छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के आदिवासी के दर्जे के दावे को सरकार द्वारा नियुक्त समिति ने खारिज कर दिया है। जोगी की जाति के मामले की जाँच कर रही हाई-पावर कमिटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। कमिटी ने जोगी को आदिवासी नहीं माना है। कमिटी ने यह भी साफ किया है कि सरकारी जाँच में यह साबित होने के बाद उनका जाति प्रमाण पत्र और अनुसूचित जनजाति के तहत उन्हें मिल रहे सभी लाभों को निरस्त कर दिया गया है।
फरवरी 2018 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के आदेश पर डीडी सिंह की अध्यक्षता में बनी समिति ने 21 अगस्त को अपनी जाँच रिपोर्ट सरकार के समक्ष रखी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अजीत जोगी कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं दे सके जिससे वह यह साबित कर सकें कि वह आदिवासी जाति से ताल्लुक रखते हैं। लिहाजा बिलासपुर के कलेक्टर को छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी नियम 2013 के तहत उन पर एक्शन लेने के लिए कहा गया है। अजीत जोगी मारवाही से विधायक हैं और अगर इस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई होती है, तो मारवाही से अजीत जोगी की विधायकी को रद्द किया जा सकता है। क्योंकि ये विधानसभा सीट आदिवासी प्रत्याशी के लिए आरक्षित है।
रिपोर्ट के सामने आने पर अजीत जोगी ने कॉन्ग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए दावा किया कि उन्हें जरूरी दस्तावेज और सबूत पेश करने का मौका नहीं दिया गया। समिति को ‘भूपेश अधिकार प्राप्त समिति’ करार देते हुए उन्होंने कहा कि वो 1986 में नागरिक सेवाओं में शामिल हुए और 43 वर्षों में, न्यायपालिका ने 6 बार पहले भी उन्हें जातिगत पंक्ति में शामिल किया है। साथ ही उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी की नजरों में वो एक आदिवासी हैं, लेकिन सीएम भूपेश बघेल उन्हें आदिवासी नहीं मानते।
बता दें कि बीते दो दशक से जोगी की जाति को लेकर कई सवाल खड़े होते रहे हैं। इससे पहले भी 2018 में भी रीना बाबा कंगाले की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी और इस समिति की रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई थी। बाब कंगाले की समिति ने भी अजीत जोगी को आदिवासी नहीं माना था।
गौरतलब है कि यह मामला 2001 का है, जब भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय ने अजीत जोगी की जाति को चुनौती दी थी। जोगी ने हमेशा दावा किया है कि वह और उनका परिवार, जो एसटी आरक्षित सीटों पर भी चुनाव लड़ते हैं, कंवर जनजाति से हैं। 2011 में यह मामला उच्चतम न्यायालय में चला गया जिसने जोगी की जनजातीय स्थिति का निर्धारण करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति को आदेश दिया था।