मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) मामले में जेल में बंद शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत (Shiv Sena MP Sanjay Raut) की जमानत का प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने कोर्ट में विरोध किया है। राउत ने जमानत के लिए धनशोधन रोकथाम कानून (PMLA) संबंधी मामलों की सुनवाई कर रही विशेष अदालत में अर्जी दाखिल की थी।
प्रवर्तन निदेशालय ने कोर्ट में कहा कि संजय राउत का मामला सार्वजनिक धन के दुरुपयोग से जुड़ा है और उन्होंने इसका उपयोग निजी लाभ के लिए किया था। ED ने कहा, “वर्तमान मामले में आर्थिक अपराध के कारण सार्वजनिक धन की भारी हानि होती है और देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस मामले में राहत देना उचित नहीं है।”
केंद्रीय एजेंसी ने कहा कि राउत बचने के लिए पर्दे के पीछे से काम कर रहे थे और उन्होंने अपने प्रॉक्सी और सहयोगी प्रवीण राउत के माध्यम से अपराध में एक प्रमुख भूमिका निभाई। एजेंसी ने परियोजना में बिक्री से प्राप्त आय और कुछ नहीं, बल्कि अपराध की आय है।
ED ने कोर्ट में कहा कि राउत ने झूठे दावे किए थे कि इमारत के एक हिस्से की बिक्री के लिए अनुमति दी गई थी, जबकि किसी भी बिक्री के लिए कोई स्पष्ट अनुमति नहीं दी गई थी। जाँच शुरू होने के बाद याचिकाकर्ता ने फ्लैट की खरीद के लिए 55 लाख रुपए का भुगतान किया था।
ईडी ने कहा कि राउत बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली व्यक्ति हैं और अगर उन्हें जमानत पर रिहा किया जाता है तो वह सबूतों को प्रभावित और उससे छेड़छाड़ कर सकते हैं। ईडी के अधिकारियों ने कहा कि राउत द्वारा गवाहों को धमकी देने के उदाहरण भी हैं।
वहीं, राउत ने अपनी जमानत अर्जी में दावा किया कि उनके खिलाफ ईडी का मामला सत्तारूढ़ दल द्वारा विपक्ष को कुचलने के लिए दायर किया गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अपराध की आय के रूप में दिखाए गए 1.06 करोड़ रुपए की हिसाब-किताब दे दिया गया है।
बता दें कि संजय राउत को पात्रा चॉल मामले में गिरफ्तार किया गया है। इस घोटाले की शुरुआत साल 2007 में हुई थी। तब, महाराष्ट्र हाउसिंग एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) की 47 एकड़ जमीन पर 672 किराएदार रहते थे। इन्हीं 672 किराएदारों के पुनर्वास के लिए पात्रा चॉल परियोजना के तहत चॉल के विकास का काम प्रवीण राउत की कंपनी गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन और हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को सौंपा गया।
कॉन्ट्रैक्ट में कहा गया था कि 47 एकड़ पर जो बिल्डिंग बनेगी उसके 672 फ्लैट चॉल के किराएदारों को देने होंगे और तीन हजार फ्लैट एमएचडीए को हैंडओवर करने होंगे। बाद में जो जमीन बचेगी उसे बेचने और विकसित करने के लिए भी अनुमति जरूरी होगी। अब चॉल विकास के कॉन्ट्रैक्ट में सब चीजें तय थीं। लेकिन घोटाले की शुरुआत तब हुई जब कंपनी ने न तो इस जगह का विकास किया और न किराएदारों को मकान दिए और न ही MHADA को फ्लैट हैंडओवर किए।