कॉन्ग्रेस की घोषणापत्र समिति के एक-के-बाद एक विवाद सामने आ रहे हैं। पहले कॉन्ग्रेस की ‘न्याय’ योजना के ‘सलाहकार’ अभिजित बनर्जी ने एक टीवी डिबेट में यह कहकर मध्य वर्ग में न केवल हड़कंप मचा दिया कि इस योजना के लिए फंड टैक्स बढ़ाकर ही जुटाया जा सकता है, बल्कि वे इसके लिए मँहगाई की भी हिमायत कर आए। इसके बाद मध्यम वर्ग की दुश्चिंताओं को दूर करने की बजाय समिति सदस्य और ज्ञान आयोग से जुड़े रहे सैम पित्रोदा ने लोगों को यह लताड़ लगा दी कि इस योजना लिए यदि वे अतिरिक्त टैक्स नहीं देना चाहते तो वे स्वार्थी हैं।
अब यह सामने आ रहा है कि घोषणापत्र समिति के कथित सलाहकारों में से एक ऐसे सीईओ हैं जिनकी कम्पनी के डायरेक्टर निफ्टी से जुड़े घोटाले में सीबीआई जाँच का सामना कर रहे हैं। यही नहीं, बाजार नियामक संस्था सेबी भी उन्हें डाटा बँटवारा समझौते के उल्लंघन में कारण बताओ नोटिस जारी कर चुकी है।
अथ श्री अजय शाह-महेश व्यास कथा
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की इस खबर के अनुसार कॉन्ग्रेस के चुनावी घोषणापत्र के पीछे घोषित राजनेताओं की समिति के अलावा सलाहकारों की एक पूरी टोली भी थी। उन सलाहकारों में बायोकॉन की सीईओ किरण मजूमदार शॉ, आरबीआई के पूर्व प्रमुख रघुराम राजन, नीति आयोग के पूर्ववर्ती योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे बड़े नाम थे। और एक नाम महेश व्यास का भी था- CMIE के सीईओ।
CMIE की वेबसाइट पर इसके निदेशक मंडल में अजय शाह का नाम है। और बताया जा रहा है कि यही अजय शाह निफ्टी घोटाले में आयकर विभाग से लेकर सीबीआई और सेबी तक सबके रडार पर हैं। सन्डे गार्जियन ने आयकर अधिकारीयों के हवाले से दावा किया कि अजय शाह ने अपनी पत्नी सुज़न थॉमस और साली सुनीता थॉमस (जोकि निफ्टी के तत्कालीन ट्रेडिंग हेड सुप्रभात लाला की पत्नी हैं) की मदद से गुप्त जानकारी हासिल की। रिसर्च के नाम पर ली गई इस जानकारी का उपयोग OPG, Alpha Group जैसे शेयर बाजार मध्यस्थों (दलालों) की मदद से किया गया जिन्होंने इस गुप्त जानकारी की मदद से (आयकर विभाग के अनुसार) ‘अनुचित लाभ’ अर्जित किया। मामले का भंडाफोड़ करने वाले whistle-blower के अनुसार शाह का OPG इत्यादि के साथ मुनाफ़ा साझा करने का समझौता था।
CMIE का रोजगार-डाटा भी संदेह के घेरे में
CMIE के रोजगार डाटा का इस्तेमाल कॉन्ग्रेस इस दावे के साथ करती है कि मोदी के आने के बाद रोज़गार नहीं बढ़े। पर CMIE का यह डाटा कई अन्य रिपोर्टों के ठीक उलट है, जहाँ मोदी सरकार के समय में नौकरियों में इजाफा दर्ज किया गया है।
ऑपइंडिया ने गत जनवरी में ही यह खुलासा किया था कि CMIE की कॉन्ग्रेस के नेताओं, खासकर पूर्व वित्त और गृह मंत्री पी चिदंबरम (जो ‘हिन्दू आतंकवाद’, ‘संघी आतंकवाद’ शब्दों के जनक माने जाते हैं), से खासी नज़दीकी है। उस समय भी हमने यही सवाल पूछा था कि कॉन्ग्रेस नेता के करीबी द्वारा जारी आँकड़े पर आधारित कॉन्ग्रेस के दावे पर किस हद तक विश्वास किया जा सकता है?
आज भी अजय शाह-महेश व्यास का गठजोड़ यह सवाल पैदा करता है कि ऐसे संदिग्ध व्यक्तियों द्वारा बनाई जा रहीं कॉन्ग्रेस की नीतियाँ कितनी कारगर होंगी?