Sunday, December 22, 2024
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EWS आरक्षण पर पलटी कॉन्ग्रेस: गरीब सवर्णों के रिजर्वेशन पर करने लगी राजनीति, SC के फैसले पर पहले खुद को दिया था क्रेडिट

जयराम ने कहा था, "मनमोहन सिंह सरकार ने सिंहो आयोग का गठन करके इस प्रक्रिया (EWS को आरक्षण देने) की शुरुआत की थी। इस आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इसके बाद व्यापक विचार-विमर्श हुआ और 2014 तक विधेयक तैयार हो गया। मोदी सरकार को विधेयक को लागू करने में पाँच साल लग गए।"

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण जारी रखने का फैसला दिया था। उस समय कॉन्ग्रेस (Congress) ने इस फैसले का स्वागत किया था। इसका क्रेडिट भी पार्टी को दिया था। वही कॉन्ग्रेस अब इस फैसले की समीक्षा करने के नाम पर इसके विरोध में उतर आई है।

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) ने EWS पर पार्टी के नए रूख का स्वागत किया है। इसको लेकर उन्होंने ट्वीट किया, “मैं AICC के इस बयान का स्वागत करता हूँ कि पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करेगी। SC, ST और OBC को नए आरक्षण से बाहर करने से लोगों में व्यापक चिंता पैदा हो गई है।”

इसको लेकर तर्क देते हुए चिदंबरम ने आगे कहा, “कारण यह है कि सिंहो आयोग के अनुसार, SC, ST और OBC गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के 82 प्रतिशत हैं। गरीब एक वर्ग होता है। क्या कानून 82 प्रतिशत गरीबों को बाहर कर सकता है? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसकी निष्पक्ष जाँच की जानी चाहिए।”

दरअसल, दक्षिण के गैर-भाजपा शासित राज्यों ने इस फैसले का विरोध किया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (MK Stalin) ने राजधानी में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें EWS आरक्षण से संबंधित 103वें संविधान संशोधन को अस्वीकार कर दिया गया था। इस बैठक में कॉन्ग्रेस भी शामिल हुई थी।

जिस सिंहो आयोग को आधार बनाकर चिदंबरम अब EWS कोटे के समर्थन की समीक्षा की बात कह रहे हैं, उसी को आधार बनाकर कॉन्ग्रेस के कम्युनिकेशन हेड जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने फैसले का क्रेडिट कॉन्ग्रेस को दे दिया था। EWS कोटे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा था कि आरक्षण देने की प्रक्रिया की शुरुआत मनमोहन सिंह की सरकार ने शुरू की थी।

जयराम ने आरक्षण लागू में देरी के लिए मोदी सरकार को दोष दिया था। उन्होंने कहा था, “मनमोहन सिंह सरकार ने सिंहो आयोग का गठन करके इस प्रक्रिया (EWS को आरक्षण देने) की शुरुआत की थी। इस आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इसके बाद व्यापक विचार-विमर्श हुआ और 2014 तक विधेयक तैयार हो गया। मोदी सरकार को विधेयक को लागू करने में पाँच साल लग गए।”

जातीय आधार पर जनगणना का समर्थन करते हुए जयराम ने आगे कहाथा, “यहाँ यह भी उल्लेख है कि जब मैं खुद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री था, उस दौरान सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना 2012 तक पूरी हो गई थी। मोदी सरकार ने अभी तक जाति जनगणना को अपडेट करने पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। कॉन्ग्रेस पार्टी इस जनगणना का समर्थन करती है और माँग करती है।”

यहाँ जयराम का यह बयान पार्टी के रूख के उलट था। कॉन्ग्रेस ने साल 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा-पत्र में कहा था कि एससी, एसटी और ओबीसी के मौजूदा आरक्षण को किसी भी हाल में प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। इसको प्रभावित किए बिना सभी समुदायों के लिए EWS आरक्षण दिया जाएगा।

हालाँकि, स्टालिन की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में EWS कोटे में सभी जाति को शामिल करने पर सहमति बनी और इसके आधार पर कॉन्ग्रेस अपने पहले वाले बयान से फिर पलट गई। उत्तर भारत से लगभग साफ हो चुकी कॉन्ग्रेस को दक्षिण भारत में बचे-खुचे मतदाताओं की चिंता सताने लगी। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर मोदी विरोधी बन रहे विरोध मंच से अपने आप को अलग रखना उचित नहीं समझा।

इसके बाद शनिवार (12 नवंबर 2022) को जयराम ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन पर पार्टी के रूख की समीक्षा करने की बात कही। बता दें कि EWS कोटे के लिए भाजपा सरकार द्वारा लाए गए संविधान संशोधन बिल का कॉन्ग्रेस ने भी समर्थन किया था। अब वही कॉन्ग्रेस फिर इसका विरोध करती नजर आ रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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