भीषण गर्मी के बीच देश की राजधानी दिल्ली जल संकट से जूझ रही है। देश की राजधानी में रहने वाली जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा चिलचिलाती धूप के बीच पानी के लिए तरस रहा है। दिल्ली के VIP इलाकों में भी पानी के टैंकरों के पीछे-पीछे बच्चे और बूढ़े तक भाग रहे हैं। दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से आने वाला पानी गंदा है। दरअसल, यह पूरी अव्यवस्था की स्थिति क्यों है, इसकी पोल अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के खुद के दस्तावेज खोलते हैं।
केजरीवाल सरकार द्वारा जनता में रखे गए कागज ही बताते हैं कि बीते 9-10 वर्षों में दिल्ली में पानी की आपूर्ति बढ़ाने पर कोई काम नहीं हुआ है। दिल्ली पानी आपूर्ति पर किए जाने वाले खर्चे भी कमी कर दी गई है। उस पर जितने खर्चे की योजना बन रही है, उसका आधा ही पैसा उसे दिया जा रहा है। इस बीच दिल्ली की जनसंख्या बढ़ती जा रही है।
राजधानी में पानी की माँग भी इन वर्षों में लगभग 30% तक बढ़ गई है, लेकिन धरना-प्रदर्शन वाली सरकार जमीन पर कुछ भी नहीं कर पाई है। अरविन्द केजरीवाल की सरकार के दावों की पोल उन्होंने खुद दिल्ली के आर्थिक सर्वे में खोली है। इस आर्थिक सर्वे में कई चौंकाने वाले खुलासे हैं।
पानी आपूर्ति बढ़ाने पर कोई काम नहीं
दूसरे राज्यों पर अपनी नाकामी का ठीकरा फोड़ने वाले केजरीवाल ने 2015 में स्थायी रूप से सत्ता में आने के बाद से दिल्ली में जल आपूर्ति क्षमता में कोई वृद्धि नहीं की है। इस क्षेत्र में उनका काम एकदम नगण्य है। उनसे पहले सत्ता में रहने वाली शीला दीक्षित के मुकाबले वह कहीं नहीं ठहरते।
दिल्ली को अलग-अलग स्रोतों पानी से मिलता है और इसे ट्रीटमेंट प्लांट में साफ करके भेजा जाता है। दिल्ली सरकार का 2023-24 का आर्थिक सर्वे बताता है कि वर्ष 2006 में दिल्ली में इस पानी साफ करने की क्षमता कुल 650 मिलियन गैलन/दिन थी। यह शीला दीक्षित सरकार के दौरान यह प्रति वर्ष बढ़ रही थी।
वर्ष 2015 तक आते आते यह क्षमता 906 मिलियन गैलन/दिन हो चुकी थी। यानी 2006 से 2013 के बीच दिल्ली में पानी साफ करने की क्षमता में 39% बढ़ोतरी हुई थी। इसके बाद केजरीवाल सत्ता में आ गए और मुफ्त पानी का वादा भी किया। 2015 के बाद से 2024 तक लगातार केजरीवाल लगातार सत्ता में हैं।
उनके शासनकाल के दौरान दिल्ली की पानी साफ करने की क्षमता में मात्र 40 मिलियन गैलन/दिन की वृद्धि हुई और यह क्षमता 946 मिलियन गैलन/दिन पहुँच पाई। यानी जहाँ 2006-15 के बीच वृद्धि 39% हुई थी तो वहीं 2015-2024 में यह मात्र 4% रह गई। ऊपर दिए गए ग्राफ से यह तुलना आसानी से समझी जा सकती है।
पानी की माँग 9 सालों में 26% बढ़ी
केजरीवाल सरकार की इस शिथिलता का खामियाजा दिल्लीवासियों को भुगतना पड़ रहा है। केजरीवाल सरकार की इस नाकामी के बीच दिल्ली में पानी की माँग प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है। दिल्ली में वर्ष 2006 में पानी की माँग 963 मिलियन गैलन/दिन थी, यह 2015 तक बढ़ कर 1020 मिलियन गैलन/दिन हो गई। 2023-24 के लिए दिल्ली की पानी माँग और बढ़ कर 1290 मिलियन गैलन/दिन हो चुकी है।
ऐसे में साफ़ होता है कि जहाँ 2015 में दिल्ली पानी की रोजाना माँग का 94% पानी साफ करने की क्षमता उसके पास थी तो वहीं 2024 तक आते-आते यह 73% हो चुकी है। यानी दिल्ली वर्तमान में जितना पानी चाहती है, उतना पानी साफ करने की उसके पास क्षमता नहीं है। वर्तमान में दिल्ली की एक चौथाई पानी की माँग पूरे करने के साधन उसके पास नहीं हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार इसका इलाज करने के बजाय अपने मंत्रियों को धरने पर बिठाने और दूसरे राज्यों पर दोष डालने में लगी हुई है।
सीवर ट्रीटमेंट क्षमता पर भी काम नहीं
केजरीवाल सरकार ने पानी साफ करने की क्षमता बढ़ाने पर तो नहीं ही काम किया, उन्होंने दिल्ली से निकलने वाले सीवरेज को साफ करने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। दिल्ली के सभी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की कुल क्षमता कमोबेश उतनी ही है, जितनी वह 2015 में हुआ करती थी। 2006 में दिल्ली के सभी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की कुल क्षमता 512 मिलियन गैलन/दिन हुआ करती थी। यह 2015 आते-आते 613 मिलियन गैलन/दिन हो चुकी थी। यानी इसमें 6 वर्ष के भीतर लगभग 100 मिलियन गैलन/ दिन की वृद्धि हुई थी।
दिल्ली सरकार का 2023-24 का आर्थिक सर्वे बताता है कि मार्च 2023 में 632 मिलियन गैलन/दिन की क्षमता के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट हैं। यानी 2015 से 2023 के बीच केजरीवाल सरकार ने मात्र 19 मिलियन गैलन/दिन सीवर ट्रीटमेंट क्षमता बढ़ाने का काम किया है जबकि उनकी पूर्ववर्ती सरकार ने 100 मिलियन गैलन/दिन क्षमता बढ़ाई थी।
दिल्ली सीवर से आने वाले पानी की सफाई को लेकर निवेश ना करना दिल्ली को दो तरह से नुकसान पहुँचा रहा है। पहला तो यह है कि गंदा पानी साफ होकर वापस दिल्ली वासियों को नहीं मिल पा रहा, जिससे पानी की कमी में और बढ़त हो रही है। वहीं इस गंदे पानी के साफ पानी के स्रोत में मिलने से और भी समस्या हो रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि लम्बे समय ऐसा नहीं किया जाता तो साफ़ साफ पानी के स्रोतों की क्षमता भी कम हो जाती है।
दिल्ली में पानी के लिए खर्चे में भी कमी कर रही सरकार
दिल्ली की केजरीवाल सरकार जहाँ एक ओर लम्बे चौड़े वादे करती हैं तो वहीं जमीन पर काम करने के दौरान उसके सारे वादे हिरन हो जाते हैं। दिल्ली सरकार के आर्थिक सर्वे ने ही बताया है कि जितना पैसे की योजनाएँ दिल्ली में प्रति वर्ष बनाई जा रही हैं, उतना खर्च नहीं हो रहा। पिछले तीन वर्षों में इसमें भारी गिरावट आई है। आर्थिक सर्वे के अनुसार, 2020-21 के दौरान दिल्ली पानी की कमी को पूरा करने के लिए ₹4004 करोड़ खर्च करने की योजना बनाई गई थी। इसके मुकाबले ₹3584 करोड़ की ही धनराशि जारी की गई।
वर्ष 2021-22 के दौरान ₹2951 करोड़ खर्च की मंजूरी दी गई थी लेकिन इस वर्ष मात्र ₹1892 करोड़ ही जारी किए गए। 2022-23 में तो जितना बजट मंजूर हुआ उसकी आधी धनराशि ही जारी की गई। 2022-23 में दिल्ली में पानी से सम्बन्धित सुविधाओं पर ₹6344 करोड़ के खर्चे की मंजूरी दी गई थी। इसकी तुलना में मात्र ₹3171 करोड़ ही जारी किए गए।
पानी साफ करने की नई क्षमताओं का विकास ना करना, सीवर व्यवस्था को ना बढ़ाना और पानी की आपूर्ति पर खर्च ना करना दिल्ली में वर्तमान जल संकट का बड़ा कारण है। दिल्ली की AAP सरकार इस नाकामी का ठीकरा हरियाणा और हिमाचल प्रदेश पर फोड़ कर बचना चाह रही है। उसके मंत्री केंद्र सरकार को पत्र लिख रहे हैं, आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं लेकिन जमीन पर काम नहीं कर रहे। मात्र जुबानी जमा खर्च करके ही काम चलाया जा रहा है।