पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के नतीजों ने देशवासियों को चौंकाया है। सभी पूर्वग्रह और अपेक्षाओं को झूठा साबित करते हुए, भाजपा ने पश्चिम बंगाल राज्य में 40.25% वोट-शेयर हासिल किया, जबकि वाम दल दहाई अंक के वोट-शेयर तक पहुँचने में भी नाकाम रहे।
यह सच है कि भगवा लहर ने भाजपा को पश्चिम बंगाल में 18 लोकसभा सीटों पर पहुँचा दिया, जबकि TMC 23 सीटों पर आ गई और वाम दल अपना खाता भी नहीं खोल पाए।
यह परिणाम बताते हैं कि पश्चिम बंगाल के इतिहास में पहली बार धर्म के आधार पर वोटिंग हुई है, ना कि राजनीति के आधार पर। CSDS के मतदान के बाद किए गए सर्वे बताते हैं कि भाजपा के पीछे बड़े स्तर पर हिंदुत्व का एकीकरण था, जबकि मुस्लिम मतदाताओं ने ममता बनर्जी को अपना समर्थन दिया।
भाजपा को हिन्दुओं से मिलने वाला वोट प्रतिशत वर्ष 2014 के 21% से बढ़कर आश्चर्यजनक रूप से 2019 में सीधा 57% तक पहुँच गया। जबकि, इसके विपरीत TMC को 40% से 32 पर आ गए और वाम दल को मिले मतों का प्रतिशत 29 से सीधा 6 पर आ गया।
यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि इस बार भाजपा को मिलने वाला मत प्रतिशत जातिगत मुद्दों से हटकर सभी वर्गों में बढ़ा है। अपर कास्ट, ओबीसी, दलित, आदिवासियों ने बड़े स्तर पर भाजपा को अपना मत दिया जबकि, अन्य दलों का मत प्रतिशत गिरा है। इस प्रकार, भाजपा को मिलने वाला यह मत प्रतिशत दर्शाता है कि यह जातिगत मुद्दों को पीछे छोड़ते हुए स्पष्ट रूप से हिंदुत्व का एकीकरण था।
नतीजतन, मुस्लिमों के बीच TMC का वोट-शेयर 2014 में 40% से बढ़कर इस साल 70% हो गया। हालाँकि, बीजेपी ने अपना वोट-शेयर 2% से बढ़ाकर 4% कर लिया, लेकिन ‘लहर’ की दिशा बिल्कुल स्पष्ट है। इन आँकड़ों से यह भी निश्चित तौर से माना जा सकता है कि चुनाव में वाम दल के पतन का कारण तृणमूल नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी है।
अब तक बंगाल में राजनीतिक विचारधारा के आधार पर ही मतदान होते देखे जाते थे, लेकिन अब, जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं, वहाँ पर धार्मिक पहचान के आधार पर मतदान देखने को मिलेंगे।
हम उम्मीद कर सकते हैं कि अब और ज्यादा हिन्दू मिलकर भाजपा को वोट देने वाले हैं और इसी प्रकार मुस्लिम भी एकीकृत होकर TMC को अपना मत देने वाले हैं। इन परिस्थितियों में यह भी तय है कि आने वाले समय में ‘वाम’ विचारधारा का कोई रखवाला देखने को नहीं मिलेगा। वाम दल का भविष्य इस प्रकार बंगाल में ख़त्म हो चुका है।