कश्मीर में 31 अक्टूबर से नए कानून लागू हो जाएँगे। बता दें कि देश में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कई ऐसे कानून हैं जो जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के सभी अन्य भागों में लागू होते थे। इसकी बड़ी वजह थी ‘अनुच्छेद 370’। संविधान से इस अनुच्छेद के हटते ही राज्य में उन सभी कानूनों को लागू करने का रास्ता साफ़ हो गया जो सरकार द्वारा अपने नागरिकों की भलाई के लिए बनाए जाते हैं। इसी क्रम में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने एक अहम् निर्णय लिया है जिसके तहत राज्य में सात आयोग को ख़त्म करने का आदेश जारी किया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने वाले जम्मू-कश्मीर को जिन 7 आयोगों को नष्ट करने का निर्णय लिया गया उनमें राज्य का मानवाधिकार आयोग, सूचना-आयोग, उपभोक्ता निवारण आयोग, राज्य विद्युत आयोग, महिला एवं बाल विकास आयोग, दिव्यांगजन के लिए बना आयोग, राज्य पारदर्शिता आयोग शामिल हैं।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर 31 अक्टूबर को पूर्णतः एक केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा, लिहाज़ा आने वाले वक़्त में जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित सभी कानून सीधे केंद्र द्वारा जारी किए जाएँगे। बता दें कि 5 अगस्त 2019 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सरकार ने जम्मू और कश्मीर को दो भागों में बाँट दिया था। जिसके बाद जम्मू और कश्मीर नाम से पहचाने जाने वाले राज्य को जम्मू और लद्दाख- दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया था। बता दें कि दिल्ली की ही तरह जम्मू एक विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा तो वहीं लद्दाख चंडीगढ़ की तरह पूर्णतः केंद्र सरकार के आधीन रहेगा। उल्लेखनीय है कि राज्य के जो आयोग ख़त्म किए गए हैं वह अब सीधे केंद्र सरकार की देख-रेख में होंगे।
बता दें कि जब कश्मीर में सरकार ने सेना को भेजकर स्थिति नियंत्रण में रखने का फैसला लिया तो कई लोगों ने इसपर अपनी आपत्ति ज़ाहिर की थी। अधिकांश लोगों ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया था। इस तरह की बात करने वाले लोगों में कश्मीर से अपनी सियासत चमकाने वालों से लेकर कई वामपंथी तथाकथित बुद्धिजीवी, मनीषी और चिन्तक शामिल थे जो मानवाधिकार के नाम पर हजारों लोगों की नृशंस हत्या और दंगा फसाद करने वालों को विशेष सुविधाएँ दिए जाने की वकालत करते हैं। उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भी कुछ ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी जब घाटी में स्कूल, मोबाइल, फोन, इन्टरनेट, पर्यटकों की आवाजाही लम्बे समय तक प्रभावित रहे थे।