भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी CPI(M) या CPM ने मंगलवार (15 अक्टूबर 2024) को एक बयान जारी करके भारत-कनाडा विवाद में भारत सरकार को अपना समर्थन दिया है। अपने बयान में CPI(M) ने कनाडा में सक्रिय भारत विरोधी खालिस्तानी तत्वों को ‘गंभीर चिंता’ का विषय बताया और कहा कि भारत सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है।
दरअसल, हाल ही में कनाडा ने भारत के खिलाफ आरोप लगाते हुए कहा था कि भारतीय एजेंट और अधिकारी कनाडा की धरती पर खालिस्तान समर्थक सिखों को निशाना बनाने के लिए एक आपराधिक सिंडिकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके पहले सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत का हाथ है।
CPI(M) Polit Bureau on India-Canada relations pic.twitter.com/yXqJZN94Ht
— CPI (M) (@cpimspeak) October 15, 2024
CPI(M) के बयान में कहा गया है, “कनाडा में सक्रिय भारत विरोधी खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियाँ गंभीर चिंता का विषय रही हैं और इनका राष्ट्रीय सुरक्षा पर सीधा असर पड़ता है। भारत सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है, जिसके लिए उसे भारत में सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है।”
इस वामपंथी दल ने आगे कहा, “कनाडा सरकार के विभिन्न अधिकारियों द्वारा भारत के खिलाफ लगाए गए आरोपों को भारत सरकार ने खारिज कर दिया है। उम्मीद है कि भारत सरकार लॉरेंस बिश्नोई के आपराधिक गिरोह की भूमिका के बारे में लगाए गए आरोपों सहित इन सभी मुद्दों पर विपक्षी दलों को विश्वास में लेगी।”
पंजाब में उग्रवाद के दौरान वामपंथी नेताओं को बनाया गया निशाना
हालाँकि, CPI(M) द्वारा केंद्र सरकार का समर्थन करने वाला बयान कई लोगों को आश्चर्यचकित कर सकता है, क्योंकि अन्य विपक्षी पार्टी के नेता कनाडा के आरोपों को लेकर भारत सरकार पर निशाना साध रहे हैं। यहाँ ध्यान देना जरूरी है कि पंजाब में उग्रवाद के दौरान खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता भी शामिल थे।
सन 1980 के दशक में पंजाब में उग्रवाद के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के नेता खालिस्तानी आंदोलन के सबसे मुखर विरोधियों में से एक थे। इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। इंडिया टुडे ने 1986 में एक रिपोर्ट में बताया था कि वामपंथी नेता और कार्यकर्ता, खासतौर पर CPI के, हिंसा और अलगाववाद की मुखर निंदा करने के कारण खालिस्तानी आतंकवादियों के निशाने पर आ गए।
दर्शन सिंह कैनेडियन की हत्या
सन 1984 से 1986 के बीच खालिस्तानी आतंकवादियों ने कम-से-कम 17 वामपंथी नेताओं की हत्या कर दी थी, जिनमें दर्शन सिंह संघा उर्फ ’कैनेडियन’, CPI के पूर्व राज्य सचिव एवं नक्सली नेता बलदेव सिंह मान जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। उन्हें पंजाब के ग्रामीण इलाकों में खालिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ़ प्रतिरोध करने के कारण निशाना बनाया गया था।
दर्शन सिंह कैनेडियन खालिस्तानी आतंकवादियों की आँखों में खटकते थे। 1986 में उनके गाँव में साइकिल चलाते समय गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। हत्यारे आतंकवादियों ने एक नोट छोड़ा था, जिसमें लिखा था, “हम खालिस्तान के विरोध में इस आवाज़ को दबा रहे हैं। यह दूसरों के लिए एक सबक है।” यह इस बात की झलक थी कि उस समय आतंकवादी वैचारिक प्रतिरोध से कैसे निपटते थे।
बलदेव सिंह मान की हत्या
बलदेव सिंह मान CPI (ML) चंद्रपुल्ला रेड्डी समूह के अमृतसर जिला सचिव और पार्टी पत्रिका ‘हिरावल दस्ता’ के संपादक थे। वह खालिस्तानी आतंकवाद को चुनौती देने वाले कम्युनिस्ट खेमे का हिस्सा थे। मान का जन्म 9 जुलाई 1952 को हुआ था और उन्होंने अपना अधिकांश जीवन अमृतसर के अजनाला तहसील के बग्गा कलाँ गाँव में बिताया था।
अमृतसर के खालसा कॉलेज में अपने छात्र जीवन के दौरान वह चंद्रपुल्ला रेड्डी-एसएन सिंह की CPI (ML) के संपर्क में आए। उन्होंने अपने गाँव में ‘नौजवान भारत सभा’ नामक वामपंथी संगठन को पुनर्जीवित किया, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बेहद लोकप्रिय था। उग्रवाद के दौरान उन्होंने कई सार्वजनिक रैलियों का नेतृत्व किया था।
खालिस्तानी आतंकवाद का विरोध करते हुए बलदेव सिंह मान ने राज्य में जगह-जगह बैठकें कीं और जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने लोगों से सांप्रदायिक सद्भाव का आह्वान किया और आतंकवादियों का प्रतिरोध करने का आह्वान किया। 26 सितंबर 1986 को उनके पैतृक गाँव में आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी। मान के परिवार में उनकी पत्नी और एक सप्ताह की बेटी बची थी।
वामपंथियों का लचीलापन और व्यापक राजनीतिक संदर्भ
जब वामपंथी नेताओं को क्रूर तरीके से मौत के घाट उतारा जा रहा था, तब CPI और CPI(M) के नेताओं ने इन घटनाओं का इस्तेमाल राज्य में चरमपंथ से लड़ने के अपने दृढ़ संकल्प को मजबूत करने के लिए किया। कनाडाई की विधवा बलबीर कौर ने उनके अंतिम संस्कार में घोषणा की, “हम न तो हिंदू हैं और न ही सिख, बल्कि हम भारतीय हैं। आतंकवाद का खात्मा हो। भारत अमर रहे।”
कनाडाई, सत्यपाल डांग और गुरशरण सिंह जैसे नेताओं ने आतंकवादियों द्वारा मिली धमकियों के बावजूद अपनी सार्वजनिक रैलियाँ जारी रखी थीं। उन्होंने अपने भाषणों में खालिस्तानी आतंकवादियों की आतंकी रणनीति के खिलाफ़ जमकर हमला बोला। हालाँकि, यह ‘बहादुरी’ ज़्यादा दिन तक नहीं चली, क्योंकि उन्हें व्यवस्थित तरीके से खत्म कर दिया गया।
इस ऐतिहासिक संदर्भ को देखते हुए कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ भारत सरकार के समर्थन में CPI(M) की वर्तमान स्थिति कोई अपवाद नहीं है। वामपंथियों ने अतीत में खालिस्तानी हिंसा का खामियाजा भुगता है, क्योंकि उन्होंने अलगाववाद और उग्रवाद का विरोध किया था। वामपंथी इस रूख को बनाए हुए है।
एक समर्थन से पिछले ‘अपराध’ मिट नहीं जाते
CPI(M) द्वारा भारत सरकार को समर्थन देना वामपंथी नेताओं के खिलाफ खालिस्तानी हिंसा की ऐतिहासिक यादों से जुड़ा है। इसके बारे में वर्तमान पीढ़ी अनजान है। हालाँकि, इससे उनके ‘अपराधों’ को नहीं मिटाता है, जो वामपंथी भारत में करते आ रहे हैं। नक्सल आंदोलन को उनका समर्थन, चीन का पक्ष लेना और विभिन्न मुद्दों पर भारत सरकार पर हमले करना अनदेखा नहीं किया जा सकता।
ये कोई नहीं भूल सकता कि CPI(M) ने चीन के सबसे बड़े सामूहिक हत्यारे माओत्से तुंग की 130वीं जयंती के अवसर पर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया था। इसमें संकेत दिया था कि वह सबसे महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने लोगों को लोकतांत्रिक क्रांति करने में मदद की। CPI नेता सीताराम येचुरी ने उइगर मुस्लिमों पर चीन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
इतना ही नहीं, दिवंगत सीताराम येचुरी ने तो चीन के तानाशाह शी जिनपिंग एवं निकोले चाउसेस्कु की जमकर प्रशंसा तक की थी। अब, जबकि सीपीआई (एम) ने इस एक मुद्दे पर भारत सरकार को समर्थन दिया है तो यह उम्मीद की जाती है कि एक विपक्षी दल के रूप में वह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से संबंधित अन्य मामलों पर भी अपना बेहतर रुख सामने रखेंगे।
(यह आर्टिकल मूलत: अंग्रेजी में लिखा गया है। उसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)