महिलाओं के सशक्तिकरण में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अहम भूमिका बताते हुए लेख लिखने वाली अजंता बिस्वास के खिलाफ माकपा ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। दरअसल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई (एम), पश्चिम बंगाल इकाई के पूर्व राज्य सचिव अनिल विश्वास की बेटी अजंता बिस्वास द्वारा ममता बनर्जी का महिमामंडन करने से बेहद नाराज है।
सीपीआई (एम) अजंता बिस्वास के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पूरी तरह तैयार है। बताया जा रहा है कि उनका यह लेख सत्तारूढ़ तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) के दैनिक मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ में प्रकाशित हुआ था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लेख में बंगाल की सीएम को महान महिला के रूप में पेश किया गया है। साथ ही यह तर्क दिया गया है कि फायरब्रांड नेता ने राज्य की राजनीति में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई और जमीनी स्तर पर महिलाओं और आंदोलन के सशक्तिकरण को सुनिश्चित किया। ये लेख शनिवार (31 जुलाई 2021) को सामने आया, तभी से चर्चा में बना हुआ है।
माकपा नेताओं ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि पार्टी की सदस्य होने के बावजूद अजंता ने ममता पर इस तरह का लेख लिखा। इसको लेकर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उनके जवाब की जाँच के बाद पार्टी अपनी कार्रवाई तय करेगी।
तृणमूल कॉन्ग्रेस के मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ में बंगाल की राजनीति में महिला सशक्तिकरण पर कोलकाता के रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर अजंता बिस्वास के आलेख के दो खंड बुधवार और गुरुवार को प्रकाशित हुए। ये लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रमुखता से छापे गए थे।
दोनों लेख को लेकर माकपा नेता और पार्टी के कई लोग उनसे सवाल कर रहे हैं कि क्या उन्होंने (अजंता बिस्वास ने) प्रतिद्वंद्वी दल के मुखपत्र में प्रकाशन के लिए अपना आलेख देने से पहले पार्टी नेतृत्व से अनुमति ली थी? माकपा नेताओं ने कहा कि वे तब से बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं।
गौरतलब है कि ‘बांगो राजनीतिते नारिर भूमिका’ विषयक आलेख के पहले खंड में अजंता बिस्वास ने देशभक्त सरोजनी देवी, सुनीति देवी और बसंती देवी की चर्चा की है। इसके बाद दूसरे खंड में उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की कार्यकर्ता प्रतिलता वाड्डेदार और कल्पना दत्ता समेत उन महिलाओं के बारे में लिखा, जिन्होंने क्रांतिकारियों को अपने घरों में शरण देकर उनकी परोक्ष रूप से मदद की थी।
लेख में कहा गया है कि ममता बनर्जी ने हुगली जिले के सिंगूर में टाटा की छोटी कार संयंत्र के लिए कृषि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसने 2011 में वामपंथियों के खिलाफ उनकी ऐतिहासिक जीत में काफी योगदान दिया। इसी के कारण वाममोर्चा का 34 साल पुराना शासन खत्म हो पाया था।
बता दें कि सीपीआई (एम) के नेता रहे अनिल विश्वास टीएमसी के खिलाफ सबसे सफल रणनीतिकारों में से एक थे। साल 2006 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद से अजंता बिस्वास राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। इससे पहले, वह प्रेसीडेंसी कॉलेज (अब एक विश्वविद्यालय) में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) इकाई का एक प्रमुख चेहरा थीं, जहाँ से उन्होंने पढ़ाई की थी। SFI माकपा का छात्र मोर्चा है।