दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गुरुवार (20 जून 2024) की शाम राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश नियाय बिंदु ने जमानत दे दी। कोर्ट का आदेश शुक्रवार (21 जून) को अपलोड किया गया। निचली अदालत ने ED द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी को ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताया और दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को पढ़े बिना ही जमानत दे दी। जमानत के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हाई कोर्ट का रुख किया है।
जज ने अपने फैसले में कहा कि इस समय हजारों पन्नों के दस्तावेजों को देखना संभव नहीं है। इसके बावजूद कोर्ट ने ईडी की कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण पाया और अरविंद केजरीवाल को जमानत दे दी। कोर्ट ने जमानत के खिलाफ ईडी की दलीलें सुनने से भी इनकार कर दिया और ईडी के वकील से कहा कि वे अपनी दलीलें बहुत संक्षेप में पेश करें। कल रात करीब 8 बजे जल्दबाजी में जमानत आदेश जारी किया गया और समय की कमी के कारण आदेश अपलोड नहीं किया जा सका।
Rouse Avenue Court Judge doesn't have time to go through the documents and wants to give the judgement without going through the documents.
— Suresh Nakhua 🇮🇳 (@SureshNakhua) June 21, 2024
What is the hurry ?
(Quoting from judgement) https://t.co/bzjpR927P6 pic.twitter.com/l8FDNPK8hr
निचली अदालत के जमानत आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में दलील देते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने ईडी की दलीलें नहीं सुनीं। ईडी द्वारा दिए गए दस्तावेजों को नहीं देखा और कहा कि यह बहुत बड़ा है। एएसजी ने कहा, “कोर्ट का कहना है कि बहुत बड़े दस्तावेज दाखिल किए गए हैं। इससे ज्यादा गलत आदेश कोई नहीं हो सकता।”
ASG राजू ने कहा कि कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह प्रस्तुत दस्तावेजों को देखे। ईडी के वकील ने कहा, “दोनों पक्षों द्वारा दायर दस्तावेजों को देखे बिना, हमें मौका दिए बिना मामले का फैसला किया गया। कानून के अनुसार आदेश पारित करना अदालत का कर्तव्य है। दस्तावेजों को देखे बिना आप कैसे कह सकते हैं कि यह प्रासंगिक है या अप्रासंगिक है?”
एएसजी ने यह भी कहा कि केजरीवाल की ओर से गलत बयान दिया गया और अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में उल्लेख है कि ईसीआईआर 22 अगस्त 2022 की है, लेकिन यह जुलाई 2022 में पंजीकृत हुई थी। राजू ने तर्क दिया, “यदि आप दस्तावेजों पर गौर करते तो आपको पता चल जाता कि ईसीआईआर अगस्त में पंजीकृत हुई थी। इसलिए जुलाई में सामग्री उपलब्ध होने का कोई सवाल ही नहीं था। गलत तथ्यों, गलत तारीखों पर, आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यह दुर्भावनापूर्ण है।”
ईडी ने हाईकोर्ट में यह भी दलील दी कि निचली अदालत ने इस मामले में हाईकोर्ट के पिछले आदेश की अवहेलना की। इसमें गिरफ्तारी को उचित पाया गया था और दिल्ली के सीएम को ईडी की हिरासत में और फिर जेल में भेज दिया गया था। एएसजी ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई। इसलिए निचली अदालत अरविंद केजरीवाल के पक्ष में फैसला नहीं दे सकती।
ASG: SC has recognized giving inducements to the approvers. It is the legal and statutory recognition. Even this HC said it is procedure between court and approver and ED has nothing to do with it.
— Bar and Bench (@barandbench) June 21, 2024
एएसजी ने कहा, “फैसले की तुलना निष्कर्षों से करें। यह अदालत कहती है कि कोई दुर्भावना नहीं है। वह उन्हीं तथ्यों पर दुर्भावना पर निष्कर्ष देती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा है कि आप उस फैसले से प्रभावित हुए बिना फैसला करें।” उन्होंने कहा कि जमानत दो आधारों पर रद्द की जा सकती है, यदि प्रासंगिक तथ्यों पर विचार नहीं किया जाता है और अप्रासंगिक तथ्यों पर विचार किया जाता है।
ASG राजू ने कहा कि हाईकोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को उचित ठहराया था, क्योंकि उन्होंने ईडी के 9 समन को नजरअंदाज किया था। अब निचली अदालत ने विपरीत फैसला देते हुए कहा कि यह ‘पूरी तरह से विपरीत आदेश’ है।
हाईकोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि निचली अदालत ने जमानत आदेश जारी करते समय मामले में उसके फैसले पर विचार नहीं किया। पीठ ने पूछा, “आप कह रहे हैं कि इन सभी बिंदुओं पर विचार नहीं किया गया? आप कह रहे हैं कि हाईकोर्ट द्वारा जिन बिंदुओं पर विस्तार से विचार किया गया था, उन पर विचार नहीं किया गया?”
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन और न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा की अवकाश पीठ ने केजरीवाल की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी थी। इसके बाद जमानत के खिलाफ ईडी की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने पर सहमति जताई थी। ईडी का कहना है कि अदालत ने बिना सुनवाई किए और एजेंसी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को पढ़े बिना ही केजरीवाल को जमानत दे दी।