लोकसभा चुनावों से पहले कॉन्ग्रेस की परेशानियाँ कम होने का नाम नहीं ले रहीं। खबर है कि पार्टी के दो बड़े नेताओं ने कॉन्ग्रेस का हाथ छोड़ दिया है। इनमें एक नाम संजय निरुपम का है और दूसरा गौरव वल्लभ का है।
संजय निरुपम को तो कॉन्ग्रेस ने खुद निष्कासित करने का भी ऐलान किया है। वहीं किसी समय में संबित पात्रा से पाँच ट्रिलियन में कितने जीरो होते हैं पूछने वाले कॉन्ग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने खुद पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि वो कुछ समय से पार्टी के स्टैंड से अहज महसूस कर रहे हैं। अपने त्याग पत्र में गौरव ने कई बातें बताईं।
गौरव वल्लभ का त्यागपत्र
गौरव वल्लभ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजे गए त्यागपत्र में बताया कि राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर उन्होंने हमेशा देश के कई मुद्दों को पार्टी के समक्ष दमदार तरीके से रखा लेकिन कुछ समय से उन्हें ठीक नहीं लग रहा।
उन्होंने ये त्यागपत्र साझा करते हुए अपने ट्वीट में लिखा-
“कॉन्ग्रेस पार्टी आज जिस प्रकार से दिशाहीन होकर आगे बढ़ रही है, उसमें मैं खुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहा। मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूँ और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता। इसलिए मैं कॉन्ग्रेस पार्टी के सभी पदों व प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूँ।”
इस ट्वीट में साझा किए गए त्यागपत्र में उन्होंने कहा- “भावुक हूँ और मन व्यथित है। काफी कुछ कहना चाहता हूँ, लिखना चाहता हूँ और बताना चाहता हूँ। लेकिन, मेरे संस्कार ऐसा कुछ भी कहने से मना करते हैं। फिर भी मैं आज अपनी बातों को आपके समक्ष रख रहा हूँ, क्यों उन्हें लगता है कि सच को छुपाना भी अपराध है। ऐसे में मैं अपराध का भागी नहीं बनना चाहता।”
गौरव ने कहा, “जब मैंने कॉन्ग्रेस पार्टी ज्वाइन किया, तब मेरा मानना था कि कॉन्ग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, जहाँ पर युवा, बौद्धिक लोगों की, उनके आइडिया की कद्र होती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में महसूस हुआ कि पार्टी का मौजूदा स्वरूप नए आइडिया वाले युवाओं के साथ खुद को एडजस्ट नहीं कर पाती। पार्टी का ग्राउंड लेवल कनेक्ट पूरी तरह से टूट चुका है, जो नए भारत की आकांक्षा को बिल्कुल भी नहीं समझ पा रही है, जिसके कारण न तो पार्टी में आ पा रही है और ना ही मजबूत विपक्ष की भूमिका ही निभा पा रही हैं। इससे मेरे जैसे कार्यकर्ता हतोत्साहित होता है। बड़े नेताओं और जमीन कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी पाटना बेहद कठिन है, जो राजनैतिक रूप से जरूरी है। जब तक एक कार्यकर्ता अपने नेता को डायरेक्ट सुझाव नहीं दे सकता, तब तक किसी भी प्रकार का सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है।”
आगे उन्होंने राम मंदिर पर कॉन्ग्रेस के स्टैंड की निंदा की। उन्होंने कहा कि उन्हें सनातन के विरोध में बोलते हुए किसी को सुनना नहीं पसंद, मगर पार्टी ऐसे लोगों की बातों को मौन स्वीकृति देती है। उन्होंने कहा, “एक ओर हम जाति आधारित जनगणना की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर संपूर्ण हिंदू समाज के विरोधी नजर आ रहे हैं। यह कार्यशैली जनता के बीच पार्टी को एक खास धर्म विशेष के ही हिमायती होने का भ्रामक संदेश दे रही है। यह कॉन्ग्रेस के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है।”
उन्होंने आगे लिखा, “जब मैंने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी, उस वक्त मेरा ध्येय सिर्फ यही था कि आर्थिक मामलों में अपनी योग्यता और क्षमता का देशहित में इस्तेमाल करूँगा। हम सत्ता में भले नहीं हैं, लेकिन अपने मैनीफेस्टो से लेकर अन्य जगहों पर देशहित में पार्टी की आर्थिक नीति-निर्धारण को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकते थे, लेकिन पार्टी स्तर पर यह प्रयास नहीं किया गया, जो मेरे जैसे आर्थिक मामलों के जानकार व्यक्ति के लिए किसी घुटन से कम नहीं है।”
संजय निरुपम का इस्तीफा
बता दें कि इससे पहले कॉन्ग्रेस संजय निरुपम ने पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दिया था। बाद में खबर आई कि पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करने पर उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। इस पर संजय निरुपम ने बयान भी दिया था कि पार्टी की तत्परता देख उन्हें अच्छा लगा। उन्होंने अपने त्यागपत्र में कहा था, “मैंने आखिरकार आपकी बहुप्रतीक्षित इच्छा को पूरा करने का फैसला किया है और मैं घोषणा करता हूं कि मैंने अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का फैसला किया है।”