कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के पोलिट ब्यूरो ने एक माँग उठाई है। अपनी माँग में उनका कहना है कि वारावारा राव, गौतम नवलखा और प्रोफ़ेसर साईंबाबा जैसे अर्बन नक्सलियों को कोरोना वायरस महामारी को मद्देनज़र रखते हुए बाहर निकाला जाए। माँग में सभी को ‘मानवाधिकार कार्यकर्ता’ बताते हुए हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गंभीरता से चिंता जताई है।
We demand that all political prisoners be released on bail immediately and provided adequate medical care. pic.twitter.com/SNY79GDRj9
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) July 13, 2020
सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो द्वारा जारी किए गए बयान में लिखा है, “अखिल गोगोई कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। वारावारा राव की हालत भी अच्छी नहीं है। जेल के भीतर जिस तरह की गन्दगी रहती है, उसे देखते हुए यही लगता है कि गौतम नवलखा, अनिल तेलतुम्ब्डे, सुधा भारद्वाज, शोमा सेन जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता, जो गलत आरोपों के आधार पर जेल में बंद किए गए हैं, वह भी इन्फेक्शन की चपेट में आ सकते हैं।”
पोलित ब्यूरो ने लिखा, “तमाम राजनीतिक कैदियों की तुलना में प्रो. साईबाबा की हालत सबसे बदतर है। ऐसा व्यक्ति जिसमें 90 फ़ीसदी अक्षमताएँ हैं, उसे लगभग 19 तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ हैं, जिनमें ज़्यादातर जानलेवा हैं। यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र के दूतों ने भी उनकी सेहत को देखते हुए उन्हें रिहा करने की माँग की थी।”
सीपीआई (एम) का पोलित ब्यूरो, जिन्हें मानवाधिकार और राजनैतिक कार्यकर्ता बता रहा है, उन पर कई गंभीर आरोप लगे हुए हैं। जिनमें से कुछ आरोपों के मुताबिक़ इनके संपर्क ऐसे लोगों से भी हैं, जो आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ एल्गर परिषद मामले में भी आरोपित हैं। इसलिए पार्टी ने जिस तरह की भाषा अपनाई है, वह असल में बेहद खतरनाक है।
CPI (M) के मुताबिक़ अर्बन नक्सली, ‘मानवाधिकार कार्यकर्ता’
गौतम नवलखा फिलहाल यूएपीए के तहत आरोपित हैं। वह अनिल तेलतुम्ब्डे के साथ एल्गर परिषद् मामले में भी आरोपित हैं। इसके अलावा उन पर माओवादियों से भी संपर्क में रहने का आरोप है। साथ ही वह ऐसे संगठनों से भी जुड़े हुए हैं, जिनका सीधा संबंध नक्सलियों से है। कुछ ऐसी ही कहानी वारावारा राव, शोमा सेन और सुधा भारद्वाज की है। गौतम नवलखा पर हिजबुल मुजाहिद्दीन सहित कई अलगाववादी नेताओं से संपर्क में रहने का भी आरोप है।
कुछ समय पहले नवलखा, गुलाम नबी फई द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे। जिसे अमेरिका ने तथ्य छिपाने के लिए 2 साल की सज़ा सुनाई थी। उस तथ्य के मुताबिक़ फई का संगठन कश्मीरी अमेरिका काउंसिल का संस्थापक एक पाकिस्तानी आईएसआई का एजेंट था। जिसकी मंशा अमेरिका की भारत के प्रति नीतियाँ खराब करना था।
प्रो. साईबाबा
जीएन साईबाबा, दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे। इन्हें गढ़चिरौली की सेशन अदालत ने साल 2017 में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले माओवादियों से संपर्क रखने और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते आजीवन कारावास का आदेश दिया था। वह यूएपीए की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 के तहत आरोपित सिद्ध हुए थे।
जीएन साईबाबा को सबसे पहले साल 2014 में सीपीआई माओइस्ट के साथ संपर्क रखने और उनके लिए संसाधन उपलब्ध कराने और उनके लिए भर्ती कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
इसके बाद 30 जून साल 2015 के दिन स्वास्थ्य को देखते हुए 3 महीने की बेल दी गई थी। अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ़ एक बार फिर जमानत दी। साल 2016 में आई एक रोपोर्ट के मुताबिक़ साईंबाबा ने जेएनयू के कई छात्रों को माओवादी गतिविधियों में शामिल किया था। वह छात्र डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन के सदस्य थे, जिसका सदस्य उमर खालिद भी था।
भीमा कोरेगाँव
एल्गर परिषद् के नाम से आयोजित किए गए इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य 1818 के भीमा कोरेगाँव का जश्न मनाना था। जिसमें पेशवाओं ने ईस्ट इंडिया कंपनी से लड़ाई की थी। इसमें दलित समुदाय की एक सेना ने अंग्रेजों की तरफ से पेशवाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इसलिए दलित इसे धूमधाम से मनाते हैं, जून 2018 में इसके 200 साल पूरे हुए थे।
उस आयोजन में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। जैसे ही मामला एनआईए को सौंपा गया, इसमें पुलिस ने कुल 9 कथित बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया, सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन, सुरेन्द्र गड्लिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फरेरिया, वर्नोन गोंजाव्रिस और वारावारा राव का नाम शामिल था।