केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्षी पार्टियों में स्वयं को हिन्दू दिखाने के लिए लगी होड़ पर कटाक्ष करते हुए अपने फेसबुक ब्लॉग पर लिखा कि अब तो सबके हिन्दू ‘बनने’ का मौसम आ गया है। उन्होंने कल शाम लिखी इस पोस्ट में नेहरूवादी सेक्युलरिज्म, उसमें छिपे हिन्दू धर्म के लिए तिरस्कार को भी रेखांकित किया। जेटली ने उन दिनों को भी याद किया जब “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” के नारे वाले स्टीकरों को विश्व हिन्दू परिषद ने प्रारंभ किया था, और भाजपा समेत चुनिन्दा संगठनों ने उसे उठाया और उसके लिए समाज की मुख्यधारा से तिरष्कृत भी हुए।
‘हिन्दू धर्म को पिछड़ा मानने पर आधारित है नेहरूवादी सेक्युलरिज्म’
जेटली ने भारत में मुख्यधारा के (छद्म) सेक्युलरिज्म को हिन्दू धर्म/हिंदुत्व के विरोध पर आधारित बताते हुए लिखा कि इसके जनक नेहरू का मानना था कि हिंदुत्व पिछड़ा, कट्टरपंथी और दकियानूसी/अन्धाकरवादी है। वह इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में रुकावट मानते थे।
जेटली ने इस सैद्धांतिक हिन्दूफोबिया पर आधारित सेक्युलरिज्म के निर्वाचन में प्रतिबिंबित होने की प्रक्रिया का भी सूक्ष्मता से निरीक्षण किया। बकौल जेटली, बहुपक्षीय निर्वाचन वाली राजनीतिक प्रणाली का फायदा उठाते हुए कॉन्ग्रेस समेत कई दलों ने हिन्दू समाज को खंडित कर समुदाय विशेष और एक किसी जाति को अपना वोट बैंक बना कर रखा। समुदाय विशेष को डराने और उनका ध्रुवीकरण करने के लिए हिन्दू एकता के खिलाफ एक हौव्वा खड़ा करने की कोशिश की।
उन्होंने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि इस गोलबंदी को तोड़ने वाली पहली आवाज 1980 और 1990 के दशक में श्री लालकृष्ण आडवाणी की थी। उन्होंने यह साफ़ कर दिया कि हालाँकि मज़हबी या पंथिक आग्रह भारत के राष्ट्र-राज्य का आधार नहीं हो सकते, पर सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दुओं को निशाने पर भी नहीं लिया जा सकता है। उनकी आधुनिक भाषा ने एक बड़ी आबादी को आकर्षित करना शुरू किया (जोकि पहले संघ परिवार-भाजपा/जनसंघ को बूढ़े/दकियानूसी लोगों का गुट मानती थी)। बहुसंख्यक समुदाय हालाँकि अभी भी सहिष्णु और उदार था पर आडवाणी के आह्वाहन पर अनवरत क्षमायाचना की मुद्रा से बाहर आने लगा था। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कैसे राजीव गाँधी का शाहबानो मामले में कथित अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए हर हद पार कर देना और मनमोहन सिंह का ‘अल्पसंख्यकों’ को देश के संसाधनों का पहला हकदार बताना कॉन्ग्रेस द्वारा हिन्दुओं में जागृत हो रही इस चेतना को नज़रंदाज़ करने को ही दिखाता है।
‘मध्य वर्ग की आकंक्षाओं में भी है हिंदुत्व’
जेटली ने हिंदुस्तान की बदलती हुई सामाजिक-आर्थिक स्थिति का ज़िक्र करते हुए इसे मध्यम वर्ग को एकत्रित और विस्तृत करने वाला बताया। उन्होंने इसे आकांक्षी, बिना कट्टरपंथी आग्रहों के धार्मिक और राष्ट्रीय सुरक्षा में दिलचस्पी लेने वाला बताया। वह सेक्युलरिज्म की परिभाषा में बहुसंख्यकों पर दुराग्रही हमला स्वीकार नहीं करेगा। उनकी राय 370, आतंकवाद जैसे मुद्दों पर बहुत स्पष्ट और पुख्ता है। उन्होंने सबरीमाला और राम मंदिर के मुद्दों पर मध्यम वर्ग की क्रुद्ध प्रतिक्रिया का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे आजतक हिन्दुओं को गलियाँ दे-देकर ही अपनी दुकानें चलाने वालों की ‘प्रतिक्रिया’ को लेकर चिंतित कर दिया है।
‘राहुल गाँधी: जेएनयू वालों की तरफदारी से जनेऊ-धारी तक का सफ़र’
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का उदाहरण देते हुए जेटली ने कटाक्ष किया कि 2004, 2009, 2014 के चुनावों में अपना पंथिक आग्रह छिपा कर बैठे राहुल गाँधी कैसे अचानक से “जनेऊ-धारी ब्राह्मण” बन बैठे, और मंदिरों के चुनावी चक्कर लगाने प्रारंभ कर दिए।
उन्हें घेरते हुए जेटली ने पूछा कि उनका महबूबा मुफ़्ती-उमर अब्दुल्ला के अप्रत्यक्ष अलगावादी सुरों पर क्या रुख है? अयोध्या और सबरीमाला के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट करने की चुनौती जेटली ने राहुल गाँधी को दी। उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी लपेटते हुए जेटली ने लिखा कि राहुल गाँधी अफस्पा हटाना और सेना की ताकत को कमजोर करना चाहते हैं। जेटली ने यह भी याद दिलाया कि राहुल गाँधी ने जेएनयू काण्ड के अभियुक्तों के समर्थन में विश्वविद्यालय का दौरा किया था और आजतक अपने वहाँ जाने को लेकर कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया है।
‘दिग्विजय सिंह: हिन्दू आतंकवाद के पेटेंट-धारी बने गर्वित हिन्दू’
कॉन्ग्रेस के ही दूसरे नेता दिग्विजय सिंह, जिन्हें राहुल गाँधी का पहला राजनीतिक शिक्षक माना जाता है, को भी जेटली ने नहीं बख्शा। जेटली के बाटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी बताने वाले बयान और आजमगढ़ जाकर मारे गए आतकंवादियों के परिजनों से मिलने को याद दिलाते हुए जेटली ने कटाक्ष किया कि ‘हिन्दू आतंकवाद’ सिद्धांत का दिग्विजय सिंह के पास पेटेंट है, क्योंकि इसका पहला उपयोग उन्होंने ही किया था। जेटली ने आगे लिखा कि आज राजनीतिक मजबूरियों के चलते दिग्विजय ‘गर्वित हिन्दू’ हो गए हैं।
आम आदमी पार्टी
अरविन्द केजरीवाल की ‘आप’ पर प्रहार करते हुए जेएनयू मामले में उनकी भूमिका भी याद दिलाई। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे न केवल देश-विरोधी नारे लगाने वालों का नैतिक और राजनीतिक समर्थन किया गया, बल्कि आम आदमी पार्टी के नियंत्रण वाले दिल्ली सचिवालय ने दिल्ली पुलिस को आरोपियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने वाली फाइल दबा कर रखी। जेटली ने आरोप लगाया कि आप का दिल जिहादियों को दिया हुआ है।
उन्होंने आप की पूर्वी दिल्ली प्रत्याशी आतिशी ( सिंह/मार्लेना) का भी जिक्र करते हुए उनके जीवन-भर अपनी मार्क्सवादी-वामपंथी पृष्ठभूमि को उभारने और अब चुनाव के लिए ‘क्षत्राणी/राजपूतानी’ बन जाने को दोहरे मानदंडों का चरम बताया।
‘नव-परिवर्तितों के लिए बड़ी सुविधा का मौसम हैं निर्वाचन’
हिंदुस्तान की अधिकांश आबादी को राष्ट्रभक्त और इससे इत्तेफाक न रखने वालों को हाशिए पर पड़े अपवाद बताते हुए जेटली ने इस बात कर अफ़सोस जाहिर किया कि हाशिए पर पड़े इन अपवादों को मीडिया और सोशल मीडिया उनकी वस्तुस्थिति से कहीं अधिक तवज्जो दे उनके शोर को विस्तार दे रहा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे लोग मीडिया और सोशल मीडिया पर चाहे जितनी हाइप पा लें, निर्वाचन में जनता उन्हें नकार देगी- यही लोकतंत्र की ताकत है। अंतिम वाक्य में उन्होंने निर्वाचन-काल को नए-नए ‘परिवर्तित’ हुए लोगों के परिवर्तन के लिए सबसे अनुकूल मौसम बताया।